1. Home
  2. National

Election News: जाति संगठनों की सक्रियता और विधानसभा चुनाव

Election News: जाति संगठनों की सक्रियता और विधानसभा चुनाव

Assembly Elections: भाजपा के लिए लिंगायतों का समर्थन सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि दूसरी प्रभावी जाति, वोक्कलिगा पर अभी भी देवेगाउड़ा परिवार का जादू चल रहा है। लिंगयतों की आबादी १८ फीसदी तक मानी जाती है और ये पूरे प्रदेश में हैं। इनका समर्थन भाजपा की तरफ जाने के बाद से कांग्रेस कमजोर हुई है।

Election News: अगर जम्मू कश्मीर में इस साल चुनाव हुए तो दस वरना नौ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं और इनमें से तीन के लिए तारीखों की घोषणा हों चुकी है। लेकिन चुनावी तैयारियों की बात की जाए तो हर राज्य में अलग अलग स्तर पर काम शुरू हों गया है।

और इनमें से त्रिपुरा के पूर्व शासक प्रद्योत किशोर माणिक्य देवबर्मा की अगुआई वाले टिपरा मोठा की हाल की तैयारी बैठकों और विभिन्न राजनैतिक दलों से मोल टोल की बात छोड़ दें तो बाकी सभी प्रांतों की तैयारियों में जाति वाले तत्व सबसे ऊपर लगते हैं।

त्रिपुरा के आदिवासियों के विभीन कबीलों का यह मंच पूर्व अतिवादी विजय हरांगखल के माध्यम से काम करता है और पिछली विधान सभा के भी काफी आदिवासी विधायक इसके झंडे तले जमा हुए हैं। सो इस चुनाव में उसका मोल बड़ा लगता है।

बहुत जातं और धमाके से वामा मोर्चा का शासन खत्म करने वाली भाजपा से की स्तर पर निराशा दिखती है। दूसरी ओर कांग्रेस और वां दल हाथ मिलाकर लड़ रहे हैं। इसलिए यह मोठा इस बार अच्छी सौदेबाजी की स्थिति में है।

ये भी पढ़ें: पुरुष आईपीएल के बाद Viacom18 ने महिला आईपीएल के भी खरीदे मीडिया अधिकार, 5 वर्षों के लिए 951 करोड़ रुपये किये खर्च

राज्य विधान सभा की बीस सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित भी हैं। आदिवासी हर बार अपनी ताकत का एहसास कराते रहे हैं लेकिन इस बार उनकी एकजुटता और कथित राष्ट्रीय पार्टियों से लोगों की नाराजगी शायद सबसे निर्णायक मुद्दा है।

और पूर्व राजघराणे का इस तरह उनके समर्थन में आना भी महत्वपूर्ण है। लेकिन जातिगत और कबीलाई गोलबंदी और सौदेबाजी का यह दृश्य अकेले त्रिपुरा में नहीं है। यह उन राज्यों में और साफ दिखाई देता है जहां चुनाव अभी घोषित नहीं हुए हैं और जहां के लिए स्थापित दलों की भी कोई तैयारी नहीं दिखती है।

राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी इस साल चुनाव होने हैं और इन राज्यों में अभी तक बिहार या उत्तर प्रदेश जैसी जातिगत गोलबंदियां नहीं दिखती थीं। राजस्थान की लड़ाई तो राजपूत और ब्राह्मणों के बीच रहती थी जिसमें जाट निर्णायक बन जाते थे।

इधर गूजरों और मीणाओं ने गोलबंद होकर अपनी मांगे आगे की हैं। पर सबसे पहली जातिगत मांग राजपूतों की करणी सेना ने मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार के आगे २२ सूत्री मांग राखी है जिसमें आर्थिक रूप से गरीबों के लिए आरक्षण, अनुसूचित जाति/जनजाति/ अत्याचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा दर्ज होने से पहले मामलों की जांच की मांग भी शामिल है।

उसका दावा है कि पिछले चुनाव में राजपपोतों ने मध्य प्रदेश सरकार के आगे यह मांग राखी थी जिसके पूरा न होने पर राजपूतों का वोट उसके खिलाफ गया और वह हार गई थी। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पटाने के रास्ते वह फिर सत्ता में आ पाई।

ये भी पढ़ें: संजू सैमसन ने पास किया फिटनेस टेस्ट, जसप्रीत बुमराह की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज में वापसी की संभावना

इस बार अगर उसने मांग न मानी तो ऐसा करना भी मुश्किल होगा। उधर कर्नाटक में भी पंचमशाली लिंगायत समुदाय ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग उठाई है। वहां भी इस साल चुनाव होने हैं।

