Preservation of Seeds: पारंपरिक बीजों को संरक्षित करने में जुटे लालू जी और गजेंद्र दूहन, किसानों को हो रहा फायदा

सोनीपत, Preservation of Seeds: भारत कृषि प्रधान देश है. देश की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है. कुल मिलाकर भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. ऐसे में देश की कृषि व्यवस्था को सभी तरह से संपन्न बनाने के लिए आजादी के बाद से ही सरकारों के प्रयास जारी हैं. इसी कड़ी में कृषि शोध संस्थान भी काम कर रहे हैं. जिसके तहत कृषि संस्थान नए बीज विकसित करने में जुटे हुए हैं।
क्यों जरूरी हैं पारंपरिक बीज
कुल मिलाकर कृषि वैज्ञानिकों को नए बीज विकसित करने में बड़ी सफलता भी मिली हैं. जिसका फायदा किसानों को भी हुआ है और उनका उत्पादन भी हुआ है, लेकिन इस कवायद का एक दूसरा पहलू यह भी है कि नए बीजों के बढ़ते प्रयोग से देश के पारंपरिक बीज विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं।
जिसको लेकर समय- समय पर बीज बचाओ के नारे भी उछलते रहे हैं. इसी कड़ी में हरियाणा के लालू जी और गजेंद्र दूहन किसान अनूठा काम कर रहे हैं. जो अभी तक सब्जियों की 500 किस्मों के बीजों को संरक्षित कर चुके हैं।
प्रत्येक बीज की खेती कर रहे
हरियाणा के सोनीपत निवासी लालू जी नवंबर 2019 से बीजों के संवर्धन में जुटे हैं। लालू जी किसान हैं और उन्होंने सब्जियों की पांरपरिक किस्मों को संरक्षित करने का काम बड़ी ही सहजता से कर रहे हैं. जिसके तहत वह खेत में प्रत्येक किस्म के बीज को लगा रहे हैं, तो वहीं उन्हें पहचानने के लिए टैग भी लगा रहे हैं. साथ ही उन्होंने प्रत्येक किस्म की जानकारी रजिस्टर में भी दर्ज की है. जिसके तहत अभी तक 500 किस्मों की जानकारी वह अपने रजिस्टर में दर्ज कर चुके हैं।
बीज जुटाने में घूमे 50 हजार किलोमीटर
लालू जी बताते हैं कि बीज संरक्षण का काम उन्होंने 2019 में शुरू किया। तब से अब तक वे रेल और बस के द्वारा 50 हजार किलोमीटर का सफर सिर्फ बीजों के संवर्धन में तय कर चुके हैं।
देश को कोई भी कोना हो लालू जी ने वहां से बीज लिए और उन्हें दूसरे राज्यों के किसानों के साथ साझा किया। इसका फायदा किसानों को भी मिला। इस बारे में वे बताते हैं कि उन्होंने उत्तर से लेकर दक्षिण भारत की सभी सब्जियों के बीज संरक्षित किए हैं।
बीज संवर्धन की दीवानगी
वे बताते हैं कि उन्हें पारंपरिक बीजों के संरक्षण की शगल है। इसमें वे इतने मशरुफ हो जाते हैं कि बाकी काम भी छोड़ देते हैं। यही कारण है कि आज उनके पास इतनी बड़ी कलेक्शन है। यह कलेक्शन उन किसानों के लिए भी फायदेमंद है जो इनकी खेती करते हैं। वे कहते हैं कि एक बार अगर आप फसल लगाते हैं तो खुद भी अपने लिए बीज तैयार कर सकत हैं।
हिसार के गजेंद्र दूहन भी जुड़े
लालू जी के अभियान में हिसार के प्रगतिशील किसान गजेंद्र दूहन का भी योगदान है। इस बारे में गजेंद्र कहते हैं कि जब वे पहली बार खेती मेले में लालू जी से मिले तो उनसे प्रभावित हो गए। उनकी निष्ठा और लगन देखकर वे उनसे प्रेरित हुए। उन्होंने भी पारंपरिक बीजों के संवर्धन में अपना योगदान देना शुरू किया। अब उनके पास भी लौकी, कददू आदि के पारंपरिक बीज हैं जिससे बेहतरीन पैदावार होती है।
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