1. Home
  2. National

UK PM Rishi Sunak: महंगाई पर रोक लगाकर ब्रि‍टेन को आगे ले जा सकते हैं ऋषि सुनक

UK PM Rishi Sunak: महंगाई पर रोक लगाकर ब्रि‍टेन को आगे ले जा सकते हैं ऋषि सुनक
Rishi Sunak networth: ब्रिटेन सदी का सबसे ऊंचा मुद्रास्फीति दर झेल रहा है। पिछली बार ऋषि सुनक को पराजित करने वाली लीज टूस की विदाई भी उनके भरोसेमंद वित्त मंत्री द्वारा पेश गलत कदम वाले मिनी बजट और फिर महंगाई को लेकर झूठ बोलने के चलते हुई। महंगाई वैसे ही बहुत ज्वलनशील पदार्थ है। उसमें झूठ का तड़का लग जाए तो उसमें जाने कौन न जल जाए। ब्रिटेन ही अकेला उदाहरण नहीं है। यूरोप में ही की बदलाव हों गए। दुनिया भर में महंगाई है और इस आधार पर अनेक लोग मंदी की आहट सुन रहे हैं।

नई दिल्‍ली। Rishi Sunak Wiki: ऋषि सुनक (Rishi Sunak) का प्रधानमंत्री बनाना अगर दिवाली के दिन की शुभ खबर है तो उसका आगा-पाछा भी जानना चाहिए। और अभी डेढ़ महीने पहले इसी ब्रिटिश प्रधानमंत्री (UK PM) की रेस में हारे भारतीय मूल के सुनक अगर दोबारा अपने अनुदार दल के सांसदों का भरोसा जीतने में सफल रहे हैं तो इसलिए कि उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर कभी झूठ का सहारा नहीं लिया जबकि बिगड़ती हालात में वे बोरिस जानसन सरकार के वित्त मंत्री थे। बोरिस जानसन की विदाई अपने कुछ साथियों के आचरण से ज्यादा झूठ पकड़े जाने और बिगड़ते आर्थिक हालात के चलते हुई।

Brithish PM Election: ब्रिटेन सदी का सबसे ऊंचा मुद्रास्फीति दर झेल रहा है। पिछली बार ऋषि सुनक को पराजित करने वाली लीज टूस की विदाई भी उनके भरोसेमंद वित्त मंत्री द्वारा पेश गलत कदम वाले मिनी बजट और फिर महंगाई को लेकर झूठ बोलने के चलते हुई। महंगाई वैसे ही बहुत ज्वलनशील पदार्थ है। उसमें झूठ का तड़का लग जाए तो उसमें जाने कौन न जल जाए। ब्रिटेन ही अकेला उदाहरण नहीं है। यूरोप में ही की बदलाव हों गए। दुनिया भर में महंगाई है और इस आधार पर अनेक लोग मंदी की आहट सुन रहे हैं। महंगाई से मांग गिरती है, मांग से उत्पादन गिरता है, उत्पादन गिरने से बेरोजगारी बढ़ती है, बेकारी करे शक्ति चौपट करती है और अर्थव्यवस्था को मंडी की दबोच लेती है।

Also Read: Pakistani Agency ISI की जासूस से फेसबुक पर महंगी पड़ी दोस्ती, हुई जेल

अमेरिका महंगाई से परेशान

अमेरिका भी महंगाई से त्रस्त है। लेकिन वह की तरह से इसे संभालने की कोशिश कर रहा है(सुनक भी वही सब करने वाले हैं)। बैंक दरों में बार-बार की बढ़ोत्तरी करके वह मुद्रा की आपूर्ति घटाते हुए केमतों पर अंकुश की कोशिश कर रहा है। बार-बार इसलिए कि एक बार की प्रतिक्रिया देखकर ही दूसरा कदम उठाना चाहता है। इस चलते दुनिया भर के मुद्रा बाजार में धन की कमी महसूस हों रही है-हमारे बाजार भी उससे प्रभावित हैं। बल्कि हमारे यहां खेती के उत्पादन से लेकर सेवा क्षेत्र और करखनिया उत्पादन तक की स्थिति मोटा-मोटी ठीक है।

लेकिन कहीं न कहीं बाहरी दबाव को संभालने की अकुशलता और आर्थिक/वित्तीय फैसलों की जगह राजनैतिक मसलों को ध्यान में रखकर किए जाने वाले फैसले हमारी स्थिति भी बिगाड़ रहे हैं। वैश्विक मुद्रास्फीति के साथ तेल की केमतें और डालर का बढ़ता मोल भी हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रहा है। भूमंडलीकरण के बाद से हमारी अर्थव्यवस्था/जीडीपी में विदेश व्यापार का हिस्सा 15 फीसदी तक पहुँच गया है। तो हम बाहर की हलचल से अछूते नहीं रह सकते।

Also Read: Delhi NCR Air Quality: बैन के बावजूद दिल्ली जमकर हुई आतिशबाजी, बेहद खराब श्रेणी में पहुंचा एक्यूआई

भारत को प्रभावित करते हैं अमेरिका और यूरोप

अमेरिका और यूरोप के बदलाव तो हमें और भी प्रभावित करते हैं। अमेरिका बड़े देशों में हमारा व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार है। और ऐसा भागीदार है जिसको हम निर्यात ज्यादा करते हैं। लेकिन हाल के समय में हमारा निर्यात गिरने लगा है। मुद्रास्फीति के चलते हमारे सामान की मांग काम हों गई है। दूसरी ओर तेल का बिल संभाले नहीं संभल रहा है और सरकार किफायत जानती नहीं। और खेती के अनाज से भरे गोदाम का कुछ हिस्सा मुनाफे वाली दर से बेचने का अवसर आया तो सरकार ने चावल-गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी।

