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Kisan Samachar : यमुनानगर में शहद को प्रोसेस कर कश्मीर से कन्याकुमारी बनाई खास पहचान

Kisan Samachar : यमुनानगर में शहद को प्रोसेस कर कश्मीर से कन्याकुमारी बनाई खास पहचान 
Kisan News in Hindi: यमुनानगर के मधु मक्‍खी पालक सुभाष चंद ने 17 किस्म के शहद व अन्य उत्पादों ने मार्केट में मचाई धूम। प्रतिवर्ष 120-130 टन शहद फिल्टर कर स्वयं मार्केटिंग।

यमुनानगर। छोटे से गांव हाफिजपुर का शहद कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहचान बना रहा है। 24 वर्ष पहले बीए-बीपीएड पास सुभाष चंद ने मधुमक्खी के मात्र छह डिब्बों से व्यवसाय शुरू किया। आज प्रतिवर्ष 120-130 टन शहद फिल्टर कर स्वयं मार्केटिंग कर रहे हैं।

17 किस्म का शहद व पांच अन्य उत्पाद तैयार कर रहे हैं और 20 अन्य लोगों को रोजगार दिया हुआ है। इनके पास मधुमक्खियों के करीब दो हजार डिब्बे भी हैं और गांव में शहद की प्रोसेसिंग युनिट लगाई हुई है।    

बाजार में बेच रहे तरह-तरह का शहद 

सरसो के फूलों का शहद, सफेदे, सौंफ,  शीशम, धनिया, जंगली शहद, कीकर, अजवाइन, लीची, कड़ी पत्ता,  तुलसी, जामुन, करंज का, बेर के फूलों का, लाहुल स्पीति अजवाइन शहद, छोटी मधुमक्खी का शहद व नीम का शहद प्रोसेस करते हैं।

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उनकी पैकिंग करते हैं और बाजार में मार्केटिंग करते हैं।  इसके अलावा बी-वैनम, रॉयल जैली, बी-पॉलन, बी-प्रपॉलिश व कॉम्ब हनी भी तैयार कर रहे हैं। यह उत्पाद कई प्रकार की बीमारियों के उपचार में लाभकारी सिद्ध होते हैं और मार्केट में इनके भाव काफी ऊंचे हैं।

अपने ही खेत से शुरू किया था व्यवसाय 

सुभाष ने बताया कि बीपीएड का डिप्लोमा करने के बाद वर्ष-1991 में उसने नजदीकी एक निजी स्कूल में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक के रूप में नौकरी शुरू की। करीब चार वर्ष तक नौकरी की, लेकिन मन में अपना व्यवसाय करने की ललक थी।

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उसके बाद नौकरी छोड़ दी और मधु मक्खी के छह डिब्बे खरीदकर अपने ही खेत में रख दिए। धीरे-धीरे डिब्बों की संख्या बढ़ाई। करीब चार वर्ष पहले मन में आया कि क्यों न शहद को प्रोसस कर मार्केटिंग में भी स्वयं बेचा जाए। अन्य व्यवसायियों के शहद के दाम भी अच्छे मिलेंगे और दूसरे लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया जा सकेगा। 

मुख्यमंत्री कर चुके सम्मानित

मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए सुभाष को बीते दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सम्मानित भी किया है। उनका कहना है कि मधु मक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें हर कदम पर जोखिम है। फूलों की खेती के लिहाज से अन्य प्रदेशों में कारोबार को शिफ्ट करना होता है।

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सबसे बड़ी चुनौति ट्रांसपोर्टेशन की है। इस दौरान नुकसान की संभावना काफी रहती है। तीसरा, हाईब्रिड बीजों के चलन से फूलों में मकरंद की मात्रा घट रही है और फूलों की खेती भी सिकुड़ रही है। सरकार को चाहिए कि इस उद्योग से जुड़े व्यवसायियों को राहत देते हुए शहद का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे और व्यवसायियों के साथ-साथ व्यवसाय का बीमा भी सुनिश्चित किया जाए।

मधुमक्खी पालकों को देते व्यवसाय के टिप्स

एक सफल व्यवसायी होते हुए सुभाष चंद कृषि विज्ञान केंद्र कोटा, भरतपुर में नेशनल बी-बोर्ड द्वारा आयोजित सेमिनार में, उप्र के धीराखेड़ी गांव में, वाराणसी सहित अन्य कई स्थानों पर आयोजित सेमिनारों के दौरान किसानों को मधु मक्खीपालन का प्रशिक्षण दे चुके हैं।

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उनका कहना है कि युवाओं को स्वरोजगार को अपनाना चाहिए। क्योंकि ऐसा कर वह स्वयं भी अपनी आजीविका कमा सकते हैं और दूसरों को भी रोजगार मुहैया करवाने में सक्षम साबित हो सकते हैं।

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