Bihar Crime news: देश के पुलिस विभाग में बिहार से आई सबसे दिलचस्प खबर, जानकार रह जाएंगे हैरान  

Latest Bihar crime news: फतेहपुर के एसएचओ ने इसी वर्ष के शुरू में शराब से भरी एक गाड़ी जब्त की थी, लेकिन ये जब्ती रिकॉर्ड पर कहीं मौजूद ही नहीं थी। मतलब यह कि न तो शराब सरकारी मालखाने तक पहुंचा, न ही कोई केस दर्ज हुआ। अब इस शराब को कौन गटक गया, पता नहीं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कहीं एसएसपी आदित्य कुमार को क्लीन चिट देने की साजिश में कुछ और बड़े लोग तो शामिल नहीं हैं? इस सवाल व शक के कई कारण हैं। आइए जानते हैं क्‍या है पूरा मामला।
 

पटना। Bihar crime news in Hindi: देश के पुलिस विभाग में बिहार (Bihar crime) से एक ऐसी खबर सामने आई है जो अब तक की सबसे बड़ी है। बिहार पुलिस ने खुद यह कहानी सुनाई है। इस कहानी का दस्तावेजी सबूत एफआईआर के रूप में मौजूद है। यह कहानी गया के फतेहपुर से शुरू होती है। वहां के एसएचओ ने इसी वर्ष के शुरू में शराब से भरी एक गाड़ी जब्त की थी, लेकिन ये जब्ती रिकॉर्ड पर कहीं मौजूद ही नहीं थी। मतलब यह कि न तो शराब सरकारी मालखाने तक पहुंचा, न ही कोई केस दर्ज हुआ। अब इस शराब को कौन गटक गया, पता नहीं। उन दिनों आईपीएस आदित्य कुमार गया के एसएसपी थे। बता दें कि उनकी वर्दी पहले से ही दागदार थी और इस बार उस पर शराब की छींटे भी पड़ गए। इस दफा यह हुआ कि खबर दबी नहीं बल्कि बाहर आ गई।

एसएसपी पर एसएचओ को बचाने के आरोप लगे

जब जोन के आईजी तक मामला पहुंचा तो एसएसपी पर एसएचओ को बचाने का इल्जाम लगा। बात यहां तक पहुंच गई कि एसएसपी और आईजी आपस में ही लड़ पड़े।  इसके बाद मामला पटना पुलिस हेडक्वार्टर तक पहुंच गया। फिर एसएसपी तथा आईजी दोनों को हटा दिया गया। जांच के दौरान एसएसपी आदित्य कुमार के खिलाफ गया में ही शराब माफियाओं को बचाने को लेकर एफआईआर दर्ज हो गई। एसएचओ का नाम तो था ही, इस बीच आदित्य कुमार का गया से तबादला कर उन्हें पटना हेडक्वार्टर में बिठा दिया गया। इसके बाद उन्हें अब कोई पोस्टिंग नहीं दी जा रही थी।

जिले में दोबारा बहाली के लिए अपराधी की तरह सोचने को मजबूर हुए आदित्य कुमार

पुलिस हेडक्वार्टर में खाली बैठे आदित्य कुमार बोर होने लगे। वह वापस जिले में अपनी बहाली चाहते थे। उधर गया में दर्ज मुकदमे से भी वह परेशान थे। गिरफ्तारी के खतरे को देखते हुए उन्होंने अग्रिम जमानत की एप्लीकेशन दी, पर कोर्ट ने उनकी यह अर्जी खारिज कर दी। अब आदित्य कुमार के पास गिरफ्तारी से बचने व जिले में बहाली की एक ही राह बची थी। वो यह कि उनके खिलाफ दर्ज केस किसी न किसी तरह खत्म हो जाए। यहीं से एक पुलिस अफसर यानी आदित्य कुमार ने एक अपराधी की तरह सोचना शुरू कर दिया।  

पटना के एक रेस्टोरेंट में रची गई पूरी साजिश

आदित्य कुमार के घर और पटना के एक रेस्टोरेंट में पूरी साजिश रची गई। यह तय किया गया कि आदित्य कुमार का एक जालसाज दोस्त अभिषेक अग्रवाल पटना हाई कोर्ट का फर्जी चीफ जस्टिस बनेगा। इसके बाद वह बिहार के डीजीपी को फोन करके केस खत्म कराएगा। वैसे पटना चीफ जस्टिस का वास्तविक नाम संजय कोरोल है। इसी के बाद गत सितंबर के शुरू में नया मोबाइल व सिम खरीदा गया। साजिÞश के तहत फिर अभिषेक अग्रवाल ने सबसे पहले नए सिम के नंबर पर डीपी में चीफ जस्टिस की फोटो लगाई। फिर डीजीपी के सरकारी मोबाइल पर फोन करना शुरू कर दिया।  

कई बार किया गया डीजीपी को फोन

अभिषेक अग्रवाल ने खुद को हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बताते हुए डीजीपी से एसएसपी आदित्य कुमार के खिलाफ गया में दर्ज केस खत्म करने व उन्हें इस मुकदमे में क्लीन चिट देने को कहा। उसने सितंबर में कई बार डीजीपी को फोन घुमाया। अभिषेक ने कभी व्हॉट्सएप कॉल तो कभी नॉर्मल नंबर पर फोन किए। एक दो-बार तो फोन पर उसने डीजीपी के साथ अपनी नाराजगी भी जताई। इसके बाद खुद डीजीपी ने पलटकर उसे (फर्जी चीफ जस्टिस) को फोन किया।  