भाजपा के लिए लिंगायतों का समर्थन सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि दूसरी प्रभावी जाति, वोक्कलिगा पर अभी भी देवेगाउड़ा परिवार का जादू चल रहा है। लिंगयतों की आबादी १८ फीसदी तक मानी जाती है और ये पूरे प्रदेश में हैं।

इनका समर्थन भाजपा की तरफ जाने के बाद से कांग्रेस कमजोर हुई है। और शायद यह रुख देखकर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में अपने कर्नाटक दौरे के समय प्रमुख लिंगायत नेता और राज्य में भाजपा को सत्ता में लाने वाले बुजुर्ग येदीयूरप्पा से अलग से मुलाकात की।

बालगवी में पंचमशाली लिंगायतों ने भाजपा के विधायक बासंगुड़ा पाटील के नेतृत्व में प्रदर्शन किया। तब से कांग्रेस और भाजपा, दोनों के बड़े नेता लिंगायत मठों के चक्कर लगाने लगे हैं। अपनी भारत जोड़ों यात्रा के समय राहुल गांधी ने भी वहां माथा टेका था।

ये भी पढ़ें: लखनऊ टी-20 में खराब पिच बनाने पर पिच क्यूरेटर को हटाया गया, आईपीएल के लिए बनाई जाएगी नई पिच

इन्हीं चुनावों के मद्देनजर राज्य में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर चुके सिद्धारमैयया भी अपना चुनाव क्षेत्र बदलने की तैयारी में हैं। पर इस बार सबसे ज्यादा जातीय हलचल मध्य प्रदेश और राजस्थान में ही दिख रही है जहां अभी तक जातिगत गोलबंदी नहीं दिखती थी।

गूजरों का वोट एकजुट करके पहली बार राज्य की सत्ता पर दावा करने वाले सचिन पाइलट काफी निराश रहने के बावजूद एक बार फिर से मैदान में हैं। उनका मुकाबला विजय बैनसला जैसे लोग भी कर रहे हैं।

पिछले साल राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों के लिए मेडिकल की पढ़ाई मुफ़्त करने का फैसला किया तो जिस गूजर आरक्षण संघर्ष समिति ने राज्य भर में विरोध आयोजित किया, बैनसला उसके अध्यक्ष हैं।

और उसके दबाव का नतीजा ही है कि अइसी सुविधा ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग के छात्रों को भी देने की घोषणा राहुल गांधी के भारत जोड़ों तयात्रा के राजस्थान पहुँचने के पहले ही करनी पड़ी।

ये भी पढ़ें: जानिए यूकेलिप्टस की खेती से कितनी होगी कमाई?

इसी संगठन ने राज्य में ओबीसी और अति पिछड़ों के लिए आरक्षित स्थानों की सारी पुरानी रिक्तियों को भरने का आंदोलन भी चलाया और राज्य सरकार ने यह मांग भी मान ली। असल में मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को भी पिछड़ा राजनीति ही भाती है।

राजस्थान में  प्रताप फाउंडेशन भी चुनाव के मद्देनजर सक्रिय हों गया है। उसका दावा है कि राजपूतों ने ही भाजपा को राज्य में जमाया है लेकिन अब का नेतृत्व इस बात को नहीं समझ रहा है। पिछली बार इसी व्यवहार के चलते राजपूतों ने भाजपा का साथ छोड़ा तो उसकी पराजय हुई।

फाउंडेशन के अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह मानपुरा की सक्रियता जयपुर से दिल्ली तक दिखाई दे रही है। पर ऐसे लोग काम नहीं हैं जो मानते हैं कि अगर कांग्रेस में गहलौत बनान सचिन पाइलट की लड़ाई की और रूप में(जिसमें जातीय संगठनों की सक्रियता और मांग उठाने मानने की राजनीति शामिल है 

तो यह स्थिति भाजपा की अंदरूनी लड़ाई से भी जुड़ी है जहां वर्तमान नेतृत्व विजया राजे सिंधिया को किनारे लगाने में लगा है और अपने जनाधार से वे उसका मुकाबला कर रही हैं। पर इतना साफ है कि ज्यों ज्यों चुनाव पास आएंगे यह शोर बढ़ेगा। अभी तो तीन ही राज्यों का चुनाव है और तीनों के कबीलाई समाज होने से जाति का शोर काम है। 

ये भी पढ़ें: बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी से पहले विराट कोहली और अनुष्का शर्मा एक और आध्यात्मिक यात्रा पर, ऋषिकेश में स्वामी दयानंद गिरि के आश्रम पहुंचे

हमें ट्विटर और गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें


देश दुनिया के साथ ही अपने शहर की ताजा खबरें पाने के लिए अब आप HaryanaNewsPost के Google News पेज और Twitter पेज से जुड़ें और फॉलो करें।