Haryana News: नए कैबिनेट गठन के जरिए भाजपा की लोकसभा चुनाव से पहले संतुलन साधने की कोशिश
चंडीगढ़। लोकसभा चुनाव चुनाव की घोषणा के बाद आचार संहिता लग चुकी है और चुनावी तैयारियों को लेकर सभी सियासी दल ऐडी चोटी का जोर लगा रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा सीट जीत सकें। पिछले दस दिन में हरियाणा में व्यापक स्तर पर राजनीतिक उठापटक देखने को मिली है जो राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों में रही।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा 12 फरवरी को इस्तीफा देने के बाद पद की कमान ओबीसी वर्ग से आने वाले नायब सैनी को दे दी गई और इसी दिन सीएम के अलावा पांच कैबिनेट मंत्रियों ने भी पद की शपथ ली। इसके बाद 19 फरवरी को एक कैबिनेट मिनिस्टर समेत 7 राज्य मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई जिसके चलते नए सियासी समीकरण लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा में बने।
नए कैबिनेट के गठन के बाद भाजपा ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं । उन्होंने एकतरफा होल्ड वाले कद्दावर नेताओं का कद संतुलित करने की कोशिश की है तो वहीं दूसरी विपक्षी पार्टियों के कद्दावर नेताओं को उनके गढ़ में घेरने की कोशिश की है।
मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को मजबूत करने की कोशिश
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मुस्लिम वोटर्स ने भाजपा से एक तरह से दूरी बनाए रखी है और पिछले साल नूंह दंगो के दौरान सत्ताधारी भाजपा व मुस्लिम समुदाय के लोगों में खाई बढ़ी है। सोहना सीट से पार्टी विधायक संजय सिंह को कैबिनेट में जगह देकर पार्टी ने यहां खुद को मजबूत करने की कोशिश की है।
सोहना सीट मुस्लिम बहुल नूंह से सटी है और यहां भाजपा कमजोर स्थिति में है। नूंह जिले में आने वाली तीनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का एकतरफा वर्चस्व और यहां फिरोजपुर झिरका से मामन खान , नूंह से आफताब अहमद और पुन्हाना से मोहम्मद इलियाय कांग्रेस विधायक पिछले चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
मूल रुप से नूंह के उजीना गांव के रहने वाले संजय सिंह का परिवार मेवात के प्रमुख राजनीतिक परिवारों में गिना जाता है। भाजपा की टिकट पर तावड़ू और नूंह से तीन बार विधानसभा चुनाव हारने वाले संजय सिंह को कैबिनेट में जगह देकर भाजपा यहां वोटों का धुव्रीकरण करने के मूड में साफ नजर आ रही है।
राव इंद्रजीत की पावर कम दक्षिणी हरियाणा में सत्ता का विकेंद्रीकरण
नए कैबिनेट के गठन से साफ पता चलता है कि अहिरवाल बेल्ट के नाम से पहचान रखने वाले दक्षिण हरियाणा में खासा राजनीतिक हस्तक्षेप रखने वाले भाजपा दिग्गज राव इंद्रजीत की पावर का विकेंद्रीकरण किया गया है। कैबिनेट में उनके खास पूर्व मंत्री ओपी यादव को जगह नहीं मिलना राव इंद्रजीत के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीें है तो वहीं दूसरी तरफ उनके धुर विरोधी अभय सिंह यादव को कैबिनेट में जगह देकर राव इंद्रजीत को दोहरा झटका दिया जो साफ बता रहा है कि पार्टी दक्षिणी हरियाणा में एकतरफा होल्ड लिए नहीं देखना चाहती।
भाजपा पिछली बार भी अभय सिंह यादव को मंत्री बनाना चाहती थी लेकिन राव इंद्रजीत के विरोध व असहमति के चलते अभय सिंह यादव को कैबिनेट में जगह नहीं मिली। बेशक पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुग्राम में एक कार्यक्रम में राव इंद्रजीत को अपना दोस्त बताया और भाजपा द्वारा उनको तीसरी बार गुरुग्राम सीट से सांसद की टिकट दी लेकिन कैबिनेट में उनको वफादार ओपी यादव को जगह न देकर और कड़े प्रतिद्वंदी अभय सिंह यादव को मंत्री बनाकर तगड़ा झटका दिया है।
