Yashasvi Jaiswal : अब इंग्लैंड पिच से शिकायत नहीं कर सकता, बैज़बॉल की ज़िद से ही लुढ़का है सातवें स्थान पर
नई दिल्ली। Ind Vs Eng : पहले दिन इंग्लैंड के बैज़बॉल का जवाब जायस (बॉल) थे तो दूसरे दिन टीम इंडिया ने दिखाया कि कंडीशंस के हिसाब से बल्लेबाज़ी करना ही सही मायने में क्रिकेट है। अगर बैज़बॉल इतना ही अच्छा होता तो इंग्लैंड वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के पॉइंट्स टेबल में सातवें नम्बर पर न लुढ़कता।
जो रूट सहित चार-चार स्पिनरों का अटैक और उसमें पार्ट टाइमर को छोड़कर कोई भी गेंद को वैसा टर्न नहीं करा पाया, जैसा कि भारत के तीनों स्पिनरों ने कराया। रवींद्र जडेजा को तो चार डिग्री तक का टर्न मिला था और वह भी मैच के पहले दिन। दरअसल इस सीरीज़ का परिणाम ही इस बात पर निर्भर करता है कि जो जितना अच्छा स्पिन को खेलेगा, वही सीरीज़ पर कब्जा करेगा। सच यह है कि भारतीय बल्लेबाज़ स्पिन को ज़्यादा अच्छे तरीके से खेले हैं।
दस साल पहले भारतीय ज़मीं पर इसी इंग्लैंड ने हमें हराया था लेकिन आज न तो उनके पास मोंटी पनेसर जैसा स्पिनर है और न ही ग्रेम स्वान जैसा। बैटिंग में भी उनके पास एलिएस्टर कुक और पीटरसन जैसा भारत में चलने वाला कोई बल्लेबाज़ नहीं है। जो रूट बेशक स्पिनरों को बेहतर तरीके से स्वीप खेलते हों लेकिन उनकी यही शैली भारत में केवल तीन साल पहले के चेन्नै टेस्ट को छोड़कर कभी कारगर साबित नहीं हो पाई और न ही इस बार हुई।
इस बार उनके स्पिनरों ने हमारे पुछल्ला बल्लेबाज़ों पर लगाम ज़रूर लगाई लेकिन यह भी सच है कि श्रीकर भरत, जडेजा और अक्षर ने बिना जोखिम उठाए टीम के स्कोर को आगे बढ़ाने को अहमियत दी। सच तो यह है कि टीम इंडिया चौथी पारी में बल्लेबाज़ी करना ही नहीं चाहती। अब तक 175 की बढ़त हो चुकी है। सौ रन और जुड़ जाएं तो वाकई इंग्लैंड के लिए पारी की हार से बचना मुश्किल हो जाएगा।
लगातार धीमी होती विकेट के बावजूद भारतीय बल्लेबाज़ों ने इंग्लैंड की गेंदबाज़ों को इंजॉय किया। यही टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी खूबी है कि कब खेल को पांचवें गियर पर ले जाना है और कब तीसरे गियर पर हालात के हिसाब से बल्लेबाज़ी करनी है। दोनों ही स्थितियों में भारतीय बल्लेबाज़ों ने इंग्लैंड को हाशिए पर धकेल दिया।
इंग्लैंड की स्ट्रैटजी समझ से परे है क्योंकि डॉसन जैसे कबिल स्पिनर टीम में नहीं हैं। एंडरसन को बाहर बिठाने का मतलब है कि आप अपनी मर्सडीज़ को गेराज में रख आए हैं जबकि इसी मर्सडीज़ ने कभी सचिन और विराट जैसे दिग्गजों के लिए मुश्किलें खड़ी की थीं। बेशक एंडरसन में पहले जैसा दमखम न हो लेकिन अपने तजुर्बे से यह गेंदबाज़ आज भी असरदार साबित हो सकता है।
कम से कम मार्क वुड से तो वह आज भी ज़्यादा उपयोगी गेंदबाज़ हैं जबकि वुड लेग के बाहर गेंदें कराकर या तो अपना कॉन्फिडेंस खो चुके हैं या फिर अपनी गति और उछाल पर उन्हें कुछ ज़्यादा ही भरोसा है लेकिन उनकी ऐसी ही गेंदें वाकई इस टेस्ट में अभी तक बेअसर साबित हुई हैं। शायद इसीलिए उनसे कहीं ज़्यादा जो रूट जैसे पार्ट टाइम पर कप्तान का ज़्यादा भरोसा था। 13वें ओवर तक ही सभी रीव्यू गंवा देना भला कहां की समझदारी है।
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