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Agriculture News: कम कीमत की फसल रागी होता है छोटे बीज वाला पौधा

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जलवायु अनुकूल कम कीमत की फसल रागी छोटे बीज वाला पौधा है। इसे शुष्क क्षेत्रों में वर्षा आधारित कम कीमत वाली फसल के रूप में जाना जाता है। ओडिशा के कृषि और किसान अधिकारिता निदेशक प्रेम चौधरी का कहना है कि मिलेट की खेती में न्यूनतम लागत के साथ बहुत कम इनपुट की जरूरत होती है।

Agriculture News: जलवायु अनुकूल कम कीमत की फसल रागी छोटे बीज वाला पौधा है। इसे शुष्क क्षेत्रों में वर्षा आधारित कम कीमत वाली फसल के रूप में जाना जाता है। ओडिशा के कृषि और किसान अधिकारिता निदेशक प्रेम चौधरी का कहना है कि मिलेट की खेती में न्यूनतम लागत के साथ बहुत कम इनपुट की जरूरत होती है।

यहां के अधिकांश इलाकों में इसकी खेती प्राकृतिक आधारित तकनीकों पर होती है, जिसमें कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती। बाजरे में कम सिंचाई की जरूरत होती है और 70-100 दिन में कटाई की जा सकती है। वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटी नेटवर्क के अभिजीत मोहंती के अनुसार मोटे अनाज में अन्य फसलों की तुलना में कम से कम 70 फीसदी कम पानी की खपत होती है।

इसकी गर्मी सहन करने की क्षमता जलवायु के अनुकूल है। इन सभी वजहों से अन्य फसलों की तुलना में मोटे अनाज की खेती की लागत कम है।

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खर्च बहुत कम और लाभ ज्यादा: कल्पना सेठी

कल्पना सेठी का यह भी कहना है कि इसकी खेती में खर्च बेहद कम और मुनाफा ज्यादा है। उन्होंने कहा, हम किसी भी तरह के रसायनों की जगह प्राकृतिक खाद इस्तेमाल करते हैं। शुरू में, सरकार ने बीज दिया था फिर हमने बीजों का संरक्षण किया, जिससे हमारे लिए बीज की लागत जीरो हो गई।

किसानों का दावा है कि कृषि क्षेत्र से मोटे अनाज के गायब होने की एक अहम वजह कम कीमत मिलना, ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक प्रसंस्करण की कमी व पर्याप्त खरीद का अभाव और उत्पाद की लागत में बढ़ोतरी थी। हालांकि, इस मुद्दे का समाधान निकाल लिया गया है।

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चरागाह की जमीन पर भी की जा रही मिलेट की खेती

हांडीपाना गांव निवासी बसंती महंत के अनुसर उनकी उपज हमेशा बिकती है। भंडारण या खरीदारों की तलाश का कोई इश्यू नहीं है।  उनका कहना है कि सरकार इसे हमारे गांव से खरीदती है, इसलिए मंडियों (बाजारों) तक ले जाने का कोई सवाल ही नहीं है। इससे पूरी प्रक्रिया हमारे लिए बेहद सस्ती व लाभदायक हो जाती है।

इसके अलावा, चरागाह की जमीन पर मिलेट की खेती की जा रही है, जिस जमीन से कोई आमदनी नहीं होती है। जिले के एक स्थानीय एनजीओ क्रेफ्टा के वैद्यनाथ महंत के मुताबिक धान व सब्जियों समेत उनकी मौजूदा खेती में कोई बाधा नहीं है। वे चरागाहों पर बाजरे की खेती करते हैं, जहां इससे पहले इसका कोई उपयोग नहीं था। मतलब कि वे शून्य इनकम वाली जमीन से मुनाफा कमा रहे हैं।

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