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Ram Mandir wishes Shlok in Sanskrit: राम मंदिर अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा पर सभी को भेजें राम जी के संस्कृत श्लोक

Ram Mandir wishes Shlok in Sanskrit: राम मंदिर अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा पर सभी को भेजें राम जी के संस्कृत श्लोक
Ram Mandir Pran Pratishtha Shlok: भगवान राम पर तुसलीदास से लेकर कबीरदास ने उनका गुणगान किया है। अयोध्‍या के राम मंदिर के उदघाटन अवसर पर सभी के साथ भगवान राम पर दोहे आप सभी के साथ शेयर कर सकते हैं। आपको यहां पर Ram mandir wishes in sanskrit, ram ji shlok, ayodhya ram mandir shloka pran pratishtha ki badhai, Ram Mandir Shlok in Sanskrit मिलेंगे, जिसे आप सभी को भेज सकते हैं।

Ram mandir wishes in sanskrit : अयोध्‍या में भगवान राम का विशाल और भव्‍य मंदिर तैयार हो चुका है। आप सभी को इस अवसर पर बधाई देेने के लिए Tulsidas Ram ji ke Dohe in Hindi, Ayodhya ram mandir photo, tulsidas dohe on lord ram, shri ramcharitmanas chaupai,  ramayan ke dohe अपने दोस्‍तों और परिजनों के साथ शेयर कर सकते हैं।

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Ram mandir wishes in sanskrit

आपु आपने तें अधिक जेहि प्रिय सीताराम।
तेहि के पग की पानहीं तुलसी तनु को चाम॥

तुलसीदास कहते हैं कि जिन भक्तों को भौतिक पदार्थों एवं सुख-साधनों की अपेक्षा श्रीसीता-राम अधिक प्रिय हैं, यदि मेरा चमड़ा उन भक्तों के चरणों की जूतियों में लगे तो यह मेरा सौभाग्य होगा।

स्वारथ परमारथ रहित सीता राम सनेहँ।
तुलसी जो फल चारि को फल हमार मत एहँ॥

अर्थ – जो मनुष्य स्वार्थ अर्थात् भौतिक सुखों एवं परमार्थ (मोक्ष) की कामना किए बिना श्रीसीताराम से निःस्स्वार्थ प्रेम करते हैं, मेरे विचार में वे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के फल से भी श्रेष्ठ फल प्राप्त करते हैं।

राम दूरि माया बढ़ति घटति जानि मन माँह।
भूरि होति रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छाँह॥

अर्थ – श्रीराम की तुलना तेजवान् सूर्य से करते हुए तुलसीदास कहते हैं कि जिस प्रकार सूर्य के दूर रहने पर छाया लंबी हो जाती है और सूर्य के ठीक सिर के ऊपर आ जाने से छाया पैरों के नीचे आ जाती है, उसी प्रकार श्रीराम से दूर अर्थात् उनसे विमुख होकर मनुष्य-मन सांसारिक मायाजाल में फँस जाता है; परंतु मन में श्रीराम के विराजते ही उसके ऊपर से माया का प्रभाव दूर हो जाता है।

करिहौ कोसलनाथ तजि जबहिं दूसरी आस।
जहाँ तहाँ दुख पाइहौ तबहीं तुलसीदास॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि कौशलपति श्रीराम को त्यागकर जब-जब दूसरे की आशा करोगे, तब-तब प्रत्येक ओर दुख-कष्ट ही पाओगे।

बरसा को गोबर भयो को चहै को करै प्रीति।
तुलसी तू अनुभवहि अब राम बिमुख की रीति॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम की शरण त्याग देनेवाले मनुष्य की गति बरसात में भीगे हुए उस गोबर के समान हो जाती है, जो न तो लीपने के योग्य रहता है और न ही पाथने के। फिर कौन भला उससे प्रेम करेगा!

