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Rohtak Lok Sabha Seat: हुड्डा परिवार के गढ़ रोहतक पर टिकी सबकी निगाहें, रोहतक लोकसभा चुनाव पर हुड्डा परिवार ने सबसे ज्यादा 9 बार जीत दर्ज की

Rohtak Lok Sabha Seat: हुड्डा परिवार के गढ़ रोहतक पर टिकी सबकी निगाहें, रोहतक लोकसभा चुनाव पर हुड्डा परिवार ने सबसे ज्यादा 9 बार जीत दर्ज की 
हरियाणा में हुड्डा परिवार का गढ़ मानी जाने वाली रोहतक लोकसभा सीट हमेशा से प्रदेश की उन सीटों में रही है जिनकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में की जाती है। इस सीट पर राजनीतिक परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिली है।

चंडीगढ़। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां जोर शोर से चुनावी तैयारियों में जुट गई हैं। देश भर में छठे चरण में होने वाले चुनावों में हरियाणा में 25 मई को लोकसभा चुनाव होने  हैं। भाजपा ने जहां सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट्स के नाम की घोषणा कर दी है तो वहीं मुख्य विपक्षी दल ने किसी भी सीट पर अपने कैंडिडेट्स की घोषणा नहीं की है।

हरियाणा में हुड्डा परिवार का गढ़ मानी जाने वाली रोहतक लोकसभा सीट हमेशा से प्रदेश की उन सीटों में रही है  जिनकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में की जाती है। इस सीट पर राजनीतिक परिवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई देखने को मिली है। इस सीट पर देश के पूर्व उप  प्रधानमंत्री और कांग्रेस दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच चुनाव जंग के चर्चे आज भी सबको याद हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा बार हुड्डा परिवार का कब्जा रहा है और इस सीट पर परिवार की तीनों पीढ़ियों ने चुनाव जीते हैं। 

हुड्डा परिवार ने 9 बार रोहतक सीट पर चुनाव जीता

रोहतक सीट पर शुरु से ही प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक परिवारों में से एक हुड्डा परिवार का दबदबा रहा है। रोहतक सीट के अस्तित्व में आने के बाद साल 1952 से लेकर 2019 तक एक उपचुनाव को मिलाकर कुल 17 उपचुनाव हुए हैं और इनमें से 9 बार हुड्डा परिवार यहां विजेता बनकर उभरा है। इस सीट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर हुड्डा 2 बार साल साल 1952 और 1957  में चुनाव जीतने में सफल रहे।  

फिर उनके  भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने साल 1991, 1996, 1998 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीता।  साल 1991, 1996  और 1998 के चुनाव में उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्री देवी लाल को पटखनी दी। साल 1998 में हुए काटे के मुकाबले में भूपेंद्र हुड्डा ने देवीलाल को महज 383 वोटों से हराया।

उस चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा को 2,54,951 जबकि देवीलाल को 2,54,568 वोट मिले थे। इसके बाद वो सीएम बने तो उन्होंने रोहतक लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और किलोई विधानसभा सीट से चुनाव जीता। सीट खाली होने के चलते साल 2005 में हुए उपचुनाव में उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा जो कि फिलहाल  राज्यसभा सांसद हैं, ने चुनाव जीता। इसके बाद 2009 और 2014 में हुए चुनाव में भी दीपेंद्र हुड्डा चुनाव जीते और पिछली बार उनको एक बेहद ही करीबी चुनावी मुकाबले में भाजपा के अरविंद शर्मा से 7503 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। 

भाजपा की  डगर आसान नहीं है अबकी बार रोहतक में

भाजपा हाईकमान और राज्य नेतृत्व को इस बात का अच्छे से आभास है कि रोहतक सीट निकालना पार्टी कैंडिडेट् के लिए बेहद कठिन काम है। पिछली बार मोदी लहर होने के बाद भी यहां से भाजपा उम्मीदवार अरविंद शर्मा महज 7503 वोट से यहां चुनाव जीत पाए थे  लेकिन अबकी बार यहां की आबोहवा बदली बदली नजर आ रही है।

इसी के चलते भाजपा ने काफी मंथन के बाद सिटिंग सांसद को रोहतक से सीट दी है तो वहीं जजपा नेता व पूर्व डिप्टी सीएम तो भाजपा गठबंधन के तहत उनको रोहतक लोकसभा से उम्मीदवार बनाना चाहती थी लेकिन मैंने मना कर दिया। रोहतक सीट को लेकर भाजपा कितनी गंभीर है इस बात का अंदाजा इसी बात से  लगाया जा सकता है कि पार्टी का स्टेट लेवल का पार्टी कार्यालय रोहतक में ही बनाया गया है। 

रोहतक में 1863973 वोटर्स

रोहतक लोकसभा हलका पड़ता है जहाँ 18 लाख 63 हज़ार 973 मतदाता हैं. इस हलके में रोहतक जिले के चारों विधानसभा हलके - महम, गढ़ी सांपला किलोई, रोहतक और कलानौर हलके, झज्जर जिले के चार - बहादुरगढ़, बादली,झज्जर और बेरी हलके एवं रेवाड़ी जिले का कोसली विधानसभा हलका शामिल हैं। पिछली बार कोसली हलके में एकतरफा वोटिंग भाजपा कैंडिडेट के पक्ष होने के चलते दीपेंद्र को टक्कर के मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा। 

लोकसभा सीट के चलते दीपेंद्र की राज्यसभा सीट जाएगी कांग्रेस के हाथ से

इस सवैंधानिक पेंच के चलते दीपेंद्र हुड्डा की रोहतक सीट से उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस पार्टी दो राहों में फंस गई है। दरअसल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 की धारा 69(2) में स्पष्ट उल्लेख है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से ही राज्यसभा सदस्य है, इसके बाद भी वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो राज्यसभा में उस व्यक्ति की सीट उसके लोकसभा सदस्य चुने जाने की तारीख से ही खाली हो जाएगी।

ऐसे में यदि लोकसभा चुनाव दीपेंद्र हुड्डा जीतते हैं तो जैसे ही उन्हें लोकसभा सांसद का प्रमाण पत्र रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा दिया जाएगा, उसी पल से राज्यसभा की उनकी सदस्यता खत्म हो जाएगी। इसके बाद अगर रोहतक सीट पर राज्यसभा के लिए चुनाव होगा तो विधानसभा में वोटों के गणित से यह राज्यसभा सीट भाजपा के खाते में चली जाएगी।

ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ये नहीं चाहता कि उनकी सीट हाथ से निकले। इसको लेकर कांग्रेस हाईकमान और हुड्‌डा पिता-पुत्र के बीच मंथन चल रहा है। गौरतलब है कि दीपेंद्र का राज्यसभा में कार्यकाल 2026 तक है। उनके रोहतक लोकसभा सीट से चुनाव जीतने की परिस्थिति में उनकी राज्यसभा सदस्यता 4 जून 2024 से समाप्त हो जाएगी। तब उनकी राज्यसभा सदस्यता का शेष कार्यकाल एक वर्ष से अधिक होगा।

दीपेंद्र बोले चुनाव लड़ने के फैसले पर अडिग

जहां निरंतर चर्चा है कि अगर दीपेंद्र ने लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत गए तो कांग्रेस के हाथ से राज्यसभा सीट जा सकती है तो वहीं दूसरी तरफ दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि मैं पहले ही रोहतक से चुनाव लड़ने की कह चुका है और पीछे नहीं हटूंगा। हालांकि फिर भी तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन रोहतक से चुनाव लड़ने पर पार्टी हाईकमान के बाद पिता-पुत्र को ही फैसला लेना है। 


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