Colored Capsicum : कैसे करें रंगीन शिमला मिर्च की खेती, ऐसे लगाएं और आसानी से कमाएं इतने लाख

Colored Capsicum cultivation: भारत में रंगीन शिमला मिर्च की खेती हरियाणा, पंजाब, झारखंड, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक आदि प्रदेशों में सफलतापूर्वक की जाती है। इसके अलावा अब तो पूरे भारत में इसकी खेती की जाने लगी है। इसकी सबसे ज्यादा मांग दिल्ली और चंडीगढ़ के होटलों में होती है यहां इनका प्रयोग सलाद के रूप में किया जाता है। 
 

हिसार, Colored Capsicum details: हिसार के सुरेवाला गांव में प्रगतिशील किसान दरवेश पातड़ रंगीन शिमला मिर्च की खेती कर रहे हैं। उन्‍होंने अपने फार्म में कई प्रकार के फल और सब्जियां लगाई हैं। आइए जानते हैं उनसे कैसे कम लागत में किसान रंगीन शिमला मिर्च की खेती कर अच्‍छी कमाई कर सकते हैं।

रंगीन शिमला मिर्च की मांग

देश में इन दिनों रंगीन शिमला मिर्च की मांग में बढ़ गई है। खाने के शौकिनों ने इसकी मांग में इजाफा किया है। वहीं कोरोना में लोग अपनी सेहत के प्रति काफी जागरूक हो गए है। शिमला मिर्च को सेहत के लिए फायदेमंद मानते हुए भी इसकी बाजार में मांग बढ़ रही है।

इसे देखते हुए इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है। वहीं रंगीन शिमला मिर्च मांग ज्यादा होने से इसके बाजार में हरी शिमला मिर्च के मुकाबले कई गुना अधिक दाम मिलते हैं। इसकी व्यवसायिक खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। 

कितनी कमाई हो सकती है

अनुमान के तौर पर यदि आप आपके पास एक एकड़ भूमि है तो आप इसकी खेती करके एक साल में करीब 3 से 3.50 लाख तक की इनकम प्राप्त कर सकते हैं। यदि इसकी खेती पॉली हाउस में करेंगे तो 5 से 6 लाख तक की आमदनी हो सकती है। पाली हाउस में किसान छह रंगों जैसे लाल, पीली, ओरेंज, चॉकलेट, वायलेट और ग्रीन शिमला मिर्च पैदा कर सकता है। जिनसे अच्छा उत्पादन और लाभ किसान को मिलता है।

अच्‍छे दाम मिलते हैं

बाजार में इसके अच्छे दाम मिलते हैं। रंगीन शिमला मिर्चों की बाजार में कीमत 100 से 250 रुपए प्रति किलो तक पहुंच जाती है। जबकि हरी शिमला मिर्च का दाम 40 रुपए प्रति किलो से ज्यादा होते हैं। अगर पोली हाउस में किसान 600 क्विंटल भी पैदावार लेता है तो किसान की आमदनी करीब छह लाख तक हो सकती है।

ध्यान रखने वाली बातें

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च उत्पादकों को किस्में हमेशा वही चुनी जानी चाहिए, जो ज्यादा बिकती हों। वर्तमान में लाल और पीली (सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली) के अतिरिक्त बैंगनी, संतरी, भूरी रंग की शिमला मिर्च की किस्में भी उपलब्ध हैं। 

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पॉलीहाउस के अंदर हमेशा संकर (हाईब्रिड) किस्में ही उपयोग करनी चाहिए। अच्छे रंग के अलावा किस्म में रोगों व फल विकारों के प्रति प्रतिरोध क्षमता भी होनी अत्यावश्यक है।

जलवायु व भूमि

शिमला मिर्च की खेती के लिए नर्म आद्र्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी अच्छी वृद्धि के लिए कम से कम तापमान 21 से 25 डिग्री सेल्सियस होना अच्छा रहता है। इसकी भूमि की बात करें तो इसकी खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो उपयुक्त रहती है। 

बुवाई का उपयुक्त समय

पॉली हाउस में इसकी खेती के लिए उपयुक्त समय अगस्त-सितंबर माह की जा सकती है। किसान यह फसल नौ महीनों तक ले सकता है। वहीं बेमौसमी फसल लेनेे के लिए इसे जनवरी से फरवरी माह में भी बोया जा सकता है।

