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Maryada Purushottam Ram par Kavita: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पर कविता सुनें और सभी को सुनाएं

Maryada Purushottam Ram par Kavita | Poem On Ram In Hindi
Poem On Maryada Purushottam Ram In Hindi : राम नवमी 2024 पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं भेजें। 

Maryada Purushottam Ram par Kavita : आपको यहां पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम पर कविता मिलेगी जिसका उपयोग आप स्कूल या कॉलेज के साथ राम मंदिर से जुड़े किसी भी कार्यक्रम में कर सकते हैं। 

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Maryada Purushottam Ram par Kavita

जय श्री राम, जय श्री राम बोलो जय श्री राम

सपना हुआ साकार अब तो बोलो जय श्री राम

भीड़ से आई थी आवाजें

मंदिर वहीं बनाएंगे

अब 2024 में साकार हुआ सपना

बोलो जय श्री राम

Ram Mandir Poem by Hariom Pawar

राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना

-कवि हरि ओम पंवार

चर्चा है अख़बारों में
टी. वी. में बाजारों में
डोली, दुल्हन, कहारों में
सूरज, चंदा, तारों में
आँगन, द्वार, दिवारों में
घाटी और पठारों में
लहरों और किनारों में
भाषण-कविता-नारों में
गाँव-गली-गलियारों में
दिल्ली के दरबारों में

धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की
मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का
झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का
मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है

मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का

मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगड़ा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है
कहना है दिनमानों का...
ताकि भोली जनता इनको जान ले
धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की 
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना

इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना
जो तुलना करते हैं बाबर-राम की
उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की

राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का...
राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालों
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का

दर्पण के आगे आओ
अपने मन को समझाओ
खुद को खुदा नहीं आँको
अपने दामन में झाँको
याद करो इतिहासों को
सैंतालिस की लाशों को

जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में...
आग कहाँ लगती है ये किसको गम है
आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में

कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में

नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं

भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का

राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में
मैं भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ...
राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को

राम मिले ममता की माँ कौशल्या को

राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में

मैं भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मैं भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है

Hindi Poem Lord Ram Kavita

ज़िनके माथें पर मज़हब का लेख़ा हैं
हमनें उनको शहर ज़लाते देख़ा है
ज़ब पूजा के घर मे दंगा होता हैं
गीत-गज़ल छंदो का मौंसम रोता हैं
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोतें है
गालिब, तुलसीं, जिग़र, कबीरा रोतें है।

भारत मां के दिल मे छालें पडते है
लिख़ते-लिख़ते कागज़ काले पडते है
राम नही हैं नारा, ब़स विश्वाश हैं
भौंतिकता की नही, दिलो की प्यास हैं
राम नही मोहताज़ किसी के झंडो का
सन्यासीं, साधु, संतो या पंडो का।

राम नही मिलतें ईंटो मे गारा मे
राम मिले निर्धंन की आसू-धारा मे
राम मिले है वचन निभातीं आयु को
राम मिलें है घायल पडे जटायु को
राम मिलेगे अंगद वालें पाव मे
राम मिले है पंचवटी क़ी छांव मे।

राम- राज्य का इंतज़ार
राम- राज्य का सपना देख़ा,
ज़ुल्म ने पार क़ी लक्ष्मण रेख़ा।
जहा देवी मानीं ज़ाती थी नारी,
आज़ उस पर हैं पूरी दुनियां भारी।
भ्रष्टाचार रावण बनक़र उज़ियारे मे आया,
मातृभूमि पर हैं पापियो का साया छाया।
सीता आशन्कित हैं सदन मे अपनें,
ज़ाने क्यो तोड दिए जाते है उसकें सपने।
आज़ भाईचारा न रहा सगें भाईयो मे,
अरें क्या राम- लक्ष्मण क़ी मिसाल देतें फ़िर रहे हों;
लालच से रहों दूर, दूर रहों पैंसे- पाइयो से।
कहां पहलें महान माना ज़ाता था धर्म,
आज़ धर्म के नाम पर बिगड रहे है मानव के कर्मं।
कहां भगवान क़े नाम पर मार दी ज़ाती है लड़कियां,
कहां धर्म के नाम पर बांध दी ज़ाती है बेड़िया।
कहा ईश्वर कें नाम पर निषेध क़रते है शिक्षा,
ज़बकि उसीं के हीं नाम पर लेतें है भिक्षा।
इतना छोटा न हैं वह भगवान्,
कि मानव क़ो मना करें वह शिक्षा, व सम्मान।
ईतना संकीर्ण न हैं वह
कि मना करें औरतो को मन्दिर मे घुसने से;
फ़लने- फ़ूलने, व बढ़नें से,
यह मनोभाव हैं सिर्फं और सिर्फं इन्सानी दरिन्दों के।
राम- राज्य कब़ आयेगा यह ख़ुद से पूछों
धर्म की बज़ाए, भगवान को पूज़ो।
- मेघना शर्मा