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आदित्य कुमार का आइडिया रंग लाया पर अचानक आया नया मोड़  

हालांकि आदित्य कुमार का आइडिया रंग लाया और कुछ ही दिन बाद पांच सितंबर को डीजीपी ने उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा खत्म करते हुए उन्हें क्लीन चिट दे दी। क्लीन चिट मिलने के बाद अब आदित्य कुमार कभी जिले की कमान संभाल सकते थे, पर तभी कहानी में एक नया मोड़ आ गया। उन्हें क्लीनचिट देने के 40 दिन बाद इसी महीने 15 तारीख को डीजीपी को पता चला कि चीफ जस्टिस के नाम पर किसी ने उन्हें धोखा दिया है। फिर डीजीपी की शिकायत पर राज्य की आर्थिक अपराध इकाई इसमें 15 अक्टूर को एफआईआर दर्ज करती है। इसके बाद जांच शुरू हुई और आदित्य कुमार व अभिषेक अग्रवाल की पूरी जालसाजी सामने आई। अब शर्मिंदगी के बीच बिहार पुलिस को आदित्य कुमार के खिलाफ खत्म मुकदमा तो वापस बहाल करना ही पड़ता है, साथ ही जालसाजी का नया केस भी दर्ज हो जाता है। तब तक एसएसपी फुर्र हो चुके थे।

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डीजीपी पर उठे सवाल, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा  

डीजीपी एसके सिंगल पर सवाल ये उठने लगे कि उन्हें सारे घालमेल को समझने में 40 दिन कैसे लग गए। उन्हें इतने दिन बाद सच्चाई कैसे पता चली। हाालांकि राज्य की पुलिस ने इस पर गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया कि डीजीपी को फोन करने वाले की बातचीत के टोन से शक जरूर हुआ था। लेकिन बता यह भी है कि एसएसपी का मुकदमा तो 40 दिन पहले ही वापस ले लिया गया था। 40 दिन से डीजीपी के पास फर्जी चीफ जस्टिस का कोई फोन भी नहीं आया था, तो फिर 40 दिन तक डीजीपी साहब किसका इंतजार करते रहे? यदि बात के टोन से उन्हें शक हुआ था तभी उन्होंने इसकी जांच क्यों नहीं की या किसी से इसकी शिकायत उसी समय क्यों नहीं की? क्या 15 अक्टूबर को शिकायत कराने से पहले उन्होंने सरकार के उच्च अधिकारियों अथवा सीएम से इसका कोई जिक्र किया? क्या सरकार को 15 अक्टूबर से पहले खुद के ठगे जाने की डीजीपी ने जानकारी दी? अब इसी 40 दिन की सच्चाई व डीजीपी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर कर दी गई है।

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एसएसपी को अब सस्पेंड किया गया

सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कहीं एसएसपी आदित्य कुमार को क्लीन चिट देने की साजिश में कुछ और बड़े लोग तो शामिल नहीं हैं? इस सवाल व शक के कई कारण हैं।  जालसाजी का खुलासा होते ही हालांकि इसी मंगलवार को एसएसपी को सस्पेंड कर दिया गया है, मगर उन्हें तब निलंबित क्यों नहीं किया गया था जब उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया था?  

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ये भी सवाल

मामले की जांच आर्थिक अपराध इकाई कर रही है और यह भी राज्य के डीजीपी की मातहत है। ऐसे में निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है? यह भी बड़ा सवाल है कि जब अभिषेक अग्रवाल हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनकर डीजीपी को फोन कर रहा था, तब डीजीपी ने राज्य सरकार के किसी अफसर अथवा सरकार के महाधिवक्ता को इस बारे में क्यों नहीं बताया? जिस केस में फतेहपुर थाना प्रभारी अब भी आरोपी है, उसी में आदित्य कुमार बरी कैसे हो गए? जब आदित्य कुमार फरार थे तो उन्हें सुरक्षा गार्ड, ड्राइवर, व कुक कैसे मुहैया कराया गया? गया के तत्कालीन आईजी अमित लोढ़ा को भी फंसाने की बात एफआईआर में दर्ज है, पर उन्हीं आईजी ने जब आदित्य कुमार की लिखित शिकायत पुलिस हेडक्वार्टर में की तब डीजीपी ने कोई कार्रवाई क्यों नही की? बिहार पुलिस हेडक्वार्टर को करीब से जानने वाले अधिकारियों को असली कहानी कुछ और ही लगती है। इसलिए यह कहना कि इस कहानी में किसने किसको मामूं बनाया या कौन मामू बना, शायद जल्दबाजी होगी।  बाकी कहानी के हीरो एसएसपी आदित्य कुमार फिलहाल किसी फरार मुजरिम का पीछा करने के बजाए खुद ही फरार हैं। अब देखना यह है कि बिहार पुलिस अपने ही बॉस को चूना लगाने वाले इस अफसर को कब पकड़ती है?

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