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Satnali News: गांव के हर घर में पूजे जाते है बाबा भैरव, समृद्धि व जनआस्था का प्रतीक हैं सतनाली का भैरव बाबा का मंदिर

Satnali News: गांव के हर घर में पूजे जाते है बाबा भैरव, समृद्वि व जनआस्था का प्रतीक हैं सतनाली का भैरव बाबा का मंदिर
बाबा भैरव मेला विशेष: दूरदराज के क्षेत्रों में बसे मूल निवासी भी अवश्य पहुंचते है मंदिर में। 

सतनाली। कस्बा स्थित बाबा भैरव मंदिर सतनाली व आसपास के क्षेत्र सहित सीमावर्ती राजस्थान राज्य के लोगों की अटूट आस्था का प्रतीक है। प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल एकादशी को मंदिर में बाबा भैरव का प्रसिद्व मेला लगता है। इस बार 19 अप्रैल को बाबा भैरव के वार्षिक मेले व कुश्ती दंगल का आयोजन किया जाएगा, इससे पहले 18 अप्रैल को रात्रि जागरण का भी आयोजन किया जाएगा।

मेले को लेकर लोगो में उत्साह देखने को मिल रहा है तथा मेले की तैयारियां शुरू हो चुकी है। मान्यता है कि बाबा भैरव मेलें के दिन कस्बे के लोग जो दूरदराज व बाहरी क्षेत्रों में जाकर बसे हुए है वे भी बाबा भैरव मंदिर में पूजा अर्चना के लिए सतनाली अवश्य पहुंचते है। आस्था का केंद्र होने के कारण मेलें की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। कस्बे की पूर्व दिशा में बने बाबा भैरव के मंदिर में श्रद्वालु तेल, अन्न व शराब अर्पित कर बाबा भैरव से समृद्वि व सुख की कामना करते हैं।

घरों में तेल से बने पकवान गुलगुले आदि बनाए जाते हैं। यह अछूता पकवान बाबा भैरव के मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाकर लोग इनका आनंद लेते हैं। गांव के हर घर में भैरव की मान्यता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि बाबा भैरव सुरक्षा व समृद्वि प्रदान करते हैं।

बुजूर्ग बताते हैं कि विक्रमी संवत 2004 में सतनाली में भीषण आग लग गई व अधिकांश घरों में आग से भारी नुकसान हुआ। इसके पश्चात प्रतिवर्ष गांव में आग से नुकसान होने की घटनाएं शुरू हो गई। संवत 2007 में पुन: भीषण आग ने संपूर्ण गांव को अपनी चपेट में ले लिया जिससे गांव में भारी क्षति हुई। ग्रामीण इन अग्निकांडों से चिंतित हो गए व उपाय खोजने लगे।

संवत 2008 में कुम्हार समुदाय द्वारा गांव में पूर्व दिशा में मिट्टी के टिब्बें से खुदाई कार्य के दौरान एक धातु की बाबा भैरों की प्रतिमा प्राप्त हुई। इस प्रतिमा को तत्कालीन सरपंच स्व. जगमाल सिंह वालिया ने वहीं पर स्थापित कर दिया गया व बाबा भैरव का रात्रि जागरण कर बाबा से गांव को आग से बचाने के लिये कामना की।

बताया जाता है कि इसके बाद से गांव में आग नही लगी। इसके बाद कस्बे के एक वालिया परिवार ने अपने कजावे की ईंटे दान में दी, जो बाबा भैरव के मंदिर के निर्माण में लगाई गई। मंदिर के पुजारी के रूप में लाधु कुम्हार को मंदिर में बैठाया गया। गांव में एक मकान की नींव खुदाई में माता की मूर्ति भी मिली, जिसे बाद में भैरव मंदिर में स्थापित कर दिया गया।

मंदिर निर्माण में कस्बे के वालिया समुदाय व कुम्हार समुदाय का अह्म योगदान रहा। इसके साथ ही गांव में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल की दसवीं को विशाल जागरण का आयोजन किया जाता है व एकादशी को प्रतिवर्ष मेला लगता है। बताते है कि उस समय लगे मेलें में जितनी भीड़ उमड़ी उसके समक्ष गांव की हर गली व मैदान भी टोटा पड़ गया। इसके बाद से ही मेला तो हर वर्ष आयोजित किया जाता है, लेकिन उस मेलें की याद आज भी बुजूर्गो के जेहन में समाई हुई है। 

मेले के बेहतर प्रबंध बाबा भैरव दल सेवा समिति करती है। मेले का स्थल भी संकुचित पडऩे लगा है परंतु मेलें का महत्व व बाबा भैरव में लोगों की आस्था आज भी बरकरार है।


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