Sirsa News: सिरसा की बिमला कस्वां ठेठ बागड़ी बोली में रक्तदान के लिए कर रहीं जागरूक
सिरसा। नारी को नारायणी की उपाधि दी गई है। वह सृष्टि की जन्मदात्री है, शक्ति स्वरूपा है। ऐसी ही एक हस्ती हैं बिमला कस्वां। उनके जागरूकता संदेश को सुनकर अब तक हजारों युवक, युवतियां रक्तदान जैसे पुनीत कार्य में जुड़ चुके हैं। उनके जागरूकता संदेश की विशेष बात यह है कि वह ठेठ बागड़ी बोली में अपनी बात रखती हैं।
रक्तदान के लिए प्रेरित करते हुए कहती हैं- खून दान करण तै शरीर में कोई कमी कोणी आवै, बल्कि अगर किसी की जान बचै तो म्हानै खुशी होवे। उनका परिधान भी ठेठ हरियाणवी होता है। सिर पर बोरला, दामण पहने जब वे स्टेज पर अपनी बात रखती हैं तो बड़े-बड़े वक्ता अवाक रह जाते हैं।
सीधी सरल भाषा में रक्तदान का महत्व बताने वालीं बिमला कस्वां स्वयं 50 से अधिक बार रक्तदान कर चुकी हैं। उनके परिवार के सभी सदस्य भी रक्तदान से जुड़े हैं। हाल ही में चेन्नई के दात्री ब्लड स्टेम सेल डोनर्स ने उन्हें सम्मानित किया।
बिमला कस्वां बताती हैं कि उनका जन्म राजस्थान के गांव खाराखेड़ा जिला हनुमानगढ़ में हुआ। शादी सिरसा के गांव उमेदपुरा निवासी भागीरथ कस्वां से हुई, जो अब सेवानिवृत्त पटवारी हैं। वह कभी स्कूल नहीं गईं। पहली बार 10 जनवरी 1997 को रक्तदान किया। रक्तदान करने का महत्व और महिलाओं के लिए रक्त कितना जरूरी है, यह जानने के बाद वह लोगों को, खासकर युवाओं को जागरूक करने लगीं।
मिला सम्मान
बिमला कस्वां भले ही बचपन में खुद स्कूल नहीं जा पायीं, लेकिन अब वह देश के विभिन्न राज्यों के मेडिकल काॅलेजों, विश्वविद्यालयों, स्कूलों में जाकर जागरूकता फैला रही हैं। ‘इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनोहेमेटोलॉजी’ (आईएसबीटीआई) उन्हें अवार्ड ऑफ एप्रिसिएशन और नेशनल अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है।
पीआईएमएस मेडिकल काॅलेज जालंधर में उन्हें अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस से नवाजा जा चुका है। बिमला देवी अब तक 90 से अधिक रक्तदान कैंपों में मुख्यातिथि, विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित होकर रक्तदान के लिए प्रेरक संदेश दे चुकी हैं।
ऐसे देतीं हैं संदेश
मन्नै बी कोणी पतो हो के खूनदान करयां कै होवे। बहनों बेशक थैं खूनदान न करो, पर एक बार खूनदान कैंप में जाकै जरूर देखो। युवावां नै खासकर लड़कियां नै संदेश देवणो चाहूं हूं कै थै पौष्टिक भोजन खाओ, फल सब्जियां खाओ ताकि थ्हारे शरीर में खून की कमी न रहवै। एक स्वस्थ मां ए स्वस्थ बच्चे नै जन्म दे सकै। मन्नै मेरे अनपढ़ रहण को दुख सै पर इस बात पै गर्व सै कि मैं खूनदान करूं और म्हारा विचार सुणकै युवा खूनदान के खातर आगे आ रहया सै।