जाटों को साधने की कोशिश, रणजीत सिंह के जरिए चौटाला परिवार के प्रभाव को कम करने की जुगत
कैबिनेट में सर्वाधिक तीन मंत्रियों जिनमें दो कैबिनेट रणजीत सिंह व जेपी दलाल और एक राज्य मंत्री महिपाल ढांडा को जगह देकर एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की गई है। तीनों जाट नेताओं को कैबिनेट में जगह देकर सामान्य कैटेगरी मे आने वाले जाट समुदाय के वोटर्स को साधने की कोशिश की गई है।
हालांकि जेपी दलाल और निर्दलीय रणजीत सिंह तो पहले भी कैबिनेट मिनिस्टर थे लेकिन अबकी बार महिपाल ढांडा को भी मंत्री बनाया गया है। हालांकि पहले हरियाणा कैबिनेट में पांच जाट मंत्री थे लेकिन जजपा से गठबंधन तोड़ने वाले और नई सरकार बनने के जजपा के दुष्यंत चौटाला व देवेंद्र बबली का कैबिनेट से पत्ता हो गया तो वहीं भाजपा ने पार्टी की कमलेश ढांडा को अबकी बार मंत्री नहीं बनाया।
वहीं पूर्व की तरह निर्दलीय रणजीत सिंह को मंत्री बनाकर चौटाला परिवार के प्रभाव वाले लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश की है। फिलहाल चौटाला परिवार तीन धड़ों-जजपा, इनेलो और रणजीत सिंह तीन धड़ों में बंटा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जाट समुदाय से मंत्री कम होने से कहीं न कहीं जाट समुदाय में इसकी नाराजगी हो सकती है।
जीटी रोड बेल्ट पर पार्टी को ज्यादा मजबूत करने पर ध्यान
इसमें कोई दो राय नहीं है अन्य जिलों की तुलना में जीटी रोड़ बेल्ट पर पड़ने वाले जिलों कुरुक्षेत्र, करनाल और पानीपत में भाजपा कहीं ज्यादा मजबूत है। इसी कड़ी में भाजपा ने अंबाला से असीम गोयल, कुरुक्षेत्र से सुभाष सुधा, और पानीपत से महिला ढांडा को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया है।
वहीं सीएम नायब सैनी खुद एक तरह से करनाल से हैं क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के करनाल विधानसभा से इस्तीफा दे इस सीट को नायब सैनी के लिए खाली कल दिया और आने वाले उपचुनाव से नायब सैनी इस सीट से चुनाव लड़ेंगे। इस लिहाज से जीटी रोड़ बेल्ट पर आने वाले चार जिलों से खुद सीएम के अलावा तीन विधायकों को राज्यमंत्री बनाकर यहां पार्टी को पहले की तुलना में मजबूत करने की कोशिश की है।
पिछले 4 मंत्रियों को हटाकर भी अनुशासन में बने रहने की संकेत
भाजपा ने नई कैबिनेट में चार पूर्व मंत्रियों को जगह ने देते हुए एक साथ दो संकेत दिए कि सबको काम करना होगा और साथ ही अनुशासन में रहना होगा। अनिल विज की सीएम पद के लिए नायब सैनी के नाम से असहमति और फिर अनिल विज का मीटिंग से उठकर चले जाने को पार्टी हाईकमान ने अनुशासनहीनता ही माना।
बेशक अनिल विज कहते रहे कि वो नाराज नहीं है लेकिन पार्टी को उनकी नाराजगी का पता होने के बाद भी उनको मनाने की कोई ज्यादा कोशिश नहीं करते हुए उनको उनके हाल पर छोड़ दिया। वहीं राव इंद्रजीत के खासमखास ओपी यादव को हटाकर दक्षिण हरियाणा में सत्ता का विकेंद्रीकरण करने की कोशिश की।
वहीं संदीप सिंह के खिलाफ यौन शोषण मामले का आंकलन करते हुए पार्टी इसको सियासी नुकसान के रूप में देखते हुए उनको कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा तो वहीं कमलेश का कैबिनेट में नहीं रखने के पीछे एक बेहद वरिष्ट भाजपा नेता ने कहा कि उनकी ढीली कार्यशैली उनके खिलाफ गई और उनकी जगह सीमा त्रिखा को कैबिनेट में जगह दी गई।
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