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Desi Jugaad: गाँव में बेकार पड़ी जलकुम्भी से झारखंड के युवा किसान ने बनाई साड़ियां, इतने लोगों को दिया रोजगार

Desi Jugaad: गाँव में बेकार पड़ी जलकुम्भी से झारखंड के युवा किसान ने बनाई साड़ियां, इतने लोगों को दिया रोजगार 
Desi Jugaad news : जलकुम्भी हर गाँव में बड़ी समस्या है। लेकिन एक युवा किसान ने इसको लेकर नया प्रयोग किया। जलकुम्भी से साड़ियां बनाई। साथ ही गाँव की महिलाओं को रोजगार भी दिया। झारखंड के युवा किसान की आज सभी जगह चर्चा हो रही है। 

जमशेदपुर, New innovations for agriculture : झारखंड के युवा किसान गौरव आनंद ने कमाल कर दिया है। उन्होंने ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे जलकुम्भी भी हट गई और ग्रामीणों को रोजगार भी मिला। जानते हैं कैसे गौरव ने जलकुम्भी की समस्या को रोजगार में बादल लिया। 

जलकुम्भी से बनाई साड़ियां

जलकुम्भी के फूल और पौधे दिखने में तो बेहद खूबसूरत होते हैं लेकिन जलीय प्राणियों के लिए ये खतरनाक हैं। तेज़ी से फैलने के कारण ये जल्द ही पूरे तालाब को ढक लेते हैं। इससे सूरज की रोशनी और हवा पानी के अंदर नहीं जा पाती। जलकुम्भी से जुड़ी इस समस्या से निपटने का नायाब तरीका खोज निकाला है जमशेदपुर, झारखण्ड के इंजीनियर गौरव आनंद ने।  

ऐसे बनती है साड़ी 

गौरव जलकुम्भी की डंडियों से रेशे तैयार करते हैं और शांतिपुर, बंगाल के बुनकरों की मदद से इनसे साड़ियां तैयार करवाते हैं। वो सालों से जलकुम्भी से पेपर, मैट्स और हैंडीक्राफ्ट बना रहे हैं लेकिन इससे एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने पहली बार इसके रेशों को कपड़े की तरह इस्तेमाल करने का फैसला किया। उनकी इसी सोच से तैयार हुई दुनिया की पहली ‘फ्यूज़न साड़ी’।  

25 किलो जलकुम्भी से एक साड़ी

आज वह करीब 25 किलो जलकुम्भी से एक साड़ी तैयार कर रहे हैं। इससे टेरर ऑफ़ बंगाल मानी जाने वाली जलकुम्भी से तो निजात मिल ही रही है, साथ ही सस्टेनेबल फैशन को भी बढ़ावा मिल रहा है।

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साल 2022 में उन्होंने कुछ बुनकरों और गांव की महिलाओं की मदद से पहली फ्यूज़न साड़ी बनाई थी।

जूट की तरह धागे में बदला

गौरव ने देखा कि जलकुम्भी के तने से निकलने वाले फाइबर में सेलूलोज़ होता है और इसे जूट की तरह धागे में बदला जा सकता है। तब उन्होंने बुनकरों को सूत बनाकर देने का फैसला किया। 

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जलकुम्भी से निकले सूत में रुई आदि मिलाकर फाइनल फ्यूज़न साड़ी बनाई जाती है। इस प्रोजेक्ट के ज़रिए गौरव चाहते थे कि प्राकृतिक साधन जैसे कॉटन का भी एक विकल्प लोगों को मिले। 

इतनों को दिया रोजगार 

आज उनके साथ गांव की करीब 450 महिलाएं काम कर रही हैं। ये महिलाएं जलकुम्भी को पानी से निकालने, इसे सुखाने और सूत बनाने का काम करती हैं। आप इस फ्यूज़न साड़ी और गौरव आनंद के  प्रोजेक्ट के बारे में अधिक जानकारी के लिए, उन्हें उनकी वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं। 

स्वच्छता पुकारे संस्था भी चलाते हैं

पर्यावरण इंजीनियर गौरव ‘स्वच्छता पुकारे’ नाम से एक संस्था भी चलाते हैं। अपनी संस्था से जुड़े अभियान के तहत वह नदियों की सफाई का काम करते रहते हैं। अपने इन्हीं अभियानों के दौरान  उन्होंने देखा कि जलकुंभी पानी के दूषित होने की मुख्य वजह है। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2022 में 16 साल पुराने करियर को छोड़कर अपनी संस्था के काम पर ही फोकस करना शुरू किया।

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