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Karpuri Thakur: कर्पूरी ठाकुर की ऐसी है संघर्ष यात्रा की आप भी हैरान हो जाएंगे

Karpuri Thakur: कर्पूरी ठाकुर की ऐसी है संघर्ष यात्रा की आप भी हैरान हो जाएंगे 
Bharat Ratna Karpuri Thakur Story: कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे | 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे |अपने दो कार्यकाल में कुल मिलाकर ढाई साल के मुख्यमंत्रीत्व काल में उन्होंने जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता. ख़ास बात ये भी है कि वे बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे |

Karpuri Thakur Story in Hindi : 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. इसके चलते उनकी आलोचना भी ख़ूब हुई लेकिन हक़ीक़त ये है कि उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया. इस दौर में अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों का मज़ाक 'कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं' कह कर उड़ाया जाता रहा। 

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गरीबों के प्रतिनिधि थे कर्पूरी

वे बिहार की राजनीति में गरीब गुरबों की सबसे बड़ी आवाज बन कर उभरे थे. जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिला स्थित पितौंझिया गांव में हुआ था. कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे. इसके साथ ही वे दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे.

कभी नहीं हारे विस का चुनाव

कर्पूरी ठाकुर 1952 की पहली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे. जननायक कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. उन्होंने अपने दो के कार्यकाल में जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता है.

अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की

जननायक कर्पूरी ठाकुर ने 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. इसके चलते उनकी आलोचना भी खूब हुई, लेकिन उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया. उस दौर में अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों का मजाक उड़ाया जाता था. उस समय में जो लोग 10वीं पास करते थे, उन्हें कहा जाता था कि 'कर्पूरी डिविजन से पास हुए हैं' ऐसा कह कर मजाक उड़ाया जाता था.

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गरीबों की आवाज बन कर उभरे थे कर्पूरी ठाकुर

1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बड़ी राहत देते हुए कर्पूरी ठाकुर गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया. 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू करके राज्य की नौकरियों आरक्षण लागू करने के चलते वो हमेशा के लिए सवर्णों के दुश्मन बन गए.

कर्मचारियों के लिए समान वेतन आयोग का किया गठन

विरोध के बावजूद कर्पूरी ठाकुर समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था.

कर्पूरी ठाकुर प्रतिभा के धनी नेता थे

युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि एक कैंप आयोजित कर 9000 से ज़्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दे दी | शिक्षा व्यवस्था को आम लोगों के बीच पहुंचाने के लिए माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण रूप से फ्री कर हर तबके के लोगों के लिए शिक्षा का द्वार खोला।

भूमि सुधार जैसे कार्यक्रम एवं मुंगेरी लाल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर पिछड़े एवं अति पिछड़ों वर्गों को सरकारी सेवा में आरक्षण की व्यवस्था लागू करवाया। सामंती अत्याचार से लड़ने के लिए दलितों के हाथों में भी हथियार का लाइसेंस देने की मांग उठायी थी। वर्षों से चली आ रही वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा को समूल नाश के लिए जीवन पर्यंत लड़ाई लड़ते रहे।

कर्पूरी ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी नेता थे। वे जितना राजनीति और समाजवादी विचारधारा में पैठे थे, उतना ही साहित्य, कला और संस्कृति में। हर सफ़र में अक्सर किताबों से भरा बस्ता उनके साथ होता था।दिन रात राजनीति में ग़रीब गुरबों की आवाज़ को बुलंद रखने की कोशिशों में जुटे कर्पूरी की साहित्य, कला एवं संस्कृति में काफी दिलचस्पी थी.  1980-81 की बात होगी, पटना में  पुस्तकों की एक दुकान पर  एक लेखक ने  उन्हें हिस्ट्री ऑफ़ धर्मशास्त्र ख़रीदते खुद देखा। 

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