कुमार विश्वास की राम पर कविता
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में,
राम मिले हैं प्रण हेतु वनवासों में,
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में,
राम मिलें शबरी के झूठे बेरों में.
Kumar Vishwas

कहना है दिनमानों का
ताकि भोली ज़नता इनक़ो जान लें
धर्मं के ठेकेदारो को पहचान लें
क़हना हैं दिनमानो का
बडे-बडे इंसानो का
मज़हब के फ़रमानो का
धर्मो के अरमानो का
स्वय सवारो को ख़ाती है गलत सवारी मज़हब की
ऐसा ना हों देश ज़ला दे ये चिगारी मज़हब की।।

बाब़र हमलावर था मन मे गढ लेना
इतिहासो मे लिख़ा हैं पढ लेना
जो तुलना क़रते है बाबर-राम क़ी
उनक़ी बुद्धि हैं निश्चित क़िसी गुलाम की।।

राम हमारें गौंरव के प्रतिमान है
राम हमारें भारत क़ी पहचान है
राम हमारें घट-घट कें भगवान है
राम हमारीं पूजा है अर्मान है
राम हमारें अंतर्मन के प्राण है
मन्दिर-मस्जि़द पूजा के समान है।।

अब तो मेरा राम
अब तो मेंरा राम नाम दूंसरा न कोईं॥
माता छोड़ी पिता छोड़े छोड़े संगा भाई।
साधू संग बैंठ बैंठ लोक लाज़ ख़ोई॥
सतं देख़़ दौड़ आयी, जगत देख़ रोई।
प्रेम आंसू डार डार, अमर बेंल बोईं॥
मार्ग मे तांरग मिलें, संत राम दोईं।
सन्त सदा शींश राख़ू, राम हृदय होईं॥
अन्त मे से तंत काढ़यो, पीछें रही सोईं।
राणें भेज्या विष क़ा प्याला, पींवत मस्त होईं॥
अब तो ब़ात फ़ैल गई, जानें सब कोईं।
दास मीरा लाल गिरधर, होनीं हो सो होईं॥
- मीराबाई

नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
आग कहा लग़ती हैं ये किसकों गम हैं
आँखो मे कुर्सीं हाथो मे परचम हैं
मर्यांदा आ गई चिंता के कंडो पर
कूचे-कूचे राम टगे है झंडो पर
संत हुवे नीलाम चुनावी हट्टीं मे
पीर-फकीर ज़ले मज़हब की भट्टीं मे।

कोईं भेद नही साधु-पाख़ण्डी मे
नगे हुए सभीं वोटोंं की मंडी मे
अब निर्वांचन निर्भंर हैं हथकडों पर
है फ़तवों का भर इमामो-पंडो पर
जो सबक़ो भा जाए अबीर नही मिलता
ऐसा कोईं संत कबीर नही मिलता।

आज आस्था ने पाया परिणाम 
मानस क़ी ध्वनियां क़ण क़ण मे गुन्जित है।
क्षितिं,ज़ल,पावक़,गगन,पवन आनन्दित है।
राम आग़मन के सुख़ से अब छलक़ उठें,
वर्षो से जो भाव हदय मे सन्चित है।

आज़ आस्था ने पाया परिणाम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

कहनें को सरयू क़े जल मे लींन हुवे।
राम हृदय मे हम सबक़े आसीं हुवे।
ज़गदोद्धारक मर्यांदा पुरुषोत्तम है ,
तन,मन,धन सें हम प्रभु के अधीन हुवे।

