Bottle Gourd Farming: लौकी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के तरीके
करनाल, Bottle gourd farming: किसान अगर लौकी की खेती मचान बनाकर करें तो सीजन और ऑफ सीजन दोनों में बेहतर क्वालिटी की लौकी और अधिक उत्पादन कर सकते है. बिहार में किसान लौकी की नई किस्म भी लगा रहे है, जिसको लोग खूब पसंद कर रहे हैं. लौकी में हजारा के नाम से नई किस्म आई है, जिसमें एक पौधे पर एक हजार से भी अधिक लौकी आती हैं।
लौकी की किस्में
अर्का नूतन, अर्का श्रेयस, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश, अर्का गंगा, अर्का बहार, पूसा नवीन, पूसा हाइब्रिड-3, सम्राट, काशी बहार, काशी कुंडल, काशी कीर्ति एंव काशी गंगा समेत अन्य किस्मों की लौकी की खेती अधिक पैदवार देती है. वहीं हाइब्रिड किस्में- काशी बहार, पूसा हाइब्रिड 3, और अर्का गंगा आदि लौकी की हाइब्रिड किस्में हैं. जो 50 से 55 दिनों में पैदावार देने लगती हैं. इन किस्मों की औसत उपज 32 से 58 टन प्रति हेक्टेयर के आस पास होती है।
रेड पम्पकिन बिटिल से कैसे बचाएं
इस कीट का प्रकोप लौकी की फसल में ज्यादा दिखने को मिलता है। लाल कद्दू भृंग कीट पौधों की पत्तियों और कोमल शाखाओं को खाते हैं। यह कीट अपनी हर अवस्था में पौधों को हानि पहुंचाता है, इस कीट का लार्वा पौधों के तनो और फलो को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। पहचान की बात करें तो यह कीट नारंगी रंग के होते हैं, जिन पर कई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
नियंत्रण के तरीके
80-100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
300-400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (युपीएल लांसर गोल्ड) दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फल मक्खी से बचाव
इस कीट का सुंडी अधिक हानि पहुंचाती है, प्रौढ़ मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है। यह कीट छोटे, मुलायम फल में छेद करके उसमें अंडे देती है। इसके अंडे से सुंडी निकलकर फलों के अंदर का भाग को खराब करती है। कीट फल के जिस भाग में अंडा देती है, वहां से टेढ़ा होकर सड़ जाता है।
फल मक्खी पर नियंत्रण के तरीके
इसके प्रबंधन के लिए हरे-पीले स्टिकी ट्रैप 10-12 प्रति एकड़ प्रयोग करें।
150 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी (बायर डेसीस 2.8) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% w/w ओडी (एफएमसी बेनेविया) की 300 मिलीलीटर मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
रस-चूसक कीट से होने वाले नुकसान: यह पौधों के पत्तियों से रस चूस कर पत्तियों को कमजोर कर देते हैं। जिससे पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है एवं पौधे कमजोर हो जाते हैं। पौधों का विकास रुक जाता है।
रस-चूसक कीट पर अंकुश लगाएं
थियामेथोक्साम 25% डब्ल्यू जी की 100 ग्राम मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
300-350 मिलीलीटर क्लोरपायरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
300-400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (युपीएल लांसर गोल्ड) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
लीफ माइनर (पत्ती सुरंग कीट) से होने वाले नुकसान: यह कीट पत्तियों में मौजूद हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं। जिससे पत्तियों के अंदर सुरंग बन जाती है।
इससे पत्तियों पर सफेद टेढ़ी-मेढ़ी धारी जैसी लकीर दिखाई देती है। इस कीट के कारण पौधों के विकास में भी बाधा आती है।
लीफ माइनर पर कैसे करें नियंत्रण
300-350 मिलीलीटर नीम के तेल को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
स्पिनेटोरम 11.7% एस सी (कॉर्टेवा डॉव डेलीगेट) की 150 मिलीलीटर मात्रा 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
300 मिलीलीटर सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% w/w ओ डी (एफएमसी बेनेविया) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
एपीलेकना बीटिल कीट के प्रौढ़ अंडाकार, पीले-भूरे रंग के होते हैं। यह कीट पत्तियों को खाते हैं, जिससे पत्ती में सिर्फ शिराये रह जाती हैं।
जिस कारण पौधे खाना नहीं बना पाते हैं और पौधे का विकास रुक जाता है।
लौकी की खेती में उपयुक्त भूमि
लौकी की खेती को किसी भी क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जा सकती है. लौकी की खेती उचित जल निकासी वाली जगह पर किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती है. लेकिन उचित जल धारण क्षमता वाली जीवाश्म युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है. लौकी की बुआई गर्मी एवं वर्षा के समय में की जाती है. लौकी की फसल पाले को सहन करने में बिल्कुल असमर्थ होती है. इसकी खेती को अलग-अलग मौसम के अनुसार विभिन्न स्थानों पर किया जाता है।