तुलसी उद्यम करम जुग जब जेहि राम सुडीठि।
होइ सुफल सोइ ताहि सब सनमुख प्रभु तन पीठि॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि जिस मनुष्य पर श्रीराम की कृपा-दृष्टि हो जाती है, उसके उद्यम एवं कर्म सफल हो जाते हैं। देह सहित सांसारिक सुखों का मोह छोड़कर वह प्रभु के सम्मुख हो जाता है।

निज दूषन गुन राम के समुझें तुलसीदास।
होइ भलो कलिकाल हूँ उभय लोक अनयास॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि जो मनुष्य अपने अपराधों तथा श्रीराम के गुणों को भली-भाँति समझ लेता है, कलियुग में उसका लोक और परलोक—दोनों में कल्याण हो जाता है।

तुलसी दुइ महँ एक ही खेल छाँडि़ छल खेलु।
कै करु ममता राम सों कै ममता परहेलु॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि हे मन! सबकुछ छोड़कर तू दोनों में केवल एक ही खेल खेल। या तो तू केवल श्रीराम के साथ ममता कर अथवा ममता का सदा के लिए त्याग कर दे।

सनमुख आवत पथिक ज्यों दिएँ दाहिनो बाम।
तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम॥

अर्थ – जिस प्रकार सामने आते हुए पथिक को कोई मनुष्य अपने दाएँ या बाएँ की ओर निकलने का स्थान देता है और वह पथिक भी उसी प्रकार दाएँ या बाएँ हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य जिस भाव से श्रीराम को भजता है, वे उसी भाव से प्राप्त होते हैं।

तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि।
तौ लौं सुधा सहस्र सम राम भगति सुठि सीठि॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि जब तक विषय-वासनाओं की मिथ्या माधुरी मिठास-युक्त लगती है, तब तक श्रीराम की भक्ति अमृत के समान मधुर होने के बाद भी बिलकुल फीकी लगती है। अर्थात् भौतिक सुखों में डूबे हुए मन को भक्ति का सुख दुख के समान प्रतीत होता है।

है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहें लोग।
भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि लोग मुझे अवगुणों का भंडार कहते हैं, अर्थात् मुझमें केवल अवगुण-ही-अवगुण हैं। लेकिन मुझमें एक गुण यह है कि मैं श्रीराम की शरण में हूँ; मुझे केवल श्रीराम का ही भरोसा है। इसलिए हे राम! आप मुझ पर रीझ जाना अर्थात् मुझपर अपनी कृपादृष्टि करना।

Ram ji shlok

स्वारथ सीता राम सों परमारथ सिय राम।
तुलसी तेरो दूसरे द्वार कहा कहु काम॥

अर्थ – सीता-राम ही तुम्हारे परमार्थ अर्थात् एकमात्र परम ध्येय हैं। उनकी कृपा से तुम्हारे समस्त स्वार्थ सिद्ध हो जाएँगे। तुलसीदास कहते हैं कि फिर तुझे किसी दूसरे के द्वार पर जाने से क्या लाभ?

तुलसी स्वारथ राम हित परमारथ रघुबीर।
सेवक जाके लखन से पवनपूत रनधीर॥

अर्थ – तुलसीदास के सभी स्वार्थ केवल श्रीराम के लिए हैं और परमार्थ भी वे श्रीरघुनाथ हैं, जिनके लक्ष्मण और पवनपुत्र हनुमान जैसे सेवक हैं।

राम प्रेम बिनु दूबरो राम प्रेमहीं पीन।
रघुबर कबहुँक करहुगे तुलसिहि ज्यों जल मीन॥

अर्थ – हे रघुनाथ! जिस प्रकार जल में रहकर मछली पुष्ट होती है तथा जल से दूर होते ही दुर्बल होकर प्राण त्याग देती है, उसी प्रकार आप तुलसीदास को कब ऐसा करेंगे कि वे श्रीराम के प्रेम रूपी जल से पुष्ट हों तथा उनके वियोग में दुर्बल होकर प्राण त्याग दें।

