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Nitish Kumar News: नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री बनने का सपना फिर टूटा

Nitish Kumar News : नीतीश कुमार का प्रधानमंत्री बनने का सपना फिर टूटा
Nitish Kumar Latest News: नीतीश कुमार ने अब सारा गुणा भाग लगा कर निर्णय लिया है कि अब इंडिया गठबंधन में रहने का कोई फायदा नही है क्योंकि प्रधानमंत्री तो ये भी नही बना रहे और अब बिहार में तेजस्वी की बढ़ती लोकप्रियता और प्रशांत किशोर के उभरते नेतृत्व से नीतीश को ये डर भी सता रहा है कि कहीं प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में मुख्यमंत्री पद ही न चला जाए।

नई दिल्ली। हरियाणा में सत्तर के दशक में हुई राजनीतिक उथल पुथल के दौरान प्रचलन में आए "आया राम गया राम" के नारे को चार दशकों के बाद बिहार में फिर से नीतीश कुमार ने राजनीतिक पाला बदल कर सार्थक कर दिया है। राजनीति में कौन सा नारा कब सार्थक हो जाए इसके बारे में कुछ आकलन नहीं किया जा सकता। बिहार में दो दशकों से सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने राजनीतिक सहयोगी बदलने के सारे रिकॉर्ड तोड कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

दरअसल नीतीश कुमार की इच्छा शुरुआती दौर में मुख्यमंत्री बनने की थी और जनता पार्टी में वो स्थान न मिलता देख अपना राजनीतिक दल बनाया और भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। परंतु दस वर्ष तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के बाद जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की तो नीतीश कुमार की भी इच्छा हुई कि जब 26 लोकसभा सीट वाले गुजरात के मुख्यमंत्री पीएम बनने की चाहत रख सकते है तो 40 लोकसभा सीट वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्यों नहीं रख सकते। इ

सी इच्छा के चलते नीतीश कुमार ने 2013 में मोदी के विरोध में एनडीए से अलग होकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया परंतु एक साल में ही जब इन्हें लगा कि प्रधानमंत्री नहीं बना जायेगा तब इन्होंने जीतन राम मांझी को गद्दी से हटा कर फिर से मुख्यमंत्री का पद ग्रहण कर लिया और आरजेडी, कांग्रेस व अन्य दलों के साथ मिलकर महागठबंधन के अंतर्गत 2015 का विधानसभा चुनाव जीत लिया। 

परंतु दो वर्षों में ही महागठबंधन टूट गया क्योंकि नीतीश कुमार ने सोचा जब प्रधानमंत्री बन ही नहीं सकते तो विपक्ष में क्यों रहें, इसलिए ये बीजेपी के साथ पुन: एनडीए में शामिल हो गए।

2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिल कर लड़ा जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान नीतीश कुमार को हुआ और इस चुनाव में नीतीश की पार्टी के सबसे कम विधायक विधानसभा में पहुंच पाए परंतु फिर भी सरकार नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की ही बनी।
2022 में एक बार फिर से नीतीश के मन में पीएम बनने का बुलबुला फूटा और 1970 के दशक में कांग्रेस के एकछत्र राज को हटाने के लिए विपक्ष को एकजुट करने में जो भूमिका "जय प्रकाश (जेपी)" ने निभाई वैसी ही भूमिका नीतीश ने भी निभाने का प्रयास किया।

और एक वर्ष की कड़ी मेहनत से देश के सभी राज्यों की विपक्षी पार्टियों को मिला कर I.N.D.I.A. गठबंधन का निर्माण किया और मोदी सरकार को चुनौती देने की ठानी। परंतु इंडिया गठबंधन में मुख्य दल कांग्रेस था और राहुल गांधी की लोकप्रियता भी भारत जोड़ो यात्रा के बाद थोड़ी बढ़ी है। 

इसलिए कांग्रेस चाह रही है कि इंडिया गठबंधन की तरफ से राहुल गांधी पीएम पद के उम्मीदवार बने, वहीं आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे का नाम आगे कर दिया, इससे सबसे ज्यादा ठेस नीतीश कुमार को पहुंची क्योंकि उनका नाम किसी भी दल या नेता द्वारा नहीं रखा गया।

क्योंकि विपक्ष को मोदी के खिलाफ एकजुट करने का ऐसा ही एक प्रयास 2018-19 में तेलगु देशम पार्टी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने भी किया था, जिसमें उनकी आंध्रप्रदेश से सरकार भी गई और लोकसभा की भी लगभग 87 फीसदी सीटों से हाथ धोना पड़ा था, इसलिए नीतीश कुमार दूसरे चंद्रबाबू नायडू नहीं बनना चाहते। इसलिए नीतीश कुमार ने फिर से पाला बदलने का निर्णय लिया है।

नीतीश कुमार के इस निर्णय से पूरी संभावना बन गई है कि वो मौके का भरपूर फायदा उठाएंगे और अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव करवा सकते हैं क्योंकि बिहार में कोई भी राजनीतिक दल अप्रैल में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है।

दूसरा लाभ ये है कि इससे नीतीश कुमार को मोदी लहर का तो फायदा मिलेगा ही मिलेगा और इसके साथ ही विधानसभा में सीटें भी ज्यादा मिलने की संभावना है, क्योंकि मोदी जी को पीएम बनने के लिए लोकसभा सांसद चाहिए और नीतीश को विधायक,  तो ये संभव है कि बीजेपी विधानसभा की सीट बंटवारे में नीतीश कुमार को तरजीह दे और नीतीश कुमार बीजेपी को लोकसभा की सीटों में।

परंतु फिर भी अब बिहार की राजनीतिक परिस्थितियां नीतीश के पक्ष में नजर आती हुई प्रतीत नहीं हो रही है क्योंकि अब तेजस्वी भी एक अच्छे नेता के रूप में उभर चुके हैं और बेदाग छवि को बनाए हुए हैं और उन्हें कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों का समर्थन भी प्राप्त है।

इसके साथ ही बार बार दल बदलने का सारा आरोप नीतीश कुमार के सर पर है और बीती शाम राजनीति के चाणक्य और जन सुराज सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने भी नीतीश के खिलाफ और तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में बयान दिया है, यदि तेजस्वी और प्रशांत किशोर मिल जाते हैं (और मिलने की संभावना इसलिए है क्योंकि दोनो दल अप्रैल में चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है इसलिए दोनो को एक दूसरे का सहारा चाहिए) तो निश्चित तौर पर नीतीश कुमार को इस निर्णय का भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।

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