Pruning Harvest: आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती और सेब में कब करें कटाई-छंटाई, जानें क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

Pruning harvests in Peaches: आज इस लेख के माध्यम से हम इन फल वृक्षों की कटाई –छंटाई (जो की वृक्षों की सही बढ़वार, वृक्षों की लम्बाई, शाखाओं की वार्षिक वृद्धि एवं अच्छे छत्र प्रबंधन के लिए आवश्यक हैं ) एवं लगाई जाने वाली प्रमुख किस्मों पर प्रकाश डालेंगे।  
 

लाडवा ( कुरुक्षेत्र ) डॉ  शिवेंदु प्रताप सिंह सोलंकी Pruning harvests in Peaches, Plums pears and Apples : फसल विविधीकरण की दृष्टि से गर्म मैदानी इलाकों में वर्तमान समय में आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती एवं सेब की खेती का प्रचलन बढ़ रहा है। वातावरण एवं तापमान के अनुरूप ये फसलें किसानों को अच्छा मुनाफा दे रहीं है।  लेकिन सही समय पर और उचित तरीके से इनमे कटाई -छंटाई न की जाये तो उत्पादन सीधे तौर पर प्रभावित होता है।

आड़ू की छंटाई कब करें

आड़ू में कटाई -छंटाई का विशेष महत्व हैं। आड़ू के वृक्ष को  हमेशा खुला तंत्र प्रणाली (ओपन सेंटर सिस्टम) में काट कर छत्र बनाया जाता हैं। जिसमे मुख्य तने को ऊपर नहीं बढ़ने दिया जाता हैं तथा पार्श्व(साइड )  शाखाओं को ज्यादा से ज्यादा वृद्धि कराकर , छत्र बनाने पर जोर दिया जाता है। इसको बनाने के लिए वृक्षारोपण के समय ही एक साल के  पौधों को हम 90 से. मी. की लम्बाई में ऊपर से काट देते हैं एवं  45 से. मी. तक जमीन की सतह से कोई भी शाखा को रखते नहीं हैं तना निचे से बिलकुल साफ कर देते हैं। 

छत्र प्रबंधन पर ध्यान दें

ऊपर की शाखाओं को 4-8 बड रखते हुए आधा- आधा काट देते हैं, मुख्य तने को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता हैं अगले वर्ष इन्हीं प्राथमिक शाखाओं पर अगली शाखाओं का विकास होता हैं जो एक साल पुरानी होने पर फल देती हैं। ध्यान रहे प्रारंभिक 2-3 वर्षों तक ज्यादा फल न ले छत्र प्रबंधन पर ध्यान दे।  

इस बात का ध्‍यान दखें

एक बार 2-3 स्तर तक शाखाओं द्वारा अच्छा छत्र बन जाने पर, हम हर साल नियमित रूप से हम शाखाओं की कटाई करते हैं। आड़ू की जिस शाखा पर एक बार फल लग जाये उसमे दोबारा कोई फल नहीं लगता हैं। अतः हर साल शाखाओं की कटाई की जाती हैं जिससे नई शाखाओं का विकास हो सके।

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जो एक साल पुरानी होने पर फल देती हैं। शाखाओं को देखेंगे तो पाएंगे,आड़ू की शाखाओं में तीन कलियों का समूह दिखाई देता हैं जिसकी किनारे की दो कलियाँ फूल एवं फल बनाती हैं तथा बीच वाली कली (आंख ) पत्ते एवं नई शाखा का उत्पत्ति केंद्र बनती है।

आलूबुखारा पेड़ की छंटाई कब करें

आलूबुखारा के वृक्ष को भी खुला तंत्र प्रणाली (ओपन सेंटर सिस्टम) में काट कर छत्र बनाया जाता हैं। आलूबुखारा में भी फल हमेशा एक साल पुरानी शाखा में ही लगता है। जिस शाखा में एक बार फल लग गया उसमे दोबारा फल नहीं लगता। लेकिन इसमें ध्यान योग्य बात यह हैं की आलूबुखारा में छोटी पतली शाखाएँ होती हैं जी बड़ी मोटी शाखाओं से निकलती हुई गुच्छों में दिखती हैं इन्हीं में फूल एवं फल लगते है।  

इन बातों का रखें ध्‍यान

हर साल कटाई - छंटाई करते ध्यान रखे ऊपर जाने वाली मोटी लम्बी शाखाओं को 2-3 बड छोड़ कर निचे से काट दें जिससे अगले साल के लिए उन्ही से नई फल देने वाली शाखा का विकास हो साथ ही साथ छोटी पतली शाखाओं में भी अगले हिस्से में उत्प्रेरण के तौर पर हल्की कटाई करें जिससे अधिक से अधिक अगले साल फल देने वाली शाखाओं का निर्माण हो सके।

