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Mango Varieties: आम की रंगीन किस्में देंगी अच्छा मुनाफा, ऐसे करेंगे बागवानी तो कमा लेंगे ढेरों रुपया

Mango Varieties: आम की रंगीन किस्में देंगी अच्छा मुनाफा, ऐसे करेंगे बागवानी तो कमा लेंगे ढेरों रुपया
Popular mango varieties: अगर आप आम की खेती करने के लिए रंगीन किस्मों का चयन कर रहे हैं ताकि अधिक मुनाफा हो, तो आपको कुछ महत्वपूर्ण तत्वों का ध्यान रखना चाहिए। आम की पूसा अरुणिमा, पूसा पीताम्बर, पूसा श्रेष्ठ, अम्बिका, अरुणिका, पूसा मनोहारी, पूसा दीपसिखा से अच्‍छा मुनाफा कमाया जा सकता है। हर साल लगता है फल इनमें। पांचवें साल से ही आने लगता है अच्छा मुनाफा।

Mango Varieties: अपने क्षेत्र में कौन सी रंगीन किस्म की आम की मांग ज्यादा है, इसे ध्यान में रखें। वे किस्में चुनें जो आपके क्षेत्र में अच्छे ढंग से पलती हों और उन्हें सही मात्रा में पानी और ऊर्वरक मिले। आज हम आपको आम की कुछ रंगीन किस्‍मों के बारे में बताएंगे। इनमें पूसा अरुणिमा, पूसा पीताम्बर, पूसा श्रेष्ठ, अम्बिका, अरुणिका, पूसा मनोहारी और पूसा दीपसिखा शामिल हैं।

पूसा अरुणिमा की जानकारी

आम की उन्नत हाईब्रिड किस्म पूसा अरुणिमा को बीज जनक 'आम्रपाली' और पराग जनक 'सनसनी' के हाईब्रिड के रूप में विकसित किया गया था। यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा जारी किया गया था। फलों में छिलके पर आकर्षक लाल रंग, मोटे छिलके, बिना रेशे के गूदे की उच्च मात्रा (70.0%), मीठा स्वाद (TSS 19.5%) होता है।

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यह एक उच्च उपज वाली किस्म है, जिसने 6-20 वर्ष की आयु के पेड़ से 40.16 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता वाले फल का उत्पादन किया है। इस किस्म के फल 15.3 दिनों तक कमरे के तापमान (35°-38°C) और फल पकने और भंडारण के दौरान कम तापमान (12°C) पर 35 दिनों तक ठीक रहते हैं।

पूसा पीताम्बर

यह नियमित फल देने वाली व सघन बागवानी के लिये उपयुक्त किस्म है। इसको आम्रपाली व लाल सुन्दरी किस्मों के संकरण से तैयार किया गया है। 6 x 6 मीटर की दूरी पर एक हैक्टर क्षेत्रफल में पूसा पीताम्बर के 278 वृक्ष लगाये जा सकते हैं।

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इसके फल मध्यम आकार के व पकने पर आकर्षक पीले रंग के हो जाते हैं। ये फल रसीले एवं मनमोहक सुगंध वाले होते हैं। इनमें 18.8 प्रतिशत कुल घुलनशील ठोस पदार्थ होता है। ऐसा देखा गया है कि इस प्रजाति में गुच्छा रोग कम लगता है।

पूसा श्रेष्ठ

यह प्रत्येक वर्ष फलने वाली अत्यन्त आकर्षक किस्म है, जिसकी उत्पत्ति आम्रपाली व सेंसेशन किस्मों के संकरण से हुई है। इसके पौधे 6 x 6 मीटर की दुरी पर रोपण करके एक हैक्टर क्षेत्रफल में 278 वृक्ष लगाये जा सकते हैं।

आम की अंबिका किस्म

आम की अंबिका किस्म को साल 2000 में लॉन्च किया गया था. यह आम देखने में खूबसूरत होता है और खाने में स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है. अंबिका आम का रंग बैंगनी होता है और पकने पर लाल और पीले रंग का हो जाता है. यह आम दशहरी, चौसा, और दूसरे आमों की तुलना में तीन गुना ज़्यादा दाम पर बिकता है।

अरुणिका आम की बौनी किस्म

अरुणिका किस्म के पौधे आम्रपाली से भी छोटे आकार के होते हैं. इसी कारण से किचन गार्डन के लिए अरुणिका को अच्छी बौनी किस्मों में से एक माना जाता है. शुरू में, नई रंगीन किस्मों के पौधे केवल शोध संस्थानों में उपलब्ध थे, जहां इन किस्मों को विकसित किया गया था।

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लेकिन अब ज्यादा मांग के कारण, पौधों को प्राइवेट नर्सरी काफी संख्या में बना रही हैं. हालांकि, रंगीन किस्मों की आड़ में नकली किस्मों की आपूर्ति भी हो रही है. बाजार में लाल फलों की अधिक मांग के कारण रंगीन किस्मों का उत्पादन करना किसानों के लिए भी लाभदायक है।

ऐसे विकसित हुईं रंगीन किस्में

लाल रंग की इन किस्मों के आकर्षण के कारण इनके पौधे विभिन्न सरकारी एजेंसियों और निजी नर्सरी द्वारा व्यापक रूप से बनाए जाने लगे. इस बीच, इन किस्मों को नई किस्मों के विकास के लिए शंकरण में माता या पिता के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. आम्रपाली, दशहरी और अल्फांसो जैसी भारतीय किस्मों के साथ इन विदेशी आमों को नर या मादा के रूप में संकरित करके रंगीन किस्में में विकसित की गई हैं।

आम की लोकप्रिय किस्‍में

टॉमी एटकिंस और सेंसेशन जैसी विदेशी रंगीन आम की किस्में भारतीय स्वाद के अनुरूप नहीं हैं. सुगंधित और मीठे आम भारतीय उपभोक्ताओं के बीच अधिक लोकप्रिय हैं. हालांकि, लाल किस्मों का रंग उपभोक्ता को आकर्षित करता है, और ग्राहक अधिक कीमत देने में भी संकोच नहीं करते हैं. विदेशी किस्में आम तौर पर कम मीठी होती हैं, लेकिन इन्हें लंबे समय तक संग्रहित किया जा सकता है।

एक दर्जन से अधिक किस्में विकसित

अनुसंधान संस्थानों ने एक दर्जन से अधिक आम की लाल रंग की किस्मों का विकास किया है. दिल्ली के पूसा संस्थान ने लाल रंग की कई किस्में जैसे पूसा अरुणिमा, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा ललिता और पूसा अरुणिमा जीत करके जारी किया है और उनकी मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है।

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