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Dol Purnima 2025: डोल पूर्णिमा 2025 कब और कैसे मनाया जाएगा यह खास त्योहार, जानें तिथि और महत्व

Dol Purnima 2025: डोल पूर्णिमा 2025 कब और कैसे मनाया जाएगा यह खास त्योहार, जानें तिथि और महत्व
Kyu Manate Hai Dol Purnima: डोल पूर्णिमा 2025, 13 मार्च को मनाई जाएगी। यह राधा-कृष्ण के प्रेम का त्योहार है, जो बंगाल, असम, बिहार आदि में डोल यात्रा, भजन-कीर्तन और रंग-गुलाल के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। उदया तिथि पर होलिका दहन भी होता है। जानें डोल पूर्णिमा का महत्व और मुहूर्त।

Dol Purnima 2025 Date And Time Kyu Manate Hai Dol Purnima: डोल पूर्णिमा (Dol Purnima) भारत के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाने वाला एक रंगारंग त्योहार है। यह खासकर बंगाल, असम, त्रिपुरा, बिहार, गुजरात, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों में लोकप्रिय है। इस दिन भगवान राधा-कृष्ण की पूजा होती है और उनकी मूर्तियों को डोली में सजाकर भक्त भजन-कीर्तन के साथ यात्रा निकालते हैं।

इसे डोल यात्रा (Dol Yatra) कहते हैं। बंगाली कैलेंडर में यह साल का आखिरी पर्व माना जाता है और इसी दिन होलिका दहन (Holika Dahan) भी होता है। लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर, नाच-गाकर इस उत्सव को खुशी से मनाते हैं। आइए जानते हैं कि डोल पूर्णिमा 2025 कब है और इसे क्यों मनाया जाता है।

Dol Purnima 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

इस साल डोल पूर्णिमा 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे से शुरू होगी और 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक चलेगी। उदया तिथि के आधार पर यह त्योहार 13 मार्च को मनाया जाएगा। इस समय के दौरान भक्त राधा-कृष्ण की भक्ति में डूबे रहते हैं।

डोल पूर्णिमा का महत्व: क्यों है यह पर्व खास?

डोल पूर्णिमा राधा और कृष्ण के अनूठे प्रेम का प्रतीक है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने राधा से अपने दिल की बात कही थी। कथा के अनुसार, राधा अपनी सखियों के साथ झूला झूल रही थीं, तभी कृष्ण ने उनके चेहरे पर फाग (गुलाल) लगाया। झूले को ही डोल कहा जाता है, और इसके बाद राधा की सखियों ने इस जोड़े को पालकी में बिठाकर प्रेम के मिलन का उत्सव मनाया। यहीं से डोल यात्रा की परंपरा शुरू हुई। आज भी बंगाल में सूखे रंगों के साथ यह यात्रा निकाली जाती है, जो इस पर्व की शोभा बढ़ाती है।

डोल पूर्णिमा पर क्या-क्या होता है?

इस दिन राधा-कृष्ण की मूर्तियों को फूलों और आभूषणों से सजाया जाता है। फिर इन्हें डोली में रखकर भक्त “होरी बोला” के नाद के साथ जुलूस निकालते हैं। महिलाएं झूला झूलती हैं और एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर खुशियां बांटती हैं। यह त्योहार भक्ति और उल्लास का अनोखा संगम है।


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