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Parakram Diwas History: इसलिए मनाया जाता है पराक्रम दिवस, नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इस दिन का क्या है संबंध

Parakram Diwas History: इसलिए मनाया जाता है पराक्रम दिवस, नेता जी सुभाष चंद्र बोस से इस दिन का क्या है संबंध
Subhash Chandra Bose Jayanti 2024: आजाद हिंद फौज ने नेताजी के मार्गदर्शन में अनेक स्थानों पर अपने शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया। 1943 में सर्वप्रथम नेताजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर पहली बार तिरंगा फहराया था। उन्होंने अंडमान का नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का नाम स्वराजदीप रखा था।

Subhash Chandra Bose Birth Annievrsary : भारतीय स्वाधीनता संग्राम को सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सुदृढ़ता प्रदान करने वाले महान योद्धा सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में पिता जानकीदास और माता प्रभावती बॉस के घर में हुआ। राष्ट्रभक्ति, संघर्षों से अकेले टकराना ,शूरवीरता जैसे गुण इनको परिवार की विरासत में ही प्राप्त हुए थे।

सुभाष बाल्यकाल से ही अध्ययन में अत्यंत मेधावी एवं आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। दर्शनशास्त्र से अपनी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात सन् 1919 में उनके पिता ने इनको इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में सिविल सर्विस की परीक्षा के लिए भेजा और इन्होंने उस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश शासन के अधीन गुलामी की नौकरी कदापि स्वीकार्य नहीं थी इसलिए उनका लक्ष्य भारत को पूर्ण रूप से स्वाधीन करवाना था। उस समय की राष्ट्रीय कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में सुभाष चंद्र बोस का भी नाम था। नेताजी का चिंतन था की क्रूर ब्रिटिश सरकार के समूल नाश के लिए सशस्त्र क्रांति अत्यंत अनिवार्य है।

विरोधों के बावजूद भी वे इस दिशा में दृढ़ संकल्पित होकर अकेले ही आगे बढ़ते रहे। 1928 ईस्वी में कोलकाता की सड़कों पर सेना की वर्दी में 2000 भारतीय युवकों के साथ परेड करके इन्होंने ब्रिटिश सरकार के होश उड़ा दिए थे। 1938 में सुभाष जी को राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया परंतु वैचारिक मतभेद के चलते इन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस से अपने आप को अलग कर लिया था।

सुभाष एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके मन में प्रतिपल भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की ज्वाला धड़क रही थी इसलिए इन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए विदेश  जाने का विचार किया परंतु ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर सुभाष की पल-पल की गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे। अपने जीवन में सुभाष मातृभूमि की स्वाधीनता हेतु 11 बार जेल गए थे।

सन् 1940 में अंग्रेज सरकार ने इन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया। घर में 40 दिन  के अज्ञातवास के बाद अचानक एक दिन नेताजी जान हथेली पर रखकर काबुल गए वहां से रूस ,जर्मनी और इटली के दूतावास में संपर्क स्थापित कर आगे बढ़ गए। 1943 को जापान में क्रांतिकारी नेता राज बिहारी बोस द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज  का नेतृत्व उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया।

उस समय हिंद फौज में सैनिकों की संख्या 45000 थी और अपने अथक संघर्ष और परिश्रम के बल पर सन 1944 तक सुभाष चंद्र बोस ने 85000 सैनिक हिंद फौज में भर्ती कर दिए। अपने ओजस्वी भाषणों के माध्यम से मातृ शक्ति के मानस पटल पर भी सुभाष ने सशस्त्र क्रांति हेतु प्रेरणा का संचार किया। झांसी की रानी रेजीमेंट के नाम से नेताजी ने महिला यूनिट की स्थापना की जिसकी कैप्टन लक्ष्मी सहगल बनी।

द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए जापान ने भी आजाद हिंद फौज को अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। सिंगापुर के टाउन हॉल में सन 1943 में सेना को संबोधित करते हुए उन्होंने 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था। ब्रिटिश सरकार के तंत्र को भारत से नष्ट  करने के लिए उन्होंने भारतीय जनमानस से कहा था कि- "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा"। इसी नारे ने भारत के युवा वर्ग को देश की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए प्रेरित किया।

अप्रैल 1944 में हिंद फौज ने कर्नल मलिक के नेतृत्व में मणिपुर में तिरंगा फहराया। एक साथ बर्मा, इंफाल, कोहिमा में विजय प्राप्त करके नेताजी ने उस समय के राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया था। भारत को स्वतंत्र करने के लिए नेताजी का दृष्टिकोण बड़ा व्यापक था। आजाद हिंद फौज को सुदृढ़ता तथा स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने जापान और जर्मनी की सहायता से अपना मुद्रा बैंक भी स्थापित किया था।

सर्वप्रथम नेताजी ने ही आजाद हिंद सरकार का गठन किया था जिसको जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली ,आयरलैंड आदि देशों ने मान्यता प्रदान की थी। नेताजी का पूरा जीवन पराक्रम, साहस, त्याग और बलिदान की कहानी है। प्रत्येक युवा के लिए इनका जीवन प्रकाश स्तंभ के समान है।

चितरंजन दास नेता जी के राजनीतिक गुरु तथा विवेकानंद जी उनके आध्यात्मिक गुरु थे। सुभाष का कहना था की आजादी बलिदान मांगती है और इसके लिए हमें सदैव तैयार रहना होगा। युवाओं के रक्त से ही स्वाधीनता रूपी भवन की नींव सुदृढ़ बनती है। संघर्ष, दुख, प्रतिकूल परिस्थितियों को सुभाष ने जीवन निर्माण के घटक स्वीकार किया है।

गीता के निस्वार्थ निष्काम कर्ममय संदेश का सुभाष के मन पर बहुत गहरा प्रभाव था। वे युवाओं को अक्सर कहा करते थे कि आज देश को बलिदान की आवश्यकता है और यह जरूरी नहीं है कि देश की स्वाधीनता को हम देख सके परंतु हमारे मन में प्रतिपल अपने तन, मन, धन को देश हित हेतु समर्पित करने की भावना होनी चाहिए।

नेताजी के इसी विराट व्यक्तित्व का प्रभाव हिंद फौज के प्रत्येक सैनिक पर था। उनका सैनिक राष्ट्रभक्ति, कर्तव्य निष्ठा एवं बलिदान की भावना से परिपूर्ण था। सुभाष ने अपना संपूर्ण जीवन अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता हेतु समर्पित किया। वे वास्तव में ही युवाओं के हृदय सम्राट क्रांति के अग्रदूत  महानायक थे। संपूर्ण भारत देश में  राष्ट्रभक्त सुभाष चंद्र बोस जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेताजी का संघर्षमय जीवन वास्तव में ही युवा शक्ति के मानस पटल पर पराक्रम और शौर्य का संचार करने वाला है।

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