बाद में चीनी को भी इस सूची में शामिल किया गया। और जब महंगाई और रिजर्व बैंक द्वारा लागू लक्षित मुद्रास्फीति का सूचकांक लाल सिगनल देता रहा तक रिजर्व बैंक ने बैंक दरों में बढ़ोत्तरी नहीं की। जब छीजे कुछ बेहतर लगीं तो रेट बढ़ाए गए। और माना गया कि निर्यात रोकना, बैंक दर बढ़ाना और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में पहली बार हल्की कमी करने का फैसला की राज्यों के चुनाव के मद्देनजर लिया गया।

Also Read: Govardhan Puja 2022: इस बार दीपावली के अगले दिन नहीं है गोवर्धन पूजा, 27 साल पहले हुआ था ऐसा

महंगाई रोकिए, आंकड़े नहीं

सरकार चुनाव से डरे और वह महंगाई के सवाल पर चौकस रहे यह अच्छी बात है। लेकिन अपने यहां की यह चौकसी भी राजनैतिक लगती है क्योंकि स्वायत्त: रिजर्व बैंक भी सरकार की इच्छा के अनुसार ही चलता दिखता है। लेकिन उससे ज्यादा चिंता की बीत यह है कि सरकार महंगाई से लड़ने की जगह महंगाई के आंकड़ों से लड़ती नजर आती है। उसने विश्वसनीय आँकड़े जुटाने का काम तो काफी हद तक ठप्प ही कर दिया है और जिस तरह से आँकड़े जुटाए और बताए जाते हैं उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है।

ये भी पढ़ें: पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड कर रहा विश्व कप 2023 को बॉयकॉट करने की बात

2017-18 मेँ आखिरी उपभोग सर्वेक्षण हुआ था तो उसके सारे आंकडोँ को सरकार ने ही रोक लगा दी थी. यही कारण है कि अभी भी आईएमएफ और विश्व बैंक समेत सारे अध्ययन उससे पहले हुए 2011-12 के उपभोग सर्वेक्षण को ही आधार बनाते हैँ. बाद मेँ 17-18 वाले सर्वेक्षण के लीक हुए आंकडोँ से जाहिर हुआ कि गरीबोँ का अनुपात 2011-12 के 31 फीसदी से बढकर 2017-18 मेँ 35 फीसदी हो गई है अर्थात गरीबोँ की संख्या मेँ 5.2 करोड की वृद्धि हो गई है. बल्कि पेरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के उपभोग के आंकडोँ को आधार बनाकर संतोष मल्होत्रा और ययाति परिदा ने निष्कर्ष निकाला था कि गरीबोँ की संख्या मेँ 7.8 करोड की वृद्धि हो गई थी।

नुकसान अर्थव्यवस्था और देश का

यह काम मूलत: चुनाव को ध्यान में रखकर किया जाता है लेकिन नुकसान अर्थव्यवस्था और देश को होता है। जब भरोसे लायक आँकड़े मिलेंगे नहीं तो गलती और गड़बड़ी के उपचार के सही कदम उठाने मुश्किल होंगे। फिर हड़बड़ी में चावल-गेहूं का निर्यात रोकने जैसे कदम उठाए जाएंगे। और जो जानकारियां रिसकर आ रही हैं वे बताती हैं कि महंगाई बेहिसाब बढ़ी है।

इकोनामिक टाइम्स का अनुमान है कि जनवरी से अब तक जरूरी उपभोग की चीजों की कीमतों में औसत 22 फीसदी अर्थात लगभग चौथाई की वृद्धि हों चुकी है। एक सीनियर पत्रकार पुष्पारंजन ने फ़ेसबुक पर पिछली दिवाली और इस देवाली में सिर्फ खुद से खरीदी चीजों की कीमत बताई है तो डेढ़ गुने तक का फरक दिखता है। खाने के तेल, दलहन और घरेलू सामानों की महंगाई कुछ ज्यादा ही है। सब्जी, फल वगैरह की महंगाई को मौसमी कह सकते हैं लेकिन इनकी महंगाई को नहीं। लेकिन सरकार द्वारा एक तरफ आँकड़े छुपाने और दूसरी तरफ आर्थिक सवालों पर भी राजनैतिक फैसले लेने का प्रभाव बहुत उल्टा हुआ है।

ये भी पढ़ें: Diwali 2022 से भाई दूज तक ऐसे करें पूजा, होगी धन वर्षा

अनाज निर्यात रोकने के फैसले के चार महीने के अंदर ही उस मोर्चे पर हाहाकार की स्थिति आ गई है। सरकारी खरीद काफी काम हों गई है और मौसम की मार ने तैयार फसल का भी नुकसान कर दिया। फिर वोट दिलाने वाले लोक लुभावन मुफ़्त अनाज योजना ने सरकारी गोदाम खाली करने शुरू कर दिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है कि गेहूं और चावल का भंडार पाँच साल के न्यूनतम स्तर पर आ गया है गेहू का स्टाक तो न्यूनतम भंडार की जरूरत के करीब आ गया है। इसलिए इस बार के विधान सभा चुनाव तक तो मुफ़्त अनाज योजना चल सकती है लेकिन उसके बाद नहीं। सच को छुपाना मुश्किल है। और महनगाई जैसे ज्वलनशील को परदे में रखने की कोशिश और खतरनाक है। उसे रोकने की कोशिश तो होनी ही चाहिए, आँकड़े रोकने की नहीं।


देश दुनिया के साथ ही अपने शहर की ताजा खबरें पाने के लिए अब आप HaryanaNewsPost के Google News पेज और Twitter पेज से जुड़ें और फॉलो करें।