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Sugarcane Price Hike: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के गन्‍ना किसान को नए रेट का नहीं मिलेगा फायदा, ये है वजह

Sugarcane Price Hike: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के गन्‍ना किसान को नए रेट का नहीं मिलेगा फायदा, ये है वजह
Sugarcane Price Hike news: केंद्र सरकार ने गन्‍ने मूल्य में बढ़ोतरी तो कर दी, वहीं कुछ राज्‍यों के किसानों को इसका फायदा नहीं मिलेगा। इसके पीछे कारण है स्टेट एडवाइजरी प्राइस यानी SAP का नियम। यह एफआरपी से काफी अधिक है।

नई दिल्‍ली। Sugarcane Price Hike: केंद्र सरकार ने हाल ही में गन्‍ना के रेट में इजाफा किया है। लेकिन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों के किसानों को नहीं मिलेगा. जिसकी बड़ी वजह है इन राज्यों में स्टेट एडवाइजरी प्राइस यानी SAP का नियम है, जो आमतौर पर एफआरपी से काफी अधिक है।

सबसे ज्‍यादा गन्‍ना कहां होता है

देश में लगभग 49 लाख हेक्टेयर भूमि पर गन्‍ने की खेती होती है. उसमें सबसे ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है. जहां, 45 फीसदी हिस्से में इसकी खेती होती है. इस वजह से उत्तर प्रदेश गन्न उत्पादन राज्यों में पहले नंबर पर आता है. लेकिन, इसके बाद यहां के किसानों को केंद्र सरकार द्वारा बढ़ाई गई कीमतों का लाभ नहीं मिलेगा।

यहां के गन्‍ना किसानों को फायदा

आपको बता दें कि तमिलनाडु देश का वह राज्य है जहां प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक उत्पादन होता है. उसके बाद कर्नाटक और महाराष्ट्र का स्थान आता है. इस प्रकार, आठ फीसदी एफआरपी बढ़ोतरी से कीमत पिछले वर्ष के 315 रुपए से बढ़कर 340 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है।

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इस बढ़ोतरी का फायदा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्यों के किसानों को होगा. क्योंकि, यहां राज्य सरकारों द्वारा अलग से कोई एसएपी घोषित नहीं की गई है. कई लोग इसे आगामी लोकसभी चुनावों ले भी जोड़कर देख रहे हैं. क्योंकि, इन क्षेत्रों में भाजपा खुद को और मजबूत करना चाहती है।

इनका होगा नुकसान

गन्ने के उत्पादन में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का अहम योगदान है. हालांकि, इसके बावजूद एफआरपी वृद्धि का फायदा इन्हें नहीं होगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि इन राज्यों में SAP को फॉर्मूला चलता है. SAP के तहत गन्ने की कीमतें एफआरपी के मुकाबले पहले ही 40 से 60 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा है. किसान आंदोलन में शामिल पंजाब-हरियाणा के किसानों से भले ही सरकार के इस फैसला स्वागत किया हो. लेकिन, कीमतों में इस वद्धि का उन्हें कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। 

चीनी मिलों पर दबाव

एसएपी में बढ़ोतरी से जहां गन्ना किसानों को फायदा होगा. वहीं, मिल मालिकों पर वित्तीय दबाव बढ़ेगा, जो पहले से ही उच्च श्रम और ईंधन लागत से जूझ रहे हैं. इस साल कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्रतिकूल मौसम के कारण फसलों में कमी देखी गई है. इससे उत्पादन लगभग 10-30 फीसदी तक प्रभावित हुआ है।

परिणामस्वरूप, देश में कुल चीनी उत्पादन पिछले साल के 37 मिलियन टन से लगभग 10 फीसदी कम होने का अनुमान है. हालांकि ये घरेलू उपभोक्ताओं के लिए तो पर्याप्त है, लेकिन सरकार द्वारा लगाए गए चीनी निर्यात प्रतिबंध ने चीनी मिल मालिकों की परेशानियों को और बढ़ा दिया है. एफआरपी की वृद्धि कुछ राज्यों में किसानों को अल्पकालिक राहत प्रदान कर सकती है, लेकिन यह गन्ना उद्योग के सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहती है।

एसएपी का फायदा

ऐसा हो सकता है की केंद्र सरकार ने एफआरपी बढ़ोतरी का फैसला किसान आंदोलन को शांत करने के लिए हो. हालांकि, ये बात भी सच है की एफआरपी के मुकाबले किसानों को एसएपी का फायदा हो रहा है. क्योंकि, एसएपी के तहत कीमतें एफआरपी से ज्यादा है. जिससे किसानों को ज्यादा लाभ मिल रहा है. ऐसे केंद्र सरकार द्वारा की गई इस बढ़ोतरी का इन राज्यों के किसानों को कोई खासा लाभ नहीं मिलेगा।

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