Business Tips : अब प्लास्टिक की बोतलों से बनेंगी टी शर्ट, जानिए इस अनोखे बिजनेस के बारे में
आज के समय में हर कोई पैसा कमाना चाहता है और अपने बिजनेस में तरक्की करना चाहता है अगर आप ऐसा कुछ करने की सोच रहे हैं तो हम आज आपको एक ऐसे बिजनेस के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेहद ही खास है। खबर में जानिए इसकी पूरी डिटैेल।
Haryana News Post : आज हम आपको एक ऐसे बिजनेस के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें कमाल के पैसे कमाए जाते हैं। जी हां हम आपको बताने जा रहे हैं प्लास्टिक के बिजनेस के बारे में। UNIREC (युनिरेक) अपने हर प्रोडक्ट्स से कार्बन एमिशन कम करता है. ये है एक अनोखे ब्रांड की शानदार कहानी.
20 साल से कपड़े बनाने के पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले कपिल भाटिया अपने बिजनेस के सिलसिले में एक प्रदर्शनी के दौरान एक ग्राहक से मिले. इस ग्राहक से हुई बातचीत ने इन्हें एक नया आइडिया दिया. रीसाइकल्ड फेब्रिक से कपडे बनाने का. साल था 2019. दो साल बाद, 2021 में युनिरेक अस्तित्व में आ चुकी थी. रीसाइकल्ड पोल्येस्टर से शर्ट, ब्लेज़र, ट्राउजर्स बनाने वाली यह कंपनी कपिल के व्यापारिक समझ का भी परिचायक है जिसने एक नए मार्केट और इससे जुड़े अवसर को सिर्फ एक आम बातचीत से पहचान लिया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2019 में ग्लोबल रीसाइकल्ड फैब्रिक का मार्केट 8.8 बिलियन डॉलर का आंका गया था, जिसके साल 2026 तक बढ़कर 9.8 डॉलर का हो जाने का कयास लगाया गया है. भारत की बात करें तो इस सेगमेंट में टॉप प्लेयर्स रुघानी ब्रदर्स, बोम्बे रेयान और सर्वोदय टेक्सटाइल हैं. कपिल की कंपनी इस सेगमेंट में नई है लेकिन इतने कम वक़्त में ही युनिरेक ने 15-18 लाख रुपए का रेवेन्यु जेनेरेट कर लिया है.
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बातचीत की शुरुआत करते हुए कपिल सस्टेनेबल क्लोदिंग में आने के अपने निर्णय के बारे में बताते हुए कहते हैं कि 20 साल तक पारिवारिक बिजनेस के अनुभव की वजह से मैं इस बात से अवगत था कि एपेरल का मार्किट बहुत बड़ा है. मैं इस बाज़ार को एक्सप्लोर करना चाहता था. यही सोच कर कपिल ने लगभग पांच साल पहले एक नई कंपनी, ब्रांडस्टोर इंडिया, बना ली थी. और आज ब्रांडस्टोर इंडिया 150 कार्पोरेट के लिए युनिफॉर्म्स बनाती है जिसमें वोडाफोन से लेकर मैकडोनाल्ड जैसी कंपनियां भी शामिल हैं. योरस्टोरी के इस सवाल पर कि युनिरेक ने सिर्फ मर्दों के कपड़े ही मार्किट में क्यूं उतारे हैं, कपिल भाटिया ने हँसते हुए बताया कि औरतों के कपड़े कोई यूं ही बनाना नहीं शुरू कर सकता है. इस रेंज के कपड़े बनाने के लिए डिज़ायनर को हायर करना एक मिनिमम कंडीशन होती है. अब हम इसके लिए तैयार हैं और बमुश्किल 2 महीनों में वूमेन्स वेयर युनिरेक पर उपलब्ध हो जाएंगे. कुछ एक ही महीनों में, कपिल ने बताया, D2C (direct-to-consumer) प्लेटफॉर्म्स जैसे Ajio, Myntra इत्यादि प्लेटफॉर्म्स पर युनिरेक की रेंज अवेलेबल हो जायेगी. Amazon
पर यह उपलब्ध है. इसके अलावा, कार्पोरेट सेक्टर में युनिरेक के प्रोडक्ट्स को युनिफॉर्म्स के बतौर प्रमोट करना इनका अगला चैलेन्ज है. पर्यावरण के लिहाज़ से युनिरेक की पैकेजिंग भी सुरक्षित है क्यूंकि वह बायो-डीग्रेडेबल होती हैं.
