Himachal Elections:  बीजेपी का नारा ‘सरकार नहीं रिवाज बदलो'

Himachal Assembly Elections 2022: ‘सरकार नहीं रिवाज बदलो’ के नारे के साथ 'मिशन रिपीट' में जुटी बीजेपी ने कई राज्यों के पार्टी नेताओं की हिमाचल में चुनाव प्रचार में ड्यूटी लगा दी है। पड़ोसी राज्य, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, के अलावा हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और पंजाब सहित बीजेपी शासित राज्यों के सांसदों व विधायकों को प्रदेश में चुनाव प्रचार में लगा दिया गया है। 
 

शिमाला। Himachal Elections: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में दीपोत्सव के बीच विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं और सियासी दल सत्ता हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इस बार आम आदमी पार्टी (आप) की एंट्री से चुनाव और दिलचस्प हो गया है। तीस वर्ष से राज्य में मुख्य मुकाबला हमेशा कांग्रेस व बीजेपी के बीच होता था। एक बार कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती है तो एक बार बीजेपी, लेकिन इस बार आप की एंट्री से चुनावी जंग त्रिकोणीय होती दिख रही है। इसी हिसाब से कांग्रेस, बीजेपी के साथ आप ने भी जोर-शोर से प्रचार करने का प्लान कर लिया है।

ऐसे तो बीजेपी के मिशन रिपीट का टारगेट आसान लग रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। पार्टी के पास इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपने नेता कम पड़ते नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि चुनाव प्रचार व डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी बाहर से नेताओं को इम्पोर्ट कर रही है। ‘सरकार नहीं रिवाज बदलो’ के नारे के साथ  'मिशन रिपीट' में जुटी बीजेपी ने कई राज्यों के पार्टी नेताओं की हिमाचल में चुनाव प्रचार में ड्यूटी लगा दी है। पड़ोसी राज्य, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, के अलावा हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और पंजाब सहित बीजेपी शासित राज्यों के सांसदों व विधायकों को प्रदेश में चुनाव प्रचार में लगा दिया गया है। इन राज्यों के नेता 28 अक्टूबर को नामांकन वापसी के बाद हिमाचल में मोर्चा संभालेंगे। ये अपन- अपने जिलों में चुनाव प्रचार करेंगे। मंडल से लेकर जिला स्तर की मीटिंगों में वह हिस्सा लेंगे। रूठों को मनाने की जिम्मेदारी भी इन नेताओं पर रहेगी। ये नेता स्टार प्रचारक से अलग होंगे।
 

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शुरुआती बढ़त बनाने के बेनिफिट जानता है बीजेपी आलाकमान

हिमाचल में चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी अवधि छोटी होने की वजह से बीजेपी आलाकमान शुरुआती बढ़त बनाने के लाभ बेहतर तरीके से जानता है, इसलिए उसने चुनावों की तारीखों की घोषणा से पहले ही अपने सबसे बड़े स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी को मैदान में उतार दिया है और ऐसा करके कांग्रेस पर बीजेपी ने एक तरह की मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है।

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कांग्रेस-बीजेपी के बीच नजर आ रहा मुख्य मुकाबला

प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर अगर अब तक की स्थिति पर गौर किया जाए तो मुख्य मुकाबला कांगे्रस व बीजेपी में ही होता नजर आ रहा है। यदि राज्य में आप की स्थिति मजबूत होती भी है तो सत्ताविरोधी वोट आप व कांग्रेस बंट जाएंगे और इस वजह से बीजेपी को लाभ होना लाजिमी है। अगर यहां विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहता भी है तो यह पार्टी के लिए एंबेरेसमेंट वाला मौका होगा।

चुनाव फतह करने पर होगी नड्डा की बल्ले-बल्ले

हिमाचल बीजेपी के राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है और प्रदेश में इस बार चुनाव फतह करने पर उनकी वाहवाही होगी। बता दें कि बीजेपी ने नड्डा के नेतृत्व 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने और केंद्र में लगातार तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनाने का लक्ष्य रखा है। लोकसभा चुनाव से महज डेढ़ साल पहले अगर बीजेपी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के गृह राज्य में ही हार गई तो राष्टÑीय स्तर पर उसे डिफेंड करना मुश्किल हो सकता है। इसी के साथ यदि बीजेपी ने हिमाचल फतह कर लिया तो न केवल नड्डा की 'साख' बचेगी बल्कि पार्टी के कांग्रेस पर हमले भी तीखापन हो सकते हैं। बता दें कि चुनावों के मद्देनजर नड्डा इन दिनों हिमाचल में ही हैं।

वीरभद्र के निधन के बाद से कांग्रेसियों में सिर फुटव्वल

कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद हिमाचल में यह पहला विधानसभा चुनाव है। बता दें कि वीरभद्र के निधन के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में सिर फुटव्वल मची है। कांग्रेस के 19 विधायकों में से लगभग आधे खुद को  मुख्यमंत्री पद की रेस में बता रहे हैं। यही नहीं, कांग्रेस में वर्तमान में भगदड़ जैसे माहौल है। उसके 21 विधायकों में से दो ने पहले ही बीजेपी का दामन थाम लिया है। इसके अलावा कांग्रेस के पूर्व सांसद सुरेश चंदेल व वर्किंग प्रेसिडेंट हर्ष महाजन सहित और भी कई नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस की  इस टूट को बीजेपी आलाकमान इस बार भुनाने की तैयारी में है।

परिवारवाद मामले में खुद एक्सपोज हुई बीजेपी

परिवारवाद को लेकर कांग्रेस पर हमले बोलने वाली बीजेपी प्रदेश विधानसभा चुनाव में खुद एक्सपोज हो गई। पार्टी ने दर्जनभर सीटों पर अपने नेताओं के परिवार के बाहर कोई ‘जिताऊ’ प्रत्याशी न मिलने के चलते अपने ही नेताओं की पत्नियों व बेटों को टिकट दे दिए हैं। 

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