Phalgun Purnima vrat katha 2025: फाल्गुन पूर्णिमा की पौराणिक कथा, जानें प्रह्लाद और होलिका की कहानी

Phalgun Purnima vrat katha 2025: फाल्गुन पूर्णिमा व्रत और कथा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा की कथा (Falgun Purnima Katha) महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति से शुरू होती है। दिति के गर्भ से दो बलशाली पुत्रों, हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) और हिरण्याक्ष (Hiranyaksha) का जन्म हुआ। दोनों भाइयों ने अपनी शक्ति से देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। उनके अत्याचारों से देवलोक में कोहराम मच गया। तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार (Varaha Avatar) में प्रकट होकर हिरण्याक्ष का अंत किया। भाई की मौत से गुस्साए हिरण्यकश्यप ने विष्णु को अपना दुश्मन मान लिया और ब्रह्मा जी (Lord Brahma) की तपस्या में जुट गए, ताकि वो अजेय बन सकें।
उनके तप में लीन होने के दौरान देवताओं ने दैत्यों पर हमला कर स्वर्ग वापस ले लिया। उस समय हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु (Kayadhu) गर्भवती थीं। देवराज इंद्र (Indra) उन्हें बंदी बनाकर ले जा रहे थे, तभी रास्ते में देवर्षि नारद (Narad Muni) से उनकी भेंट हुई। नारद जी ने इंद्र से पूछा, "यह गर्भवती महिला कहां ले जाई जा रही है?" इंद्र ने जवाब दिया कि इसके गर्भ में हिरण्यकश्यप का दुष्ट पुत्र है, जिसे वो मारना चाहते हैं। नारद जी ने कहा, "नहीं, इसके गर्भ में तो भगवान विष्णु का भक्त पल रहा है।" यह सुनकर इंद्र ने कयाधु को छोड़ दिया।
नारद जी कयाधु को अपने आश्रम ले गए और वहां उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दिया। कयाधु के गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी इसका गहरा असर हुआ। कुछ समय बाद कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। दूसरी ओर, हिरण्यकश्यप ने तपस्या पूरी कर ब्रह्मा जी से वरदान पाया और अपने राज्य लौट आए।
प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकश्यप का क्रोध
प्रह्लाद के बड़े होने पर उनकी शिक्षा शुरू हुई। एक दिन हिरण्यकश्यप अपने मंत्रियों के साथ दरबार में बैठे थे। प्रह्लाद अपने गुरु के साथ वहां आए और पिता को प्रणाम किया। खुश होकर हिरण्यकश्यप ने पूछा, "बेटे, तुमने अब तक क्या सीखा है? मुझे बताओ।" प्रह्लाद ने जवाब दिया, "पिताजी, मैंने सीखा है कि जो जन्म-मृत्यु से परे हैं, जो इस संसार के रक्षक हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।" यह सुनकर हिरण्यकश्यप गुस्से से भर उठे। उन्होंने गुरु पर चिल्लाते हुए कहा, "तूने मेरे बेटे को मेरे शत्रु की भक्ति क्यों सिखाई?"
गुरु ने सफाई दी, "मैंने ऐसा कुछ नहीं सिखाया।" हैरान हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा, "फिर यह ज्ञान तुम्हें कहां से मिला?" प्रह्लाद ने कहा, "यह भगवान विष्णु की कृपा है, जो हर किसी को सिखाते हैं।" यह सुनकर हिरण्यकश्यप का गुस्सा और भड़क गया। उन्होंने प्रह्लाद को डांटते हुए कहा, "यह विष्णु कौन है? तू बार-बार उसका नाम क्यों ले रहा है?"
होलिका दहन और प्रह्लाद की रक्षा
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की, लेकिन उनकी भक्ति अडिग रही। गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने अपने सैनिकों को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। सैनिकों ने कई तरीकों से कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद पर कोई आंच न आई। आखिर में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे आग से न जलने का वरदान था। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन प्रह्लाद भगवान का नाम जपते रहे और चमत्कार हुआ—होलिका जलकर राख हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित बच गए।
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास हर संकट से बचा सकता है। फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन इसी जीत का प्रतीक है।
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