Ayodhya ram mandir shloka pran pratishtha ki badhai

हृदय सो कुलिस समान जो न द्रवइ हरिगुन सुनत।
कर न राम गुन गान जीह सो दादुर जीह सम॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि जो हृदय श्रीराम का यशोगान सुनकर द्रवित नहीं होता, वह वज्र की भाँति कठोर है; जो जिह्वा राम-गुणों का गान नहीं करती, वह मेढ़क के समान केवल व्यर्थ की टर्र-टर्र करनेवाली है।

Ram par Tulsidas Ke Dohe Arth Sahit

रहैं न जल भरि पूरि राम सुजस सुनि रावरो।
तिन आँखिन में धूरि भरि भरि मूठी मेलिये॥

अर्थ – श्रीराम का यश सुनकर जिन आँखों में प्रेमजल न भर जाए, उन आँखों में मट्ठी भर-भरकर धूल झोंकनी चाहिए।

रे मन सब सों निरस ह्वै सरस राम सों होहि।
भलो सिखावत देत है निसि दिन तुलसी तोहि॥

अर्थ – तुलसीदास मोह-माया में डूबे मन को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मन! संसार के समस्त बंधन क्षणिक सुख प्रदान करनेवाले तथा नाशवान हैं। इसलिए तू सांसारिक पदार्थों से विरक्त होकर श्रीराम से प्रेम कर। उनके शरणागत होकर तुम जीवन-मृत्यु के चक्र से सदा के लिए मुक्त हो जाओगे। इसलिए तुलसी तुझे दिन-रात केवल यही सीख देता है।

Ram Mandir Shlok in Sanskrit

लंक बिभीषन राज कपि पति मारुति खग मीच।
लही राम सों नाम रति चाहत तुलसी नीच॥

अर्थ – विभीषण ने श्रीराम से लंका प्राप्त की, सुग्रीव ने राज्य प्राप्त किया, हनुमान ने सेवक की पदवी प्राप्त की तथा जटायु ने देवों से भी दुर्लभ मृत्यु प्राप्त की; परंतु तुलसीदास श्रीराम से उनके राम-नाम में ही प्रेम चाहते हैं।

जल थल नभ गति अमित अति अग जग जीव अनेक।
तुलसी तो से दीन कहँ राम नाम गति एक॥

अर्थ – इस संसार में अनेक जीव हैं। उन जीवों में से कुछ की गति जल में है, कुछ की पृथ्वी पर है और कुछ की आकाश में। लेकिन तुलसी के लिए केवल राम-नाम ही एकमात्र गति है।

राम भरोसो राम बल राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल माँगत तुलसीदास॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि केवल श्रीराम पर मेरा भरोसा है; मुझमें राम का ही बल रहे जिसके स्मरण मात्र से सभी दुखों का नाश हो जाता है तथा शुभ मंगल की प्राप्ति होती है, उस राम-नाम में मेरा विश्वास बना रहे।

राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहुँ दिसि तुलसीदास॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि जिन मनुष्यों का राम-नाम से प्रेम है; जिनकी राम ही एकमात्र गति हैं; जो राम-नाम में अगाध विश्वास रखते हैं, राम-नाम का स्मरणमात्र करने से ही लोक और परलोक में उनका शुभ एवं मंगल हो जाता है।

रामहि सुमिरत रन भिरत देत परत गुरु पायँ।
तुलसी जिन्हहि न पुलक तनु ते जग जीवत जायँ॥

अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम का स्मरण होने पर, धर्मयुद्ध में शत्रु का सामना करते समय, दान देते समय तथा गुरु-चरणों में प्रणाम करते समय जिनके शरीर में प्रसन्नता के कारण रोमांच नहीं होता, वे संसार में व्यर्थ ही जी रहे हैं।

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