पौध तैयार करना

पौध तैयार करने के लिए 98 छिद्रों वाली प्रो-टे (प्लास्टिक की ट्रे) का प्रयोग करना चाहिए। इसमें कोको पीट, वरमीकुलाइट, बालू या परलाइट मिश्रण प्रयोग करना चाहिए। यह रोगमुक्त होने के साथ-साथ अत्यन्त भुरभुरा होता है, जिससे जड़ों का विकास अच्छे से होता है। सामान्यत: 100 किलोग्राम कोकोपीट से लगभग 100 प्रो-ट्रे भरा जा सकता है।

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ट्रे के एक छिद्र में एक बीज डालकर कोकोपीट से बीज को ढक देना चाहिए। इसके बाद हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई कर इसे पॉलीथीन से ढक देना चाहिए। इससे सामान्यत: 6 से 8 दिनों में इसका अंकुरण हो जाता है। अंकुरण होने के बाद प्रो-ट्रे में तैयार शिमला मिर्च के पौधों से पॉलीथीन को हटा देना चाहिए। इस तरह पौध 4 से 6 सप्ताह में रोपण हेतु तैयार हो जाती है।

क्यारियां तैयार करना

सबसे पहले पॉलीहाउस में मिट्टी की खुदाई के उपरान्त ढेलों को तोडक़र जमीन को भुरभुरा, समतल और मुलायम बनाएं और 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाएं तथा कतारों के मध्य 50 सेंटीमीटर की दूरी छोड़ दें। 

खाद व उरर्वक

क्यारियां बनने के बाद उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद 20 किलोग्राम तथा नीम की खली 100 ग्राम प्रति वर्ग मीटर में डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं है तथा 4 प्रतिशत फॉरमल्डीहाइड से 4 लीटर प्रति वर्ग मीटर क्यारियों को गीला करें। सभी क्यारियों को चार दिनों तक काली पॉलीथीन की चादरों से ढक़कर पॉलीहाउस की खिडक़ी-दरवाजे बंद कर दें ताकि हानिकारक रोगाणुओं का नाश हो जाए।

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चार दिनों के बाद पॉलीथीन को हटा दें जिससे फॉरमल्डीहाइड का धुआं पूरी तरह निकल जाए। वहीं पौध लगाने के पहले प्रति वर्ग मीटर नाइट्रोजन 05 ग्राम, फास्फोरस 05 ग्राम एवं पोटाश 05 ग्राम की पोषित खुराक डालें। क्यारियों के मध्य में सिंचाई के लिए इन लाइन लेट्रल पाइप डालें। इस पाइप में 30 सेंटीमीटर दूरी पर छेद होता है, जिससे 2 लीटर पानी का निकास होता है।

शिमला मिर्च की उन्नत किस्में

बॉम्बे (रेड शिमला मिर्च) - यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म लम्बी, पौधे मजबूत और शाखाएं फैलने वाली होती हैं। इसके फलों के विकास के लिए पर्याप्त छाया की जरूरत होती है। इसके फल गहरे हरे होते है तथा पकने के समय यह लाल रंग के हो जाते हैं, इसका औसतन वजन 130 से 150 ग्राम होता है। इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है। यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर ले जाने के लिए उचित होते है।

ओरोबेल (येलो शिमला मिर्च) - यह किस्म मुख्यत: ठंडे मौसम में विकसित होती है। इसके फल ज्यादातर वर्गाकार, सामान्य तथा मोटे छिलके वाले होते है। इसके फल पकने के समय पीले रंग के होते है, जिनका औसतन भार 150 ग्राम होता है। यह किस्म बीमारीयों की रोधक किस्म है। जो कि ग्रीन हाउस और खुले खेत में विकसित होती है।

ग्रीन गोल्ड  -  इसके फल लम्बे और मोटे होते है, गहरे हरे और 100 से 120 ग्राम तक वजन के होते है।

सोलन हाइब्रिड 1 -  यह किस्म शीघ्र तैयार होने वाली तथा अधिक पैदावार देने वाली है। यह मध्य क्षेत्रो के लिए उपयुक्त है, यह फल सडऩ रोग रोधी किस्म है।