ढएळ बोतलों से गारमेंट बनने की प्रक्रिया पर योरस्टोरी के सवाल का जवाब देते हुए कपिल भाटिया ने तसल्ली से पूरी प्रक्रिया समझाई. उन्होंने कहा यहां हर एक कपड़ा 12 ढएळ बोतल को रीसाइकल कर के पोलिएस्टर के फैब्रिक से बना होता है. जिसके लिए कंपनी को अंतर्राष्ट्रीय रीसाइक्लेबल स्टैण्डर्ड सर्टिफिकेशन भी हासिल है. यह सर्टिफिकेशन दो तरह से काम करती है,
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पहला यह रीसाइकल होने के प्रोसेस को ट्रैक करती है, और दूसरा यह प्रोडक्ट के फाइनल वर्जन को रीसाइकल्ड है या नहीं, इसे वेरीफाई करती है. युनिरेक के प्रोडक्ट्स दोनों मानकों पर खरे उतरते हैं. आगे उन्होंने कहा आपके घर से जब प्लास्टिक बोतलें उठाई जाती हैं उसके बाद ये रीसायकल करने वाली कंपनी के पास पहुंचती हैं. कंपनी इन्हें कम्प्रेस करती है, जिससे प्लास्टिक के ह्यफ्लेक्सह्ण निकलते हैं जिन्हें प्लास्टिक के ह्यपैलेट्सह्ण में कन्वर्ट किया जाता है. इन्हीं पैलेट्स से प्लास्टिक का फाइबर बनाया जाता है, जो यार्न कंपनी के पास पहुंचती है. हम यार्न कंपनी से यार्न खरीदते हैं और वहां से हमारा काम शुरू होता है, डीजायनिंग, कटाई-सिलाई इत्यादि का. आसान शब्दों में, पोलिएस्टर का धागा प्लास्टिक ह्यपैलेटह्ण से निकाला जाता है.
युनिरेक ह्यरीसाइकल्ड प्लास्टिक पैलेट्सह्ण इस्तेमाल में लाती है. इसी प्रोसेस को ट्रैक करने के अंतर्राष्ट्रीय रीसाइक्लेबल स्टैण्डर्ड सर्टिफिकेशन ने युनिरेक को सर्टिफिकेशन दिया हुआ है. योरस्टोरी के सवाल पर कि वो सस्टेनेबलिटी के भविष्य को कैसे देखते हैं, क्या ये सकारात्मक परिणाम दे सकता है, या इसके चैलेंजेज क्या होते हैं पर कपिल ने यूरोप की बात करते हुए बताया कि पर्यावरण के मुद्दे की गंभीरता को समझने में यूरोप हमसे 20 साल आगे है. यूरोपियन यूनियन ने बड़ी कंपनियों को मैंडेट किया है कि वो अपने प्रोडक्ट्स में एक ख़ास परसेंटेज तक इको-फ्रेंडली चीज़ों का इस्तेमाल करें और यह यूरोप में क़रीब 20 सालों से हो रहा है.
चैलेंजेज पर आते हुए कपिल ने कहा यही वजह है कि भारतीय कम्पनियां अपना माल बाहर एक्सपोर्ट करने के लिए उत्साहित रहती हैं, और कहीं-न-कहीं इसका असर लोकल मार्केट पर भी पड़ता है. कपिल ने आगे बात बढाते हुए कहा कि योरस्टोरी के माध्यम से आज ये बात आपके रीडर्स तक पहुंचाना चाहता हूं कि कोर्पोरेट सेक्टर को सस्टेनेबल लाइफस्टाइल को बढ़ावा देने के लिए इन प्रोडक्ट्स को अपने इको-सिस्टम में शामिल करें. मसलन, कोर्पोरेट अपने सलाना फंक्शन्स पर सस्टेनेबल प्रोडक्ट्स को गिफ्ट्स के तौर पर शामिल कर सकते हैं. यह एक मेसेज के साथ-साथ पर्यावरण के साथ हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.