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चाहते है हमेशा बानी रहे माँ लक्ष्मी की कृपा, तो घर के मुख्य द्वार पर जरुर लगायें ये चीज़

चाहते है हमेशा बानी रहे माँ लक्ष्मी की कृपा, तो घर के मुख्य द्वार पर जरुर लगायें ये चीज़
स्वास्तिक वास्तु शास्त्र में एक मांगलिक चिन्ह के रूप में प्रयोग होता है और यह प्राचीनकाल से ही अपनाया जाता रहा है।

सनातन धर्म में घर या भवनों के मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्हों का प्रयोग शुभ माना जाता है। ये चिन्ह आस्था, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं और लोग इनका प्रयोग अपने घरों की सुरक्षा, कल्याण और धार्मिकता को बढ़ाने के लिए करते हैं।

वास्तु शास्त्र में भी इन मांगलिक चिन्हों के महत्व का उल्लेख होता है। इन चिन्हों का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व वास्तु शास्त्र द्वारा प्रतिपादित किया जाता है।

इन चिन्हों का वास्तु के प्रमाणों में अपना महत्वपूर्ण स्थान है और इन्हें वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार घर की स्थिरता, सौभाग्य, शांति और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए रखा जाता है।

ॐ का चिन्ह 

“ॐ” शब्द नाद का प्रतीक है और सनातन धर्म में यह शब्द अत्यंत पवित्र माना जाता है। नाद को ब्रह्म और परमब्रह्म का प्रतीक माना जाता है, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति हुई और इसे ओंकार कहा जाता है। वेदों का आरंभ भी “ॐ” से हुआ है।

इस शब्द का उच्चारण ध्यान में लिया जाता है और इसके माध्यम से मन को एकाग्र किया जाता है तथा शांति का मार्ग प्राप्त किया जाता है। इसलिए, इसे व्यापक रूप से धार्मिक एवं आध्यात्मिक उपायों में प्रयोग किया जाता है।

अगर आप इस चिन्ह को घर के मुख्य द्वार पर लगाते है तो आपके घर में खुशहाली बनी रहती है व् घर के लोगों में प्रेम और स्नेह बना रहता है.

स्वास्तिक चिन्ह 

स्वास्तिक वास्तु शास्त्र में एक मांगलिक चिन्ह के रूप में प्रयोग होता है और यह प्राचीनकाल से ही अपनाया जाता रहा है। यह चिन्ह वैदिक संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे शुभ और मांगलिक माना जाता है।

स्वास्तिक का चिन्ह चार कोणों वाला होता है और यह चारों दिशाओं को प्रतीक करता है। यह चिन्ह शुभता, सौभाग्य, समृद्धि और सुरक्षा को प्रतिष्ठित करने का संकेत होता है। इसलिए, इसे धार्मिक और मानसिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

स्वास्तिक का प्रयोग भवन के मुख्य द्वार के आस-पास किया जाता है ताकि नकारात्मक ऊर्जा और बाधाएं दूर रहें और सुख, समृद्धि और शुभता की ऊर्जा आवेशित हो।

इसे गणेश जी का चिन्ह माना जाता है, क्योंकि गणेश जी हमारे जीवन में विघ्नों को दूर करने और मांगलिक फल प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध हैं।

इसके साथ ही, इसे दिशापतियों की पूजा और आराधना में भी शामिल किया जाता है।


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