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Govardhan Puja 2022: इस बार दीपावली के अगले दिन नहीं है गोवर्धन पूजा, 27 साल पहले हुआ था ऐसा

Govardhan Puja 2022
इस बार 27 साल बाद ऐसा हो रहा है कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं की जाएगी। सूर्या ग्रहण होने के कारण इस बार गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को भाई दूज के साथ ही मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ऐसा पूरे 27 साल बाद हो रहा है।

Govardhan Puja 2022: इस साल दीपावली का पावन त्यौहार 24 अक्टूबर को मनाया गया। लेकिन गोवर्धन पूजा इस बार दीपावली से अगले दिन नहीं है। हर साल दीपावली से अगले दिन गोवर्धन की पूजा होती है। लेकिन इस बार दिवाली के अगले दिन सूर्य ग्रहण होने के कारण गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर को नहीं की जाएगी।

इस बार 27 साल बाद ऐसा हो रहा है कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं की जाएगी। सूर्या ग्रहण होने के कारण इस बार गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को भाई दूज के साथ ही मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ऐसा पूरे 27 साल बाद हो रहा है।

इससे पहले साल 1995 में दिवाली के दिन सूर्य ग्रहण लगा था। बता दें कि इस साल 8 नवंबर को देव दिपावली के दिन चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। इस दौरान बुध, गुरु, शुक्र और शनि अपनी-अपनी राशि में विद्यमान हैं और आज साल का आखिरी सूर्य ग्रहण देश के कई हिस्सों में देखा जा सकेगा। 

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क्या है गोवर्धन पूजा की तिथि और समय?

गोवर्धन पूजा हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व हर साल दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। लेकिन इस बार 25 अक्टबूर को सूर्य ग्रहण होने के कारण गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर को नहीं मनाई जाएगी।

प्रतिपदा तिथि 25 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 18 मिनट पर शुरू हो रही है और 26 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट तक रहने वाली है। ऐसे में गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 26 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 29 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 43 मिनट तक है। 

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क्या है गोवर्धन पूजा की सही विधि?

इस बार दीपावली के अगले दिन 25 अक्टूबर को सूर्या ग्रहण का सूतक काल होने के कारण गोवर्धन पूजा नहीं की जाएगी। इस साल गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को ही भाई दूज के दिन ही मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन पर्वत के आसपास गाय या बछड़े को लाकर उसकी पूजा की जाती है। हालांकि, कई जगह पर ये परंपरा खत्म हो चुकी है।

इसके बाद उस पर्वत की पूजा की जाती है और उस पर मूली, मिठाई और पूरी का भोग लगाया जाता है। गोबर की एक आकृति बनाकर पर्वत की परिक्रमा की जाती है। इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा होती है। इसके बाद गोबर की आकृति पर चावल, रोली, मोली, सिंदूर, खीर आदि भी चढ़ाई जाती है और पूजा की जाती है। आखिर में गोवर्धन की आरती के साथ पूजा का समापन होता है। 

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