Ram Mandir हिंदुस्तान समुदाय, संप्रदाय, पंथ से ऊपर उठ कर एक श्रीराम की बात कर रहा है

Ram Mandir News in Hindi : सोचा करते थे ऐसा कौन हो सकता है जो मर्यादा में पुरुषोत्तम हो। गुज़रते वक़्त ने सिखाया कि ख़ुद के अंदर राम हैं, अपने आप में रघुनंदन, रमण, रामरज, रामकिशोरे, रामजी, रमित, रमेश, रामदेव, रामदास, रामचरण, रामचंद्रा, रामाया, रामानंद, रमोजी सभी तो हैं।
 

Haryana News Post, (नई दिल्ली) Ram Mandir Ayodhya News : देश भर से बहुत ख़ूबसूरत तस्वीरें आ रही हैं। भारत राममय है। देख कर ख़ुशी हो रही है कि हिंदुस्तान समुदाय, संप्रदाय, पंथ से ऊपर उठ कर एक श्रीराम की बात कर रहा है।

गुजरात से अगरबत्ती तो सीतामढ़ी से मिष्ठान आ रहा है। किशनगंज के देवदास 23 साल के बाद पांव में चप्पल पहनेंगे। देवदास ने 23 साल से संकल्प लिया था कि जब तक राम 'टाट' ले 'ठाठ' में नहीं आएंगे, पांव को नंगा रखेंगे। मध्य प्रदेश के 'ताज अकबर' जन्म से देख नहीं सकते पर रोज़ राम भजन लिखते हैं।

भारत में अब राम कथा या किताब में नहीं हैं बल्कि जन गण के मन में हैं। 'अमीर ख़ुसरो' के 'छाप तिलक' में भी राम हैं, अवध के भजन में भी राम हैं, गुरबाणी में भी राम ही समाए हैं। अखंड अटल भारत 22 जनवरी के इंतज़ार में है।

कल मेरी सोसाइटी में पूजित अक्षत लेकर रामभक्त आए। मुझसे कहा 22 जनवरी को झालर लगाइएगा, दिवाली मनाएंगे। मैंने कहा दीप भी जलाऊंगा, तब होगी दिवाली। इक़बाल अंसारी को प्राण प्रतिष्ठा का न्योता मिलना इस बात की तस्दीक है कि राम पूरे भारत को एक सूत्र में पिरो रहे हैं।

सियासत करने वाले परेशान हैं, जो सांप्रदायिक थे वो हैरान हैं। परेशान और हैरान ये सोच कर हैं कि देश एक धागे में कैसे बंध गया। बंधा ना होता तो घर घर अक्षत ना जाते, बंधा ना होता तो राम ना रमाते, बंधा ना होता तो रामधुन ना गाते। 

बचपन में रामानंद सागर का 'रामायण' देख कर श्रीराम को जाना। अरुण गोविल को तब राम समझते थे और दीपिका चिखालिया को जानकी। वक़्त गुज़रा, बड़े हुए तो पता चला कि वो तो टीवी सीरियल वाले राम थे। थोड़े समझदार हुए तो राम की खोज के लिए मन उत्सुक हो उठा।

सोचा करते थे ऐसा कौन हो सकता है जो मर्यादा में पुरुषोत्तम हो। गुज़रते वक़्त ने सिखाया कि ख़ुद के अंदर राम हैं, अपने आप में रघुनंदन, रमण, रामरज, रामकिशोरे, रामजी, रमित, रमेश, रामदेव, रामदास, रामचरण, रामचंद्रा, रामाया, रामानंद, रमोजी सभी तो हैं।

छोटे से शहर से आता हूं, सुबह मंदिर की घंटियां घर के पास बजती थीं, साथ में मस्जिद से अज़ान की आवाज़ आती थी। पड़ोस के भाटिया जी मेरे डैडी को अज़ान की याद दिलाते थे तो हमारे पिता माथे तक हाथ ले जाकर जय रामजी की करते थे। वहां से नमस्कार के पहले संस्कार में राम आ गए। तब समझ आया कि ढूंढने से नहीं, रचाने बसाने से राम समझ में आते हैं।

ख़ैर ख़ुद की कहानियां बताने लगा तो शायद शब्द कम पड़ जाएं। फिर भी अपने शहर की एक याद साझा करना चाहता हूं। हम ठहरे गोमती किनारे वाले। हमारे शहर में बनारस का रस है, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का 'कस मे' है और लखनऊ की नफ़ासत भी समाई है।

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जिस शहर से आता हूं वहां अवधी, भोजपुरी सब मिल जाएगी। एक बार बीमार पड़ा, बिस्तर पकड़ लिया। चौकिया धाम के बाबा चाचा प्रसाद ले आए, पड़ोस के भाटिया चाचा श्रीराम चरितमानस पास ही रख आए।

अरोड़ा जी के घर से पूजित सामान आया। उस वक़्त लगा कि इन सबमें राम हैं। हमारे घर ने राम को कभी मज़हब में नहीं बांधा। जिनके बीच परवरिश हुई उन्होंने राम रहीम को कभी अलग नहीं किया।

दिन भर कैसेट में अल्लामा इक़बाल का शेर गीत बन कर कानों में मिश्री घोलता था। एक अंतरा आता तो उसे REWIND कर देते थे। वो अंतरा था- "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा"।

तो भई ऐसे खोजे हमने अपने राम। हमारे राम ना तो 6 दिसंबर 1992 को दूर हुए और ना ही आज हमसे अलग हो पाए। हमारे संस्कारों ने 'जय रामजी' को 'सलाम' से अलग नहीं होने दिया। हमारे राम सरस, सहज और सरल हैं।

सच बोलो तो राम, झूठ बोलो तो रावण। साथ दो तो हनुमान, दोस्त बन कर लड़ो तो सुग्रीव। सही पर अटल हो जाओ तो अंगद, भाई का साथ निभाओ तो लक्ष्मण। जीवनसखा हो तो जानकी, पिता बनो तो राजा दशरथ। राम को जीवन में ढालेंगे तो अंतरमन में मिलेंगे।

जय श्रीराम का उद्घोष जोश भरता है, एक बार करके देखिए। असदुद्दीन ओवैसी, बदरुद्दीन अजमल, तौक़ीर रज़ा से ग़ुज़ारिश है कि एक बार अयोध्या ज़रूर जाएं, वाणी में मिठास आएगी। 'भड़काऊ भाईजान' बनाम सनातन मुसलमान की लड़ाई लड़ता रहूंगा।

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