NRCE Vaccine: हिसार के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र ने विकसित किया ऐसा वायरस जो घोड़ियों में गर्भपात रोकेगा

हिसार, Hisar NRCE news : राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) के डॉ. टीके भट्टाचार्य ने बताया कि एनआरसीई में विकसित यह टीका अश्वपालकों के लिए वरदान साबित होगा। इस पर चार साल से काम चल रहा था। टीका विकसित कर दिया गया है। शेष औपचारिकताओं को संस्थान जल्द पूरा कर लेगा।
उपचार भी वायरस से ही
एनआरसीई के वैज्ञानिकों ने इस वायरस का उपचार भी वायरस से ही निकाला। इसके लिए उन्होंने मृत वायरस से एक टीका बनाया। यह टीका गर्भ रोकने में तो कारगर था लेकिन बार-बार देना पड़ता था। ऐसे में यह पशुपालकों के लिए परेशानी का कारण बन रह रहा था।
इसे देखते हुए एनआरसीई के अश्व स्वास्थ्य अनुभाग के विभागाध्यक्ष प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नीतिन वीरमानी ने जिंदा वायरस से टीका विकसित किया। इसमें अश्व हर्पीश वायरस के जीन की प्रकृति में बदलाव कर बीमार करने की क्षमता को खत्म कर दिया गया। ऐसे में बीमार करने वाला यह वायरस रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाला हो गया।
घोड़ी का गर्भ काल कितने महीनों का होता है
घोड़ियां गर्भधारण के 11 महीने बाद बच्चा देती हैं। अश्वपालकों के लिए यह समय न सिर्फ उम्मीद भरा होता है, वरन तनाव वाला भी होता है क्योंकि घोडि़यों में गर्भपात की समस्या प्राय: 9वें से 11 महीने में ही आती है। इस वक्त तक अश्व पालक एक और अश्व मिलने की उम्मीद में गाभिन घोड़ी पर काफी धन खर्च कर चुका होता है। अश्व में गर्भपात की स्थिति में पालकों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता था। घोड़ियों में गर्भपात का मुख्य कारण अश्व हर्पीश वायरस होता है।
एनआरसीई ने विकसित किया टीका
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीई) हिसार ने घोड़ियों में गर्भपात को रोकने के लिए टीका विकसित किया है। अश्व हर्पीश नाम के वायरस के जीन में बदलाव कर यह टीका विकसित किया गया है।
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टीका लगने के बाद घोड़ियों में इस बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और गर्भपात की समस्या का निदान हो जाएगा। अश्व अनुसंधान केंद्र की लैब में इस टीके के सफल परीक्षण के बाद संस्थान के वैज्ञानिकों ने घोड़ों पर इस टीके के प्रयोग के लिए अनुमति मांगी है।
मांगी प्रयोग की अनुमति
चार साल से इस एनआरसीई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. वीरमानी ने बताया कि चूहों पर यह टीका कारगर साबित हुआ है। लैब में सफलता के बाद पशुओं के लिए बनने वाले टीके के लिए सीपीसीएसईए नामक संस्था से नैतिक उपयोग की अनुमति लेना आवश्यक है।
इसमें टीका विकसित करने वाले को भरोसा दिलाना होता है कि इसके उपयोग से जानवर को कोई हानि नहीं होगा और जानवरों की सेहत के लिए इसका विकसित किया जाना जरूरी है।
टीके का ट्रायल होगा
अनापत्ति प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही बड़े जानवरों पर टीके का ट्रायल हो सकता है। संस्थान की ओर से कमेटी फॉर द परपस ऑफ कंट्रोल एंड सुपरविजन आफ एक्सपेरिमेंट्स ऑन एनिमल से अनुमति लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। शोध के पेटेंट के लिए भी आवेदन किया जा चुका है। बड़ी बात यह कि बंगलूरू की एक कंपनी से टीका बनाने के लिए समझौता भी हो चुका है।
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