सोलन हाइब्रिड 2 -  यह किस्म भी अच्छी पैदावार देने वाली है7 इसके फल 60 से 65 दिन में तैयार हो जाते है। यह फल सडन और जीवाणु रोगरोधी किस्म है। इसकी पैदावार 325 से 375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

सोलन भरपूर -  इसके फल घंटी नुमा होते है। यह फसल 70 से 75 दिन में तैयार हो जाती है। फल सडन और जीवाणु रोग सहनशील है। इसकी पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

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कैलिफोर्निया वंडर -  यह काफी प्रचलित तथा उन्नत किस्म है। इसके पौधे मध्यम लम्बाई के और सीधे बढ़ते है। फल गहरे हरे तथा चिकने होते है और फलों का छिलका मोटा होता है।

यलो वंडर -  इसके पौधे छोटे आकार के होते है। फल का छिलका मध्यम होता है और फल गहरे हरे होते है।

अन्य किस्में -  शिमला मिर्च की अन्य उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे- अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, किंग आफ नार्थ, अर्का बसंत, ऐश्वर्या, अलंकर, अनुपम, हरी रानी, पूसा दीप्ती, हिरा आदि प्रमुख और अच्छी उपज वाली किस्में है।

शिमला मिर्च के पाए जाने वाले विटामिन

शिमला मिर्च, मिर्च की एक प्रजाति है जिसका प्रयोग भोजन में सब्जी की तरह किया जाता है। अंग्रेजी मे इसे कैप्सिकम (जो इसका वंश भी है) या पैपर भी कहा जाता है। शिमला मिर्च एक ऐसी सब्जी है जिसे सलाद या सब्जी के रूप में खाया जा सकता है। बाजार में शिमला मिर्च लाल, हरी या पीले रंग की मिलती है।

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चाहे शिमला मिर्च किसी भी रंग की हो लेकिन उसमें विटामिन सी, विटामिन ए और बीटा कैरोटीन भरा होता है। इसके अंदर बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती इसलिए यह खराब कोलेस्ट्रॉल को नहीं बढ़ाती। साथ ही यह वजन को स्थिर बनाए रखने में भी मददगार है।

पॉलीहाउस में उगाएं

सब्जी उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना से प्रदेश के किसानों में पोली हाउस में की जाने वाली संरक्षित खेती के प्रति जागरूकता आई है। पोली हाउस में की जाने वाली शिमला मिर्च की संरक्षित खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा है। शिमला मिर्च की खेती में किसान विभिन्न रंगों की शिमला मिर्च ईजाद कर सकता है।

जिनकी मार्केट वेल्यू अलग-अलग होती है। अगस्त-सितंबर माह में पोली हाउस में की जाने वाली इस खेती में प्रति एकड़ 12 हजार शिमला मिर्च के पौधे लगाए जा सकते हैं और प्रत्येक पौधा छह से सात किलो तक फसल देता और किसान यह फसल नौ महीनों तक ले सकता है। जबकि खुले में कम उत्पादन के साथ मात्र हरे रंग की शिमला मिर्च ही उत्पादित की जा सकती है। इसे देखते हुए पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती करना अधिक मुनाफे का सौदा है। 

पीली शिमला मिर्च की अधिक मांग

शिमला मिर्च की कई रंगों की किस्मों में पीली रंग की शिमला मिर्च की मांग बाजार में सबसे अधिक है। इसकी मुख्य वजह इसका आकर्षक रंग तो है ही जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। साथ ही ये विटामिन की दृष्टि से भी उपयोगी है। जो लोग अपने स्वस्थ केे प्रति सचेत हैं वे इसे शिमला मिर्च का इस्तेमाल सलाद के रूप में करते हैं क्योंकि इसे पकाकर खाने से अधिक इसे सलाद के रूप में उपयोग करना अधिक फायदेमंद है।

पीली शिमला मिर्च में विटामिन ए, बीटा-कैरोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। पीली शिमला मिर्च को आप अगर रोजाना अपने भोजन में शामिल करेंगे तो आपको इसके बहुत से फायदें होंगे।

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