Coronavirus: समय से पहले किशोरों के दिमाग को कोरोना बना रहा बूढ़ा, जानिए कैसे?

Covid-19 Impact On Brains: कोरोना वायरस महामारी से दुनिया जूझ रही है। चीन से शुरू हुई यह महामारी अब भी चीन में कहर ढा रही है और सरकार को क्रूर लॉकडाउन लगाना पड़ा है। अब ताजा शोध में खुलासा हुआ है कि कोरोना वायरस महामारी ने किशोरों की उम्र को बढ़ा दिया है। उनकी चंचलता छिन गई। 

 

Coronavirus: देश दुनिया में जब से कोरोना महामारी आई है जबसे लोगों को ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कोरोना का असर लोगों के शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से दिखने को मिल रहा।

ऐसे में एक नई स्टडी से पता चला है कि कोरोना की वजह से टीन एजर्स यानी कि किशोरों की मेंटल हेल्थ पर अधिक बुरा असर पड़ा है। कोरोना टीन एजर्स के दिमाग को तेजी से बूढ़ा बना रहा है।

इन तनावों के चलते किशोर उम्र के बच्चों से उनकी चंचलता और चपलता छिन गई तथा उन्होंने वयस्क लोगों की तरह ज्यादा सोचना शुरू कर दिया। यह स्टडी अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में की गई,

जिसमें कहा गया कि अकेले 2020 में व्यस्कों में चिंता और तनाव की घटनाएं पिछले साल की तुलना में 25 फीसदी से अधिक बढ़ी हैं। तो चलिए जानते इस बारे में।

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क्या कहता है गोटलिब का अध्ययन?

गोटलिब के अध्ययन से पता चला कि उम्र बढ़ने के साथ ही मस्तिष्क की संरचना में स्वाभाविक तौर पर बदलाव होने लगते हैं। प्युबर्टी और शुरूआती टीन एजर अवस्था के दौरान बच्चों के शरीर विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ हिस्सों (हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला) का विकास तेज हुआ।

इस दौरान कोर्टेक्स के टिश्यू पतले हो जाते हैं। कोरोना से पहले और उसके दौरान 163 बच्चों के एमआरआई स्कैन की तुलना की गई। जिससे पता चला कि लॉकडाउन के दौरान टीनेजर्स के मस्तिष्क के विकास की प्रक्रिया तेज हो गई।

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कितनी खतरनाक है ये बदलाव?

गॉटलिब ने कहा कि टीन एजर्स के मस्तिष्क में यह बदलाव केवल उन्हीं बच्चों में देखे गए। जो लंबे समय से विपरीत परिस्थितियों से घिरे हुए थे। इनमें हिंसा का शिकार बच्चे, उपेक्षा झेल रहे, पारिवारिक हिंसा में जी रहे बच्चे शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि टीन एजर्स के मस्तिष्क की संरचना में जो बदलाव देखे गए हैं। क्या वह मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव से जुड़े हुए हैं।

अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी के जोनास मिलर का कहना है कि इस स्टडी से पता चलता है कि टीनेजर्स की एक पूरी पीढ़ी को गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। टीनेजर्स पहले ही मस्तिष्क में तेजी से हो रहे बदलावों से जूझ रहे हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और अवसाद से जुड़ी हुई है।

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बच्चों ने महामारी का अनुभव किया

गोटलिब ने कहा यह तकनीक तभी काम करती है जब आप मानते हैं कि 16 साल के बच्चों का दिमाग कॉर्टिकल मोटाई और हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला वॉल्यूम के संबंध में महामारी से पहले 16 साल के बच्चों के दिमाग के समान है। उन्होंने बताया हमारे डेटा को देखने के बाद, हमने महसूस किया कि ऐसा नहीं हैं।

महामारी से पहले मूल्यांकन किए गए किशोरों की तुलना में। महामारी खत्म होने के बाद मूल्यांकन किए गए किशोरों में न केवल अधिक गंभीर आंतरिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं थीं। बल्कि कॉर्टिकल मोटाई, बड़ा हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला भी कम हो गया था और दिमाग की उम्र भी बढ़ गई थी।

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