Margosa on Mustard Crop: मरगोजा यानी ओरोबंकी बना सरसों का कैंसर, किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें
लोहारू। क्षेत्र में तापमान बढ़ने के साथ ही किसानों की समस्या भी बढ़नी शुरू हो गई हैं। मरगोजा यानी ओरोबंकी परजीवी खरपतवार बढ़ते तापमान के साथ सक्रिय होना शुरू हो गया है। किसानों का मानना है कि सरसों की फसल के लिए यह परजीवी खरपतवार कैंसर का कारण बन गया है जिसके कारण किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींचनी शुरू हो गई हैं।
मरगोजा ने बढ़ाई चिंता
बता दें कि रबी फसल के सीजन में किसानों को सरसों की फसल बुआई के साथ ही मरगोजा का डर सताने लगता है। क्योंकि मरगोजा नामक यह परजीवी सरसों की पैदावार को काफी हद तक कम कर देता है। सरसों की फसल अक्टूबर माह में बुवाई की जाती है जबकि ओरोबंकी रुखड़ी (मरगोजा) का पता जनवरी व फरवरी माह में जाकर पता चलता है।
किसान हो रहे परेशान
जिले के गांव बड़दू चैना में तो ओमबीर नामक किसान ने मरगोजा खरपतवार से परेशान होकर अपनी चार एकड़ की सरसों की फसल पर टेक्टर से हैरो ही फेर दिया ऐसे में यह सरसों की कैंसर रूपी बीमारी किसानों के लिए सर दर्द बन गई है।
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कृषि वैज्ञानिकों का प्रयास से ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत एसएल दवा का प्रयोग भी कर देख लिया परंतु इसके छिडक़ाव से सरसों की फसल में साइड इफेक्ट होता है जो सरकार के चिंता का विषय बन गया है।
परजीवी खरपतवार
इस परजीवी खरपतवार के कारण जिले की कुल 3. 42 लाख एकड़ में सरसों की फसल में करीब 35 प्रतिशत सरसों की फसल में नुकसान का आंकलन है। उल्लेखनीय है कि जिले में 3. 42 लाख एकड़ में सरसों की बुवाई हो रखी है वहीं यदि लोहारू खंड की बात की जाए तो करीब 48 हजार एकड़ में सरसों की बुवाई की गई है।
ओरोबंकी रुखड़ी से नुकसान
जैसे- जैसे फरवरी का माह आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे तापमान में बढ़ोतरी भी देखने को मिल रही है। दिन का तापमान अधिकतम 22 डिग्री को पार कर रहा है जो ओरोबंकी रुखड़ी (मरगोजा) रोग के पनपने का कारण बन रहा है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो सरसों की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 5 डिग्री से अधिकतम 15 डिग्री तक उपयुक्त माना गया है।
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क्षेत्र के किसान धर्मपाल बारवास, प्रभु दयाल काजला, भूपेंद्र कस्वां, विनोद शर्मा, मनोज कुमार, राजेश सिंघानी, राजेश बरालु, बलवान सोहासडा, संदीप, कुलदीप ढाणी टोडा, प्रदीप गागड़वास आदि का कहना है कि मरगोजा यह एक खरपतवार है जो सरसों के साथ ही जड़ों में उग जाता है और सरसों की फसल की बढ़वार को रोक देता है इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है।
जिले में लोहारू, तोशाम, बहल, सिवानी उपमंडल में सबसे ज्यादा सरसो मरगोजा खरपतवार के कारण 60 से 80 फीसदी तक नष्ट हो चुकी हैं। कृषि अधिकारी डॉ. चंद्रभान श्योराण ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि मरगोजा गांवों में इसे रूखंड़ी भी कहते हैं यह खरपतवार एक वार्षिक पौधा है।
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जिले की कुल 3. 42 लाख एकड़ में सरसों की फसल में करीब 35 प्रतिशत सरसों की फसल में इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि मरगोजा खरपतवार पूरी खुराक सरसों की जड़ से लेता है जो तापमान बढ़ने के साथ ही सक्रिय हो जाता है। यह परजीवी सरसों के पौधे का पूर्ण रूप ये सुखा देता है।
उन्होंने बताया कि इसका जिसका प्रसार बीज बोने के प्रारंभ से हो जाता है। इसके बीज बहुत छोटे अंडाकार गहरे भूरे काले रंग के होते हैं। जो आसानी से दिखाई नहीं देते इसका एक पौधा एक से दो लाख बीज बनाने की क्षमता रखता है और जमीन में 10 से 15 साल पड़े रहने के बावजूद भी फिर उग सकता है।
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उन्होंने बताया कि मरगोजा खरपतवार होने पर 2 साल तक जमीन में सरसों की बिजाई नहीं करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि सरसों की बिजाई के 25 से 30 दिन बाद ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत एसएल दवा के उचित मात्रा में दवाई के छिडक़ाव से मरगोजा पर नियंत्रण पाया जा सकता है परंतु इसका सही परिणाम सामने नहीं आए हैं क्योंकि इसका सरसों के पौधे पर साइड इफेक्ट भी हो रहा है।
पैदावार को आधा कर दिया
किसानों की मानें तो सरसों की बिजाई करने से सरसों की पैदावार को घर तक लाने में किसान के करीब 15 हजार रूपये प्रति एकड़ का खर्च आ जाता है। पैदावार की बात की जाए तो अच्छी पैदावार प्रति एकड़ 5 से 6 क्विंटल तक हो सकती है। ऐसे में मरगोजा नामक परजीवी ने किसानों की पैदावार को आधा कर दिया है जिससे उनको इसके बाद कुछ नहीं बचने वाला है। सरकार से मांग की है कि किसानों की सरसों की फसल का सही आकलन करवाकर किसानों को मुआवजा दिया जाए ताकि किसानों के नुकसान की भरपाई हो सके।
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