गुरुग्राम में बड़ा घोटाला: प्रॉपर्टी टैक्स बिलों में हेरफेर, लाखों का नुकसान!
गुरुग्राम में निजी एजेंसी द्वारा प्रॉपर्टी आईडी बनाने के नाम पर किए गए सर्वे में भारी गड़बड़ी किए जाने की जानकारी सामने आई है। इसका खुलासा नगर निगम द्वारा की गई आंतरिक जांच में हुआ है।
संपत्ति कर के तीन लाख 60 हजार बिलों में मोबाइल नंबर नहीं है, जबकि दो लाख 53 हजार बिलों से मालिकों के नाम और पता ही गायब है।निगम अधिकारी सर्वे के दो साल बाद भी इन छह लाख आईडी की खोजबीन नहीं कर पाया है।
ऐसे में अभी भी निगम के 80 कर्मचारी इनकी तालाश में जुटे हुए हैं। गुरुग्राम नगर निगम के पास प्रॉपर्टी आईडी से संबधित आई लाखों शिकायतों के बाद की गई जांच में यह गड़बड़ियां सामने आईं। इन शिकायतों को लेकर शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने पांच जुलाई को चंडीगढ़ में समीक्षा बैठक की थी।
बैठक के दौरान पूरे प्रदेश की नगर निगम, नगर परिषदों में प्रॉपर्टी आईडी में आ रही दिक्कतों को लेकर समीक्षा की गई थी। जब अधिकारियों ने पूरे प्रदेश के प्रॉपर्टी आईडी के ब्योरा रखा तो मुख्यालय स्तर के अधिकारी भी हैरान रह गए।
बैठक में अधिकारियों को जानकारी दी गई कि जिस एजेंसी ने प्रॉपर्टी आईडी बनाने के लिए तीन साल पहले जो सर्वे किया था, उस सर्वे में एजेंसी ने प्रॉपर्टी आईडी की संख्या तो बढ़ा दी, लेकिन आईडी में पूरी जानकारी नहीं दी।
बिलों के भुगतान के लिए एजेंसी ने इस तरह से सर्वे कर दिया है कि अब निगम अधिकारियों को यह प्रॉपर्टी आईडी ढूंढने से भी नहीं मिल रही है। पूरे प्रदेश के 11 निगमों की बात करें तो करीब 36 लाख प्रॉपर्टी आईडी से लोगों के नाम, मोबाइल नंबर और पता गायब है।
नगर निगम अब नाम-नंबर ढूंढने में कर रहा लाखों खर्च
सर्वे के दौरान निजी एजेंसी ने नगर निगम गुरुग्राम, फर्रुखनगर, सोहना और पटौदी नगर परिषद क्षेत्र में कुल नौ लाख 15 हजार 279 प्रॉपर्टी आईडी की सर्वे रिपोर्ट निगम को सौंपी थी। इसमें से नगर निगम गुरुग्राम में सर्वे से पहले साढ़े तीन लाख के करीब प्रॉपर्टी आईडी थी, लेकिन सर्वे के बाद इनकी संख्या छह लाख 66 हजार हो गई है।
प्रॉपर्टी आईडी से नाम और नंबर ढूंढने के लिए निगम की तरफ से अब लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।इन आईडी को ढूंढने के लिए निगम ने 80 कर्मचारियों को लगाया हुआ है।
स्वयं सत्यापन करवाकर भी निगम अधिकारी इस आईडी के नाम- नंबर ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं।
इसके लिए निगम ने एक प्रॉपर्टी आईडी का स्वयं सत्यापन करवाने के लिए कर्मचारियों को सौ रुपये तो आमजन को दस रुपये देने का दावा किया हुआ है।
संपत्तियों की श्रेणी बदल दी गई
निगम की जांच में इसका भी खुलासा हुआ है कि एजेंसी के कर्मचारियों ने लोगों के साथ सांठगांठ करके प्रॉपर्टी आईडी में संपत्तयों की श्रेणी को ही बदल दिया।
आरोप है कि श्रेणी बदलने से व्यवसायिक संपत्तियों के लोगों को लाखों रुपयों के संपत्तिकर बच गया, जबकि राजस्व को नुकसान हुआ।
यह होती है प्रॉपर्टी आईडी
शहर के नागरिकों को सड़क, स्ट्रीट लाइट आदि की सुविधा देने के लिए निगम की तरफ से लोगों को मकान के साइज के हिसाब से संपत्तिकर जमा करवाना होता है।
इसके लिए निगम की तरफ से पहले प्रॉपर्टी आईडी बनाई जाती है। उसमें प्रॉपर्टी मालिक का नाम, मोबाइल नंबर, पता आदि होता है।
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