Dussehra 2022: जानिए विजय दशमी का असली अर्थ क्या है, यहां पढ़िए क्या लिखा है चौपाइयों में
Dussehra 2022 Shubh Muhurat: विजय दशमी (vijayadashami) का महत्व असत्य और अधर्म प्रवृत्ति पर विजय तक सीमित नहीं है। इसमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी समावेश है। प्रभु श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। विभीषण सहित सभी प्रमुख लोगों ने प्रभु राम से लंका का अपने साम्राज्य में सम्मलित करने का निवेदन किया था। किंतु प्रभु राम ने ऐसा नहीं किया। इतना ही नहीं मंदोदरी सहित वहां की सभी महिलाओं को सम्मान दिया। उनके किसी भी सैनिक ने लंका की नारियों के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया। अपने मत और उपासना पद्धति का रंचमात्र भी प्रसार नहीं किया। जबकि प्रभु राम व उनकी सेना के समक्ष ऐसा करने का पूरा अवसर था। लेकिन ऐसा करना भारतीय संस्कृति की अवहेलना होती।
प्रभु राम तो युद्ध प्रारंभ होने के पहले ही विभीषण का राज्याभिषेक कर चुके थे। स्पष्ट है कि लंका के लोगों को तलवार की नोक पर गुलाम बनाने की उन्होने कल्पना तक नहीं की थी। उन्होंने अपने आचरण से मर्यादा व भारतीय संस्कृति का सन्देश दिया। इस संस्कृति में सम्पूर्ण सृष्टि समाहित है। इसमें मानव मात्र के कल्याण की कामना है-
आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो।
कृपासिंधु तब अनुज बोलायो॥
तुम्ह कपीस अंगद नल नीला।
जामवंत मारुति नयसीला।
सब मिलि जाहु बिभीषन साथा।
सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा॥
पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ॥
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सुंदर कांड का सुंदर प्रसंग है-
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥
जदपि सखा तव इच्छा नहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥
रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड॥
जो संपति सिव रावनहि
दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥
अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥
निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥
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विजय दशमी राष्ट्रीय भावना के जागरण का ही पर्व है। हिन्दू इतिहास में अनगिनत चक्रवर्ती सम्राट हुए। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। लेकिन जिन राज्यों को जीता वहां की महिलाओं बच्चों पर कोई अत्याचार व उत्पीड़न नहीं किया। किसी के उपासना स्थल का विध्वंस नहीं किया।
कहीं भी मतांतरण नहीं कराया। जिन राज्यों की जीता, वहां के लोगों का भी मानवीय आधार पर कल्याण किया। वहां भी सर्वे भवन्तु सुखिनः का सन्देश दिया। इसी के अनुरूप अपने शासन का संचालन किया। यह वसुधैव कुटुंबकम के विचार पर अमल था। विजय दशमी से इसी भारतीय संस्कृति का सन्देश मिलता है। उत्सव के साथ ही रामलीला के माध्यम से भी इस महान व उदार संस्कृति का उद्घोष होता है।
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