नाशपाती एवं सेब

नाशपाती एवं सेब में पौधों को परिवर्तित केंद्रीय तना प्रणाली ( मॉडिफाइड सेंट्रल लीडर सिस्टम ) में छत्र को बना के रखते है।  इस प्रणाली में हम पौधा लगाते समय अगर पौधे की वृद्धि अच्छी है तो ऊपर से काटते हुए 90 से 100 से. मी.  का पौधा रख लेते है। तथा 45 से 60 से.  मी. तक ज़मीन की सतह से सारी शाखाएँ हटा देते है जिस से हम प्रारंभिक मुख्य तना बना सके।

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अगर पौधा अच्छी लम्बाई नहीं ले रहा तो ये काम एक साल की अच्छी वृद्धि के बाद करते है। बाद में बीच में सीधे जा रहे तने को नियंत्रित करते हुए उसमे ऊपर कटाई करते है (शीर्ष भाग ) जिससे मुख्य केंद्रीय तना फिर से ऊपर की तरफ अच्छी लम्बाई ले साथ ही साथ निचले स्तर की शाखाओँ को जो तने के चारो तरफ अच्छी तरह से फ़ैल रही हो तथा मुख्य केंद्रीय तने से 45 से 60 का कोण बना रही हो रख लेते है।

एक शाखा से दूसरी शाखा में 15 से 20 से. मी. का अंतराल रखते है। ऐसा ही क्रम हम मुख्य केंद्रीय तने के चार स्तर बनाने तक करते है साथ ही हर स्तर में पार्श्व (साइड ) द्वितीयक एवं तृतीयक शाखाओँ को स्पर (शाखाओँ में छोटी काली मोटी होकर गांठ बनती है जिसे स्पर कहते है बनाने की दृष्टि से काटते रहते है। यह क्रम आगे भी कटाई -छंटाई में चलता रहता है।   

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हर साल नाशपाती एवं सेब में स्पर बनाने की दृष्टि से हम हर साल की वार्षिक वृद्धि हुई शाखाओँ की कटाई करते है ।  जिससे शाखाओँ में आँख (कलियाँ) कम से कम संख्या में रहे और कलियों का विकास जल्दी हो सामान्यतः हम ऐसी शाखाओँ को पूरी लम्बाई का पचास प्रतिशत काट देते है तथा पार्श्व (साइड ) शाखाओँ में 2-4 कलियाँ रखते हुए काट देते है जिससे पार्श्व शाखाओँ में भी अच्छी मात्रा में स्पर का विकास हो जाता है।

ध्यान रहे एक छोटी कली स्पर (मोटी गांठ ) बनने में 1.5  से 2 साल ले लेती (पौधों के अच्छे रखरखाव एवं खान-पान पर निर्भर  ) है पूरी तरह से बने हुए यही स्पर 6-8 साल फल देते है। इसी लिए कभी भी फलों की तुड़ाई करते समय इन स्पर को नुकसान न पहुंचाए।

वृक्षों में अच्छा छत्र (ट्रेनिंग) एवं वार्षिक कटाई (प्रूनिंग ) की दृष्टि से ध्यान देने योग्य बातें

•    अच्छा छत्र बनाने के लिए मुख्य तने से पार्श्व (साइड ) शाखाओँ को 45 से 60 के कोण में रखें जिससे एक मजबूत कोण बनता है और शाखाओँ की मजबूती अच्छी रहती है। 
•    बहुत सकरे कोण वाली और बहुत निचे लटकती हुई शाखाओँ को पहले ही काट दे। 
•    अगर शाखाएँ 90 के कोण में हो तो तीस प्रतिशत शाखा रखकर काट दें जिससे आगे इस शाखा से निकलने वाली शाखाओँ को बाद में सही कोण बनाते हुए रख सकें। 
•    हमेशा कटाई -छंटाई के उपरांत मोटी कटी हुई शाखाओँ में कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का पेस्ट (  कॉपर ऑक्सी क्लोराइड स्टिकर के साथ ) लगा दें , छोटी कटी हुई शाखाओँ पर 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव कर दें।

आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती एवं सेब में कटाई-छंटाई का सही समय

गर्म मैदानी इलाको में जब ये पौधे  ठण्ड के समय सुप्त अवस्था में होते है तब हम इनकी कटाई -छंटाई करते है लगभग 15 दिसंबर से 15 जनवरी के मध्य । 

गर्म मैदानी इलाको में लगाए जाने वाली आड़ू , आलूबुखारा , नाशपाती एवं सेब की प्रमुख किस्मे।  

•    आड़ू : शान -ए-पंजाब , प्रभात , प्रताप , फ्लोरिडा प्रिंस , अर्ली ग्रांडे 
•    आलूबुखारा : सतलुज पर्पल , काला अमृतसरी , सांता रोसा 
•    नाशपाती : पत्थर नख , पंजाब नख , पंजाब ब्यूटी , पंजाब गोल्ड , पंजाब नेक्टर , बग्गूगोशा , निजिसीकी 
•    सेब : अन्ना , डोरसेट गोल्डन , एच .आर. एम. ऐन. -99

(लेखक विषय वस्तु विशेषज्ञ, उप उष्ण कटिबंधीय फल केंद्र, बागवानी विभाग, लाडवा ( कुरुक्षेत्र ) में कार्यरत हैं।)

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