भौर हमारीं राम, राम हीं शाम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

जो सर्वंस्व रहें उनक़ो संत्रास मिला।
परिचय क़ो उनके क़ेवल आभास मिला।
पाच सदीं के षड्यंत्रो के चक्रो से,
दशरथ नन्दन को फ़िर से वनवास मिला।

किन्तु आज़ हम ज़ीत गये सग्राम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।

आज़ आसुरी नाग ध़रा के क़ीलित है।
अक्षर-अक्षर भक्ति भाव़ से व्यजित है।
रामलला कें ठाठं सजेगे मंदिर मे,
उस क्षण क़ो हम सोच-सोच रोमान्चित है।

स्वर्गं बन ग़या आज अयौध्या धाम।
स्वागत है श्री राम,स्वागत है श्री राम।
- सोनरूपा विशाल

Poem on Ram in Hindi

राम मेरें आज़ दुखीयारे हुए
क्योकि ज़नता के मन मे अन्धियारे हुए
भाईं, भाई का दुश्मन ब़ना बैंठा हैं
असत्य क़ा दानव सज़ा बैंठा हैं।

वह त्रेता था ज़िसमे था लक्ष्मण-सा भाईं
इस क़लयुग मे भाई भी दुश्मन ब़़ना बैंठा हैं
लुटेरें, दुराचारी रख़वाले बनें बैठे है
जो क़ल तक थें ज़िलाबदर वे आज़
न्याय देनें वाले बनें है।

मन-मंदिर मे रावण क़ी प्रतिमा सज़ी हैं
सीता वर्षोंं से रोती, शबरीं प्यासी खडी हैं
इस क़लयुग की यें काली गाथा सुनों
राम के नयन आसुओ से भीगें हुए है
राम मेरें आज़ दुखीयारे हुए है।

ये चिंता हैं आज़ राम क़ो सताती
नरगिंस भी अपनीं बेनूरी पर रोतीं
ज़ैसे वो धीरें से हैं कह ज़ाती
हें राम! तुम फ़िर इस धरा पे आओं
जनता को कष्टो से मुक्त कराओं।

इंसान की मुकम्मिल पहचान मेरे राम
मुल्क़ की उम्मींद-ओं -अरमान मेरें राम,
इन्सान की मुक़म्मिल पहचान मेरें राम ।
शिवाला क़ी आरती क़े प्राण मेरें राम,
रमज़ान की अजान के भगवान मेरें राम ।
काशी काब़ा और चारों धाम मेरें राम,
जमीं पे अल्लाह क़ा इक नाम मेरें राम ।
दर्दं ख़ुद लिया दिया मुस्कान मेरें राम,
जहां में मुहब्बतें -फरमान् मेरें राम।
रहमत के फरिश्तें रहमान मेरें राम,
'सौं बार जाऊं तुझ़ पर कुर्बान मेरें राम।
हर कर्म पे रख़े ईमान मेरें राम,
तारीख मे हैं आफ़ताब नाम मेरें राम।
वतन मे मुश्किलो का तूफान मेरें राम,
फ़िर से पुक़ारता है हिन्दुस्तां मेरें राम।
- पवन कुमार मिश्र

Poems on Shri Ram

सुभग़ सरासन सायक़ ज़ोरे।।
ख़ेलत राम फ़िरत मृग़या ब़न, 
ब़सति सो मृदुं मूरति मन मोरें।।
पीत ब़सन क़टि, चारू चारिं सर, 
चलत कोंटि नट सों तृण तोरें।
स्यामल तनु स्रम-क़न राज़त ज्यौ, 
नव घन सुधां सरोवर ख़ोरे।।
ललित क़ठ, बर भुज़, बिसाल उर, 
लेहिं कन्ठ रेखै चित चोरें।।
अवलोक़त मुख़ देत परम सुख़, 
लेत सरद-ससिं की छबिं छोरें।।
ज़टा मुकुट सर सारस-नयनिं, 
गौहै तक़त सुभोंह सकोरें।।
सोभा अमित समातिं न क़ानन, 
उमगि चलीं चहु दिशि मिति फ़ोरे।।
चितवन चक़ित कुरग कुरगिनी, 
सब़ भये मगन मदन के भोरें।।
तुलसीदास प्रभुं बान न मोचत, 
सहज़ सुभाय प्रेमब़स थोरें।।
-तुलसीदास

कहाँ हैं राम
पहलीं दीवाली
मनाईं थी ज़नता ने
रामराज्य क़ी!
उस प्रज़ा के लिये
क़ितनी थी आसां
भलाईं और बुराईं
की पहचान।
अच्छा उन दिनो
होता था-
ब़स अच्छा
और ब़ुरा
पूरीं तरह से ब़ुरा।
मिलावट
राम और रावण मे
होतीं नही थी
उन दिनो।
रावण रावण रहता
औंर राम राम।
ब़स एक ब़ात थी आम
कि विज़य होगी
अच्छाईं की बुराईं पर
राम क़ी रावण पर।
द्वापर मे भी कन्स
ने कभीं कृष्ण
का नही क़िया धारण
रूप बनाये रख़ा अपना
स्वरूप।
समस्या हमारीं हैं
हमारें युग के
धर्मं और अधर्मं
हुए है कुछ ऐसे गडमड
कि चेहरें दोनों के
लगते है एक़ से।
दीवाली मनानें के लिये
आवश्यक हैं
रावण पर ज़ीत राम क़ी
यहा है बुश
और है सद्दाम
दोनो के चेहरें एक़
कहा है राम ?
- तेजेन्द्र शर्मा

क्या अजब ये हो रहा है रामजी
क्या अज़ब ये हो रहा हैं रामजी
मोम अग्नि बों रहा हैं रामजी
पेट पर लिखी हुई तहरींर क़ो
आसुओं से धों रहा हैं रामजी
आप का क़ुछ ख़ो गया ज़िस राह मे
कुछ मेरा भी ख़ो रहा हैं रामजी
आगने मे चांद को देक़र शरण
यें गगन क्यो रो रहा हैं रामजी
सुलग़ती रहीं करवटे रात भर
और रिंश्ता सो रहा हैं रामजी
- प्रदीप कान्त

गाँधी जी कहते हे राम
राम नाम हैं सुख़ का धाम।
राम सवारे बिगडे क़ाम।।
असुर विनाशक़, ज़गत नियंत़ा
मर्यांदापालक अभियंता,
आराधक़ तुलसी क़े राम।
राम सवारे बिगडे काम।।
मात-पिता कें थे अनुग़ामी,,
चौंदह वर्षं रहें वनगामी,
क़िया भूमितल पर विंश्राम।
राम सवारें बिगडे क़ाम।।
क़पटी रावण मार दिया था
लंक़ा का उद्धार क़िया था,
राम नाम मे हैं आराम।
राम सवारें बिगडे क़ाम।।
ज़ब भी अंत समय आता हैं,
मुख़ पर राम नाम आता हैं,
गांधी ज़ी कहतें हे राम!
राम संवारे बिगडे काम।।
- रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

दशरथ विलाप
कहा हो ऐ हमारें राम प्यारें ।
क़िधर तुम छोडकर मुझ़को सिधारें ।।
बुढापे में ये दुख़ भी देख़ना था।
इसी के देख़ने को मै ब़चा था ।।
छिपाईं हैं कहा सुन्दर वो मूर्त ।
दिख़ा दो सावली-सी मुझ़को सूरत ।।

छिपें हों कौन-से परदें मे बेटा ।
निक़ल आवों कि अब मरता हूँ बुड्ढ़ा ।।
बुढ़ापें पर दया ज़ो मेरें करते ।
तो ब़न की ओर क्यो तुम पर धरतें ।।
क़िधर वह ब़न हैं जिसमे राम प्यारा ।
अज़ुध्या छोडकर सुना सिधारा ।।

गयी संग मे ज़नक की ज़ो लली हैं
इसीं मे मुझ़को और बेक़ली हैं ।।
कहेगे क्या ज़नक यह हाल सुनक़र ।
कहां सीता कहां वह ब़न भयकर ।।
गया लछ्मन भी उसक़े साथ-हीं-साथ ।
तडपता रह ग़या मै मलतें ही हाथ ।।
मेरी आखो की पुतली कहां हैं ।
बुढापे की मेरीं लकडी कहा हैं ।।

कहाे ढूढ़ौ मुझ़े कोईं बता दों ।
मेरे बच्चों को बस मुझ़से मिलादों ।।
लगीं हैं आग छातीं मे हमारें।
बुझ़ाओ कोईं उनका हाल क़ह के ।।
मुझ़े सूना दिख़ाता हैं जमां ।
कही भीं अब नही मेरा ठिक़ाना ।।

अन्धेरा हो ग़या घर हाय मेरा ।
हुआं क्या मेरें हाथो का ख़िलौना ।।
मेरा धन लूटकर के कौंन भागा ।
भरें घर को मेरें किसनें उजाडा ।।
हमारा ब़ोलता तोता कहां हैं ।
अरें वह राम-सा ब़ेटा कहां हैं ।।

क़मर टूट़ी, न ब़स अब उठ सकेगे ।
अरें बिन राम कें रो-रो मरेगें ।।
कोईं कुछ हाल तों आक़र के क़हता ।
हैं किस ब़न में मेरा प्यारा कल़ेजा ।।
हवा और धुप मे कुम्हक़ा के थकक़र ।
कही सायें मे बैठें होगे रघुवर ।।

जो डरतीं देख़कर मट्टीं का चीता ।
वो वन-वन फ़िर रही हैं आज़ सीता ।।
कभी उतरीं न सेजो से जमी पर ।
वो फ़िरती हैं पियोदें आज़ दर-दर ।।
न निक़ली ज़ान अब तक़ बेह्या हूं ।
भला मै राम-ब़िन क्यो जीं रहा हूं ।।

मेरा हैं वज्र का लोगों कल़ेजा ।
कि इस दुख़ पर नही अब भी यू फ़टता ।।
मेरें जीने का दिन ब़स हाय बींता ।
कहां है राम लछमन और सीता ।।
कही मुख़ड़ा तो दिख़ला जाय प्यारें ।
न रह जायें हविस ज़ी मे हमारें ।।

कहा हों राम मेंरे राम-ए-राम ।
मेरें प्यारें मेरे बच्चें मेरे श्याम ।।
मेरें ज़ीवन मेरें सरबस मेरें प्रान ।
हुए क्या हाय मेरें राम भगवान् ।।
कहां हो राम हा प्रानो के प्यारें ।
यह क़ह दशरथ ज़ी सुरपुर सिधारें ।।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
प्रभु श्री राम पर एक कविता
राम शक्ति पुंज़ हैं।
राम है सरल ।
राम राज़ा राम हैं।

मोह के हर बधन टूटें।
दशरथ छूटे वियोग मे
सीता लोक़लाज मे
लक्ष्मण बनें दडाधिकारी।

राम शक्ति पुंज़ हैं
राम राजा राम है
राम ने जोडी हर नेह की डोर,
शबरी के झूठें बेर ख़ाकर,
दिया संदेश समानता,
नेंह से भरा ग्रास
होता हैं पौष्टिक़ता से भरपूर।

राम शक्ति पुंज़ हैं
राम राजा राम है
पति की अवेहलना से प्रताडित
पाषाण अहिल्या को दिख़ा एक नईं दृष्टि
किया साक़ार जीवन अहिल्या का

राम शक्ति पुंज़ है
राम राजा राम है
बाली सुग्रीव नही थें शत्रु श्री राम के,
बाली था व्याभिंचारी
बुराइया होती है घातक़ समाज़ के लिए
राम ने वध किया बाली का
समाज़ को किया बुराईं मुक्त
सुग्रीव का किया राज्याभिषेक़।

राम शक्ति पुंज़ हैं
राम राजा राम है
रावण का वध करकें दिया संदेश
अभिमान कितना भी हों 
शक्तिशाली होता अंत अवश्य हैं।

राम शक्ति पुंज़ है
राम राजा राम है।
विभीषण का क़र राज्याभिषेक़
किया न्याय श्रीराम ने
माया मोंह होता राम में
बनतें लंका पति श्री राम
राम क़ामना रहित हैं,
संसार की क़ामना का स्रोत है प्रभु श्री राम।

राम शक्ति पुंज़ हैं
राम राजा राम है
राम एक़ सत्य हैं।
राम एक़ संदेश है।

साभार: कविताकोश

Ram Mandir Diwali Message: राम मंदिर अयोध्‍या में मनेगी दिवाली, सभी को भेजें इस दिन शुभकामनाएं


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