Coronavirus: एक साल का हुआ ओमिक्रॉन वैरिएंट, संक्रमण का खतरा अभी भी बरकरार, जानिए कैसे?
Omicron Varient: 26 नवंबर 2021 को WHO ने कोरोनावायरस के सबसे घातक वैरिएंट की घोषणा की। इसे ओमिक्रॉन नाम दिया गया था। इसे दक्षिण अफ्रीका में खोजा गया था। एक साल हो चुका हैं लेकिन वैज्ञानिक ये पता नहीं कर पाए कि आखिर यह वैरिएंट इतनी तेजी से फैला कैसे?
Coronavirus: कोरोना वायरस का सबसे घातक वैरिएंट ओमिक्रॉन को पूरा एक साल हो चुका है। बता दें साल 2021 में 26 नवंबर को डब्ल्यूएचओ ने इस वैरिएंट की घोषणा की थी।
सबसे पहले ये वैरिएंट दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था। लेकिन आज तक वैज्ञानिक ये पता नहीं कर पाए कि आखिर ओमिक्रॉन वैरिएंट कैसे फैला और सबसे खतरनाक कैसे बन गया। तो चलिए जानते हैं इस बारे में।
क्या ओमिक्रॉन कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट्स से अलग था?
आपको बता दें कि ओमिक्रॉन के वैरिएंट्स इतने ज्यादा हो गए कि व्यक्ति का इम्यून सिस्टम भी नहीं समझ पाया और संक्रमण इतनी तेजी से बढ़ता गया। इनके कई नाम भी दिए गए,
जैसे- एक्सबीबी, बीक्यू.1.1 और सीएच.1. सिएटल स्थित फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर की वायरोलॉजिस्ट जेसी ब्लूम कहती हैं। इतने वैरिएंट्स हो गए थे समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा क्या है। कहा जा रहा है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट्स से एकदम अलग था।
कई शोधकतार्ओं का कहना है कि यह किसी एक इंसान के शरीर में विकसित हुआ था। उस इंसान का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर था। उस व्यक्ति को कोविड संक्रमण कई महीनों तक रहा होगा। इसलिए ओमिक्रॉन बेहद ताकतवर बनकर सामने आया।
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कहां से हुई ओमिक्रॉन की शुरूआत?
अक्टूबर 2022 में मिनिसोटा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के जरिए बताया कि कोरोनावायरस के शुरूआती वैरिएंट्स ने चूहे को संक्रमित किया था। यानी ओमिक्रॉन क्या चूहे में पनपा। वहां से फिर इंसानों में आया।
खैर ये वैरिएंट कहीं से भी आया हो, सिर्फ कुछ हफ्तों में ही इसने पूरी दुनिया में अपना जाल बिछा लिया। म्यूटेशन करता चला गया। कुछ म्यूटेशन तो ऐसे थे जो आसानी से कोशिकाओं तक चले जाते थे। वह भी बिना इम्यूनिटी से लड़े।
ओमिक्रॉन के कितने सब वैरिएंट्स बने थे?
पूरी दुनिया में ओमिक्रॉनके 180 सब-वैरिएंट्स बने थे। इन सभी सब-वैरिएंट्स में अपने-अपने म्यूटेशन हुए थे। ये वायरस उसी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, जिसे 160 साल पहले चार्ल्स डार्विन ने समझाया था।
उन्होंने इसे कन्वर्जेंस नाम दिया था। यानी एक वैरिएंट दूसरे के साथ म्यूटेट करके नया सब-वैरिएंट बना रहा था। इस समय सब-वैरिएंट्स के बीच संक्रमण फैलाने और म्यूटेशन की प्रतियोगिता चल रही है।
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ओमिक्रॉन के कन्वर्जेंस पर लगातार स्टडी जारी
कई एंटीबॉडीज की स्टडी करने के बाद वैज्ञानिकों ने एवुशेल्ड नाम का फॉमूर्लेशन तैयार किया। जो ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स से लोगों को बचा रहा है। लेकिन जिस गति से सब-वैरिएंट्स फैल रहे हैं। यह इलाज का तरीका भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा।
खुशी की बात ये है कि ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स उतने खतरनाक साबित नहीं हो रहे हैं, जितना की वो खुद था। ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स किसी भी वैक्सीन को पूरी तरह से धोखा नहीं दे सकते। न ही उसके सब-वैरिएंट्स। वो कमजोर होते हैं। लेकिन ओमिक्रॉन के कन्वर्जेंस पर लगातार स्टडी जारी है।
क्या म्यूटेशन दे रहे थे इम्यूनिटी को धोखा?
वैक्सीन से मिलने वाली एंटीबॉडी को भी ओमिक्रॉन के म्यूटेशन धोखा दे रहे थे। आमतौर पर एंटीबॉडीज कोरोना वायस के स्पाइक यानी बाहरी कंटीले परत से चिपकर उसे कोशिका में जाने से रोकते हैं।
लेकिन ओमिक्रॉन ने म्यूटेशन करके स्पाइक प्रोटीन में ही बदलाव कर दिया था। जिससे एंटीबॉडी उससे चिपक नहीं पा रहे थे। लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे थे। इसके बाद ओमिक्रॉन तेजी से फैलता चला गया। लगातार म्यूटेशन करता रहा। नए-नए वैरिएंट्स आते रहे।
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साइंटिस्ट ओमिक्रॉन पर कर रहे एक्सपेरीमेंट?
बीए.1, फिर बीए.2, इसके बाद बीए.5. ये तीनों ही ओमिक्रॉन के ऐसे म्यूटेशन थे, जो कई एंटीबॉडीज को धोखा दे देते थे। इस साल फरवरी में न्यूयॉर्क स्थित रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट थियोडोरा हाट्जीओनू और उनकी टीम ने कहा कि ओमिक्रॉन इवोल्यूशनरी विस्फोट के लिए ही आया है। थियोडोरा और उनकी टीम ने ओमिक्रॉन को 40 अलग-अलग एंटीबॉडीज से मिलाया। उसके बाद जो हुआ वो हैरान करने वाला था।
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क्या ओमिक्रॉन पर एंटीबॉडी हो रहा था असर?
बता दें थियोडोरा और उनकी टीम ने देखा कि इसके बाद ओमिक्रॉन ने खुद में इतने म्यूटेशन किए कि वह इन चालीसों एंटीबॉडीज को धोखा देने की क्षमता विकसित कर ली। इनके ऊपर प्राकृतिक या वैक्सीन से पैदा एंटीबॉडीज का असर हो ही नहीं रहा था। थियोडोरा ने कहा कि हमने जो देखा उससे डर गए थे। वह चिंताजनक था। कई महीनों तक ओमिक्रॉन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ था।
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