Haryana News: कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा में देरी का फायदा मिल रहा भाजपा को, एंटी इनकम्बेंसी को दूर करने में जुटे भाजपा के फायरब्रांड नेता
चंडीगढ़। लोकसभा चुनावाें में भाजपा अपने सभी दस लोकसभा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद से ही लगातार प्रचार में जुटी है तो कांग्रेस इस मामले में फिसड्डी साबित हो रही है। आलम यह है कि कांग्रेस का टिकटों में देरी का भाजपा को अब काफी लाभ मिलता दिखाई दे रहा है। भाजपा के प्रभाव में सभी 10 लोकसभा सीटों के साथ, राज्य का राजनीतिक माहौल 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर संभावित परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
जनता के बीच बढ़ते असंतोष के कारण सत्ता पर सत्तारूढ़ दल की पकड़ को अनेक चुनौतियों ने ढीला कर रखा है । किसान आंदोलन से लेकर दूसरे अनेक मुद्दे सतह के नीचे उबल रहे हैं, माना जा रहा है कि ये सभी मुद्दे संभावित रूप से सत्ताधारी के गढ़ को कमजोर कर रहे हैं।
इन सब मामलों के चलते कांग्रेस को पहले जिन सीटों पर कुछ बढ़त दिखाई दे रही थी वहां अब भाजपा ने लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए अपने टॉप फाॅयर ब्रांड नेताओं को मैदान में उतार दिया। जबकि इस ठीक उल्ट कांग्रेस के नेता अभी तक उम्मीदवारों के नाम तक को फाइनल नहीं कर पा रहे हैं।
पांच सीटों पर लोगों की नाराजगी दूर करने में जुटी भाजपा
प्रदेश में 2019 के चुनावों में भाजपा का स्ट्राइक रेट सौ फीसदी था यानी की दस में से दस। मगर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मुकाबलों फिफ्टी फिफ्टी का है। कुछ सीटों पर लोगों में काफी नाराजगी भी दिखाई दे रही थी। इस बात को भांपकर भाजपा ने पहले ही अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया। ऐलान के बाद प्रचार प्रसार भी शुरू हुआ। सिरसा, हिसार, रोहतक, भिवानी महेंद्रगढ़ तथा सोनीपत में कईं स्थानों पर प्रत्याशियों को लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
लोगों की नाराजगी को देख अब भाजपा आलाकमान ने स्थिति को काबू में करने के लिए अपने टॉप लीडर्स को मैदान में उतार दिया। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व पूर्व सीएम मनोहर लाल खुद दो दिन से सिरसा व हिसार में डेरा डाले हुए हैं ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके। इतना ही नहीं गोपाल कांडा, सुनीता दुग्गल तथा दूसरे भाजपा नेताओं को एक साथ मंच पर बैठाकर गुटबाजी नहीं होने का संदेश भी लोगों में दे दिया। इसके साथ साथ सोनीपत तथा रोहतक में भी नेताओं को विशेष जिम्मेदारी दी गई हैं।
प्रत्याशियों के चयन में उलझी कांग्रेस, नहीं भूना पा रही एंटी इनकंबेंसी
कांग्रेस की आपसी खींचतान भाजपा के लिए वरदान साबित हो रही है। भाजपा के प्रत्याशियों को जहां प्रचार के लिए दो माह से अधिक का समय मिलेगा वहीं कांग्रेस के लिए यह समय लगातार कम होता जा रहा है। प्रत्येक प्रत्याशी को नौ विधानसभाओं में प्रचार करना है। अगर समय कम मिलेगा तो निश्चित तौर पर कांग्रेस कम गांवों तक अपने प्रत्याशियों को पहुंचा पाएगी। इसके अलावा जहां भाजपा एंटी इनकम्बेंसी को दूर करने में लगी है वहीं कांग्रेस इस मौके का फायदा उठाने से चूक रही है।
अधिकतर सीटों को लेकर फंसा है पेंच
कांग्रेस की शुक्रवार को हुई सेंट्रल इलेक्शन कमेटी में भी प्रत्याशियों के चयन पर सहमति नहीं बन पाई। सूत्रों की मानें तो पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा व उदयभान एक तरफ तो सैलजा रणदीप दूसरी तरफ नजर आए। दोनों गुट जिताऊ प्रत्याशियों पर सहमति बनाने की बजाए अपने अपने पक्ष उम्मीदवारों का पक्ष लेते नजर आए।
इस बात को लेकर हाईकमान भी नाराज नजर आया और दोबारा से सीईसी की बैठक में आने का कहा। कांग्रेस के नेताओं की मानें तो सैलजा सिरसा से या अंबाला से चुनाव लड़े इस बात को लेकर फैसला नहीं कर पाई तो हिसार, सोनीपत, भिवानी महेंद्रगढ़, करनाल तथा गुरुग्राम पर भी पेंच फंसा हुआ है।
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