Manoj Kumar News: देशभक्ति के हीरो मनोज कुमार की आखिरी कहानी सुन चौंक जाएंगे

Manoj Kumar News Bharat Kumar on his Hindi movies: हिंदी सिनेमा के उन चंद सितारों में से एक, जिन्होंने देशभक्ति को पर्दे पर जिंदा किया, मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। 87 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, और उनके जाने से बॉलीवुड में शोक की लहर दौड़ गई।
मनोज कुमार सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक विचार थे, जिन्होंने फिल्मों के जरिए देशप्रेम की भावना को हर दिल तक पहुंचाया। उनकी फिल्में देखकर न जाने कितने लोग प्रेरित हुए, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह कम फिल्में करने में यकीन रखते थे? उनका मानना था कि फिल्मों की संख्या से ज्यादा उनकी क्वालिटी मायने रखती है।
Manoj Kumar News: 'लालची' कहे थे धर्मेंद्र और शशि कपूर को
मनोज कुमार उस दौर के कलाकार थे, जब सिनेमा में कला और संदेश को तवज्जो दी जाती थी। एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने अपने समकालीन अभिनेताओं पर खुलकर बात की थी। धर्मेंद्र और शशि कपूर जैसे सितारों का नाम लेते हुए उन्होंने कहा था, “मैंने अपने पूरे करियर में सिर्फ 35 फिल्में कीं, जबकि मेरे साथ के एक्टर्स ने 300-300 फिल्मों में काम किया। मैं न तो लालची इंसान हूं, न ही लालची एक्टर।” उनके इस बयान से साफ था कि वह फिल्मों को सिर्फ कमाई का जरिया नहीं मानते थे, बल्कि एक जिम्मेदारी समझते थे। यह बात उनके फैंस को आज भी याद है कि वह हर फिल्म में कुछ नया और सार्थक लेकर आए।
आखिरी फिल्म और सिनेमा से दूरी
मनोज कुमार ने आखिरी बार 1995 में रिलीज हुई फिल्म 'मैदान-ए-जंग' में अभिनय किया था। इसके बाद 1999 में उन्होंने 'जय हिंद' फिल्म का निर्देशन किया, जो उनकी आखिरी सिनेमाई पेशकश साबित हुई। इसके बाद वह पर्दे से दूर हो गए। फैंस उनकी एक झलक के लिए तरसते रहे, लेकिन मनोज कुमार ने फिल्मी दुनिया से किनारा कर लिया।
उनकी फिल्में आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हैं, खासकर 'उपकार', 'पूरब और पश्चिम' जैसी कालजयी रचनाएं, जो देशभक्ति की मिसाल हैं। उनके जाने से सिनेमा ने एक ऐसा सितारा खो दिया, जो न सिर्फ अभिनय, बल्कि अपने विचारों से भी लोगों को प्रभावित करता था।
एक प्रेरणा जो हमेशा जिंदा रहेगी
मनोज कुमार का जाना सिर्फ बॉलीवुड के लिए नहीं, बल्कि हर उस शख्स के लिए नुकसान है, जो उनकी फिल्मों से प्रेरणा लेता था। वह सादगी और सच्चाई के प्रतीक थे। उनके शब्द आज भी गूंजते हैं कि कला को लालच से ऊपर रखना चाहिए। उनकी 35 फिल्में भले ही संख्या में कम हों, लेकिन हर एक ने दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो उनके योगदान और उनकी सोच को सलाम करने